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श्री कृष्णा. 54

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Shri Krishna Radhe Krishan Bhagwan Hari Vishnu Lakshmi,
श्री कृष्ण राधेकृष्ण राधे, कृष्णा भगवान हरि विष्णु लक्ष्मी मद्भागवत गीता,
Mob No:- 09466660442
Email :- ramankumar407@gmail.com
Thoughts
  • प्रिय भक्तों भागवत का वर्णन इस प्रकार है कि कल्प में सत्यवती के गर्भ से व्यास के रूप में भगवान ने प्रकट होकर भागवत पुराण की रचना की थी । इसी भागवत पुराण में सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, अति, मन्वन्तर, इशानु, निरोध, मुक्ति, आश्रय इन दस विषयों का वर्णन है । भगवान की प्रेरणा से आकाश, तन्मात्राएँ, पंचभूत, महत्तत्व और अहंकार की उत्पत्ति का नाम सर्ग कहा गया है। विराट पुरुष से सृष्टियों के निर्माण को विसर्ग कहा गया है। प्रति पल नाश की ओर बढ़ने वाले सृष्टि को मर्यादा में स्थिर रहने से भगवान विष्णु की जो श्रेष्ठता सिद्ध होती है, उसे स्थान कहा गया है। भगवान के द्वारा सुरक्षित सृष्टि में भक्तों के ऊपर उनकी जो कृपा रहती है उसे पोषण कहा गया है । मन्वन्तरों के अधिपति जो भगवद् भक्ति और प्रजापालन रूप शुद्ध धर्म का अनुष्ठान करते हैं उसे मन्वन्तर कहा गया है । जीवों की वे वासनाएँ जो कर्म के द्वारा उन्हें बन्धन में डाल देती हैं उसे ऊति कहा गया है। भगवान के विभिन्न अवतारों के और उनके प्रेमी भक्तों की विविध आख्यानों से युक्त कथाएँ ईश कथा कहलाती हैं। जब भगवान योगनिद्रा स्वीकार करके शयन करते हैं, तब इस जीव का अपना वास्तविक स्वरूप परमात्मा में स्थित होना ही मुक्ति है । इस चराचर जगत की उत्पत्ति और प्रलय जिस तत्त्व से प्रकाशित होते हैं वह परब्रह्म ही आश्रय है ।
  • प्रभु भक्तों ब्रह्मा जी ने बताया कि भगवान नारायण के पास सत्व, रज और तम तीन शक्तियाँ हैं। उन्होंने पृथ्वी को जल से ऊपर लाने के लिए वराह का शरीर धारण किया । जब हिरण्याक्ष आदि देव भगवान से युद्ध करने आया तो उन्होंने अपनी दाढ़ी से उसके टुकड़े-टुकड़े करके मार गिराया। भगवान ने रुचि नाम के प्रजापति की स्त्री आकृति के गर्भ से सुयज्ञ के रूप में अवतार ग्रहण किया । इस अवतार में दक्षिणा नाम की स्त्री से सुयम नाम के देवता को उत्पन्न किया । स्वायम्भुव मनु ने उन्हें हरि के नाम से पुकारा । प्रजापति कर्दम के घर पर देवहुति के गर्भ से नौ बहिनों के साथ कपिल भगवान ने अवतार ग्रहण किया । कपिल भगवान ने अपनी माता देवहुति को आत्मज्ञान का उपदेश दिया । महर्षि अत्रि भगवान को अपने पुत्र के रूप में देखना चाहते थे। भगवान ने महर्षि अत्रि को तथास्तु का वरदान देकर उनके यहाँ दत्तात्रेय के नाम से अवतार ग्रहण किया। यदु और सहस्त्रार्जुन ने दत्तात्रेय द्वारा योग और मोक्ष दोनों सिद्धियाँ प्राप्त कीं। भगवान ने सृष्टि के आरम्भ में तपस्या की। उस तपस्या से भगवान ने तप अर्थ वाले "सन" नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के रूप में अवतार ग्रहण किया । भगवान ने धर्म की पत्नी दक्ष कन्या मूर्ति के गर्भ से नर नारायण के रूप में अवतार लिया । इनके तप का प्रभाव भगवान जैसा ही था । इन्द्र की भेजी हुई काम की सेना व अप्सराएँ नर नारायण के सामने आते ही अपना स्वभाव खो बैठीं तथा उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाल सकीं। राजा उत्तानपाद के पास बैठे हुए पाँच वर्षीय के पुत्र ध्रुव को उसकी सौतेली माता सुरुचि ने कठोर वचनों द्वारा उसके हृदय को बेध दिया। दुःखित हृदय अपनी माता के कहने पर बालक ध्रुव वन में तपस्या करने चला गया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर बालक ध्रुव को दर्शन दिए तथा ध्रुव को ध्रुव पद का वरदान दिया। कुमार गामी बेन का ऐश्वर्य और पौरुष नरक में गिरने लगा। ऋषियों के आग्रह पर भगवान ने उसके शरीर का मन्थन करके प्रथु के रूप में अवतार ग्रहण किया और उसे नरक से उबारा । इस प्रकार पुत्र शब्द को चरितार्थ किया। उसी अवतार में पृथ्वी को गाय बनाकर जगत के लिए औषधियों का दोहन किया । राजा नाभि की स्त्री सुदेवी के गर्भ से भगवान ने ऋषभ देव के रूप में जन्म ग्रहण किया। स्वयं उन्हीं यज्ञ पुरुष ने भरे यज्ञ में स्वर्ण के समान