एक बार द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ वन में गईया चरा रहे थे तो गईया चराते चराते हुए सभी बाल ग्वालों को भूख लगी तो सभी अपने परम सखा श्री कृष्ण कन्हइया को कहने लगे मित्र हमें भूख लगी है चलो भोजन करते है इसलिए सभी जो कुछ अपने अपने घर से लेकर आए थे और कन्हइया जो सभी के लिए अपने घर से माखन भोजन लेकर आए थे सभी एक मण्डली में इक्कठे होकर भोजन और माखन खाने लगे। कन्हइया सबसे पहले अपने बाल सखाओं के मुंह मे भोजन और माखन देते फिर उनके मुख से जो कुछ बचा हुआ कन्हइया के हाथ मे रह जाता उसे खुद खा लेते । यह सब होते हुए ब्रह्मलोक से ब्रह्मा जी भी देख रहे थे । ब्रह्मा जी को बहुत घृणा हुई कि यह कैसा परब्रह्म है जो इन छोटी जाति वालो की झूठन खाकर भी आन्नदित हो रहा है उन्होंने सोचा क्यों ना इस बात की परीक्षा ली जाए कि यह सत्य में परब्रह्म है या नही। ऐसा देख उन्होंने एक योजना बनाई पहले तो वहाँ से गउओं को गायब कर ब्रह्मलोक में ले गए.. और फिर जब कन्हइया उनकी खोज में निकले तो पीछे से ग्वाल बालको को भी गायब कर दिया । कन्हइया को गउओं न मिलने पर वापिस आए तो ग्वाल बालको को वहाँ न पाकर बड़े अचंभित हुए ।श्री कृष्ण ने जब ध्यानमग्न होकर देखा तो सभी ग्वाल और गउएँ ब्रह्मलोक में बैठे है । यह सब देख ब्रह्मा जी का मान भंग करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने आपको कई भागों में विभक्त कर के उन समस्त ग्वाल बालों और गाय बछड़ों का रूप स्वयं धर लिया। ब्रह्मा जी ने तो उन सभी ग्वाल बालको और गउओं को कुछी क्षणों में ब्रह्मलोक पहुचा दिया लेकिन जब सभी ग्वाल और गउएँ पृथ्वी पर लौटकर आए तो थ्यूरी ऑफ रेल्ट्विटी ऑफ टाइम के सिद्धांत के अनुसार इतने में पृथ्वी पर एक साल बीत चुका था यहाँ पृथ्वी पर किसी को भी यह मल्लूम नही हुआ कि यह सभी ग्वाल बाल गउएँ असली नही है परन्तु श्री कृष्ण उनका रूप धरे घूम रहे है जब कुछ ही क्षण बाद ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर देखा कि जिन ग्वाल बालको और गउओं को अभी अभी वह ब्रह्मलोक में छोड़कर आए है वह सब यहाँ श्री कृष्ण के साथ खेल खा रहे है । ब्रह्मा जी यह देख चकरा गए और मन ही मन प्रभु श्री कृष्ण के चरणों का ध्यान किया और कहा प्रभु मुझे सत्य के दर्शन कराओ , प्रभु मुझे सत्य के दर्शन कराओ… तो यह देख ब्रह्मा जी पर भगवान श्री कृष्ण को दया आ गयी और अपनी माया का पर्दा हटाकर ब्रह्मा जी को दिखा कि स्वयं श्री कृष्ण भगवान उन सभी का रूप धरे खेल खा रहे है यह सब देख ब्रह्मा जी को बड़ा पछतावा हुआ और वह त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए कन्हइया के चरणों मे गिर कर क्षमा मांगने लगे । तब श्री कृष्ण कन्हइया ने ब्रह्मा जी को क्षमा करते हुए यह स्मरण कराया कि हे ब्रह्मा देव समस्त प्राणियों के रचनाकार होते हुए भी आपके अंदर से यह उच्च नीच का भेद भाव क्यो नही मिटा आप केवल शरीरों की रचना करते है जब उनमें मेरा ज्योति रूपी तेज आत्मा प्रतिबिंबित हो जाती है तभी उनको जीