भक्तों भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते है इसका प्रमाण यह है कि जब भस्मासुर ने शिव जी से किसी के भी ऊपर हाथ रखकर उसको भस्म करने का वरदान प्राप्त किया तो भस्मासुर ने वरदान प्राप्त कर सबसे पहले पार्वती माता पर ही कुदृष्टि डाल दी । ऐसा देख शिव जी ने भस्मासुर के इस घोर पाप के लिए उसे चेतावनी दी लेकिन पापी भस्मासुर ने शिव जी के दिए हुए वरदान का दुरुपयोग कर शिव को ही नष्ठ कर पार्वती को प्राप्त करना चाहा । भस्मासुर को पता था कि शिव के रहते वह पार्वती को प्राप्त नही कर सकता इसलिए वह शिव को नष्ठ करने के लिए शिव जी के ऊपर ही हाथ रखने के लिए उनकी तरफ बढ़ा । भस्मासुर को अपनी तरफ बढ़ता देख शिव को अपने वरदान की महिमा व गरिमा बनाए रखने के लिए विवशतावश समाधि स्थल छोड़कर वहाँ से भागना पड़ा । यह सब होता देख माता पार्वती वहाँ से अंतर्ध्यान हो गयी । पार्वती को प्राप्त करने की लालसा में भस्मासुर शिव जी के ऊपर हाथ रखने के लिए उनके पीछे दौड़ने लगा जब शिव को स्वयं की रक्षा हेतु पर्वतश्रृंखलाओ में दौड़ते दौड़ते छिपते छिपाते काफी समय बीत गया और अपनी रक्षा करने में कोई उपाय समझ नही आया तब उन्होंने विष्णु भगवान से पुकार कि हे प्रभु मेरी रक्षा करें , मेरी रक्षा करें भगवन । तब अपने भक़्त की रक्षा करने के लिए विष्णु जी ने पार्वती से भी सुन्दर एक अप्सरा का रूप धरकर उन पर्वतश्रृंखलाओ में भस्मासुर के सामने आ गए । पर्वतों के मध्य अचानक पार्वती से भी सुन्दर अप्सरा को देख भस्मासुर के मन मे उस सुन्दर अप्सरा को भी प्राप्त करने की लालसा हुई और वह उसको कहने लगा हे सुंदरी तुम इन पर्वतों के मध्य क्या कर रही हो क्या तुम्हारा कोई घर नही । तब सुन्दर अप्सरा ने कहा ये पर्वत ही मेरा घर है और मै इन पर्वतों में अकेली रहती हूँ यह सुनकर भस्मासुर ने कहा कि तुम अकेली रहती हो क्या तुम्हारा पति नही तब अप्सरा ने कहा नही मेरा कोई पति नही क्योकि मैंने विवाह नही किया भस्मासुर ने जब विवाह न करने का कारण पूछा तो अप्सरा ने कहा कि वह उसी से विवाह करेगी जो गुणों में उसके समान हो तब भस्मासुर ने अपने गुणों और वरदान की वर्णन किया लेकिन अप्सरा ने कहा कि मै तभी तुम संग विवाह कर सकती हूँ जब तुम अपने इन गुणों के साथ साथ मेरे समान नृत्य में भी निपुण होने चाहिए तब भस्मासुर ने कहा कि मै नृत्य में भी तुम्हारे समान नृत्य कर सकता हूँ । यह सुनकर अप्सरा ने कहा मुझे तुहारी इस बात पर विश्वास नही क्या तुम इसकी परीक्षा देने के लिए त्यार हो तो भस्मासुर ने कहा मुझे मंजूर है और दोनों ने नृत्य करना आरंभ किया । नृत्य करते करते एक कला में जब अप्सरा रूप धरे भगवान विष्णु ने चतुराई से अपने सर के ऊपर हाथ किया तब भस्मासुर नृत्य में समानता रखने में भूल वश अपने सर के ऊपर हाथ कर बैठा और ऐसा करते ही भस्मासुर स्वयं ही भस्म हो गया । भस्मासुर के भस्म होते ही भगवान विष्णु अप्सरा रूप से अपने विष्णु रूप में आ गए और शिव को पुकार लगाई तब शिव जी वहाँ पर आ गए और भस्मासुर को भस्म हुआ देख अपने प्रभु को नमन कर कोटि कोटि धन्यवाद किया ।