कान्ति वाले हयग्रीव के रूप में अवतार लिया। उन्हीं की नासिका से श्वास रूप में वेद वाणी प्रकट हुई। चाक्षुष मन्वन्तर के अन्त में भावी मनु सत्यव्रत ने मत्स्य रूप में भगवान को प्राप्त किया। प्रलय के समय वेदों को लेकर भयंकर जल में विहार करते रहे। दानव और देवता अमृत प्राप्ति हेतु क्षीर सागर का मन्थन करते रहे । मन्दराचल पर्वत जब पानी में डूबने लगा तो भगवान ने कच्छप का रूप धारण कर मन्दराचल को पीठ पर धारण किया। समुद्र मन्थन से चौदह रत्न प्राप्त हुए। भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं में अमृत को वितरित किया । देवताओं का भय दूर करने के लिए नरसिंह का रूप धारण कर अपने भक्त प्रहलाद को जो हिरण्यकशिपु का पुत्र था, हिरण्यकशिपु को मारकर उसकी रक्षा की । ग्राह ने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया था, तब भगवान ने स्वयं प्रकट होकर गजेन्द्र को छुड़ाया। भगवान ने अपने चक्र से ग्राह का सिर उड़ा दिया। गजेन्द्र के साथ ग्राह को भी मोक्ष प्राप्त हो गया । भगवान वामन अदिति के पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र थे। राजा बलि की यज्ञशाला में गए। उन्होंने तीन पग भूमि राजा बलि से माँगी। भगवान ने दो पग में समस्त पृथ्वी नाप ली । ऐसी स्थिति में राजा बलि ने अपने सिर पर स्वयं वामन भगवान का चरण धारण किया । भगवान ने धन्वन्तरि के रूप में अवतार ग्रहण किया । औषधियों का प्रचार कर सम्पूर्ण प्रजा की रक्षा की। भगवान धन्वन्तरि अपने नाम से बड़े-बड़े रोगियों के रोग तत्काल नष्ट कर देते थे । क्षत्रियों का गर्व (घमण्ड ) तथा उनके अत्याचार बढ़ जाने पर भगवान ने परशुराम के रूप में अवतार ग्रहण किया । पृथ्वी को २१ बार क्षत्रियों से रहित कर दिया। इस प्रकार उन्होंने पृथ्वी का भार कम किया । पृथ्वी का भार कम करने के लिए मायावी भगवान ने अपनी कलाओं से भरत, शत्रुघ्न, और लक्ष्मण के साथ इक्ष्वाकु वंश में राम का अवतार लिया। भगवान राम ने रावण आदि दैत्यों को मार कर पृथ्वी का भार कर किया । पृथ्वी का भार कम करने के लिए भगवान राम ने अपने सफेद और काले बालों से बलराम और श्रीकृष्ण का अवतार ग्रहण किया । भगवान श्री कृष्ण ने बचपन में पूतना राक्षसी का वध किया । तीन मास की आयु में भारी भरकम छकड़े को अपने पैरों से उलट कर एक राक्षस का वध किया | जब भगवान श्री कृष्ण घुटनों के बल चलने लगे तो यमुलार्जुन वृक्षों के बीच में पहुँचकर उन्हें उखाड़ कर उनका उद्धार किया। भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग के फन पर चढ़ कर नृत्य करते हुए उसका वध कर यमुना से बाहर निकाला । इस प्रकार यमुना । जी के जल को पवित्र किया। उसी रात को जब यमुना नदी के तट पर बहुत से व्यक्ति सो रहे थे तो उनकी दावानल अग्नि से रक्षा की। माता यशोदा द्वारा रस्सी से बाँधे जाते समय रस्सी हर क्षण दो अँगुल छोटी होती जा रही थी। जब माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को मिट्टी खाने के लिए मना किया और जब उन्होंने पूछा कि तूने मिट्टी खाई है तो भगवान ने अपना मुँह खोलकर उन्हें चौदह भुवनों के दर्शन कराए । नन्द बाबा को अजगर के मुख से एवं वरुण पाश से बचाया। जब मयदानव के बेटे व्योमासुर ने गोपों को पहाड़ की गुफा में बन्द कर दिया तब भगवान श्री कृष्ण ने उसका वध करके गोपों की रक्षा की। उन्होंने सात वर्ष की अवस्था में गोवर्धन पर्वत को सात दिन तक अपनी अँगुली पर उठाए रखकर देवताओं के राजा इन्द्र का गर्व चूर-चूर किया । वृन्दावन में रास की इच्छा से आई हुई सब गोपियों को कुबेर के सेवक शंखचूड ने अपहरण कर लिया, तब भगवान श्री कृष्ण ने शंखचूड के सिर को धड़ से अलग करके गोपियों को स्वतन्त्र कराया । प्रलम्बासुर, धेनुकासुर, बकासुर, केशी, अरिष्टा आदि अनेकों दैत्यों का वध भगवान श्री कृष्ण ने किया । उन्होंने चाणूर आदि पहलवानों और कुवलियापीड हाथी, कंस, कालयवन, भौमासुर, द्विविद, मिथ्यावासुदेव, साल्व, दन्तवक्र, बल्वल, वानर और राजा नग्नजीत के सात बैलों का वध किया। विदुरथ, शम्बरासुर, और रुक्मी आदि राजाओं तथा मत्स्य कैकय, कम्बोज, कुरु और सुञ्जय आदि का वध करके भगवान श्री कृष्ण अपने धाम को सिधार गए।
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