ब्रह्मा जी की दस प्रकार की सृष्टि की रचना - ब्रह्माजी ने उस कमल कोष के तीन विभाग भूः करने वालों को महः तपः भुवः स्वः किए। निष्काम जनः सत्यलोक रूप ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है । दस प्रकार की सृष्टियों के नाम :- 1. महत्तत्व की सृष्टि, 2. अहंकार की सृष्टि, 3. भूतसर्ग की सृष्टि, 4. इन्द्रियों की सृष्टि, 5. सात्विक सृष्टि, 6. अविद्या की सृष्टि, 7. वैकृत की सृष्टि, 8. तिर्यगयोनि की सृष्टि, 9. मनुष्यों की सृष्टि, 10. देवसर्ग वैकृत की सृष्टि । 1. महत्तत्व की सृष्टि: भगवान की प्रेरणा से सन्त्वादि गुणों में विषमता होना ही इसका गुण है। 2. अहंकार की सृष्टि: इसमें पृथ्वी आदि पंचभूत एवं ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय की उत्पत्ति होती है । 3. भूतसर्ग की सृष्टि : इसमें पंचमहा भूतों को उत्पन्न करने वाला तन्मात्र वर्ग रहता है । 4. इन्द्रियों की सृष्टि: यह ज्ञान और क्रियाशील शक्ति से उत्पन्न होती है । 5. सात्विक सृष्टि: अहंकार से उत्पन्न हुए इन्द्रियाधिष्ठाता देवताओं की सृष्टि है। मन इसी सृष्टि के अन्तर्गत आता है। 6. अविद्या की सृष्टि : इसमें तामिस्त्र, अन्धतामिस्त्र, तम, मोह, माहमोह, पाँच गांठें है। 7. वैकृत की सृष्टि : यह छः प्रकार के स्थावर वृक्षों की है। इनका संचार जड़ से (नीचे ) ऊपर की ओर होता है। 8. तिर्यगयोनि की सृष्टि : यह पशु-पक्षियों की सृष्टि है। इनकी २८ प्रकार की योनियाँ मानी गई हैं । 9. मनुष्यों की सृष्टि : इस सृष्टि में आहार का प्रवाह ऊपर मुँह से नीचे की ओर होता है। 10. देवसर्ग वैकृत की सृष्टि इनके अतिरिक्त सनत्कुमार आदि ऋषियों का जो कौमार सर्ग है यह प्राकृत वैकृत दोनों है।- Shri Krishna