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By Raman Kumar Ynr.

श्री कृष्णा 🌷🌷 भक्तों श्री शुकदेव जी कहते है कि ब्रह्माजी की निष्कपट तपस्या से प्रसन्न होकर आदिदेव भगवान ने उन्हें दर्शन देकर अपना रूप प्रकट किया और आत्मतत्व के ज्ञान के लिए सत्य परमार्थ वस्तु का जो उपदेश दिया उसे सुनो - ब्रह्माजी ने अपने जन्म स्थान कमल पर बैठकर सृष्टि की रचना करने का विचार किया । तब प्रलय के समुद्र में उन्होंने व्यंजनों के सोलहवें तथा इक्कीसवें अक्षर त तथा प को तप-तप ( तप करो) इस प्रकार दोबार सुना । ब्रह्माजी ने यह वाणी बोलने वाले को देखने के लिए चार मुख ग्रहण किए परन्तु उन्हें किसी के दर्शन नहीं हुए। अन्त में ब्रह्मा जी ने अपने मन को तपस्या में लीन कर लिय ... Read more

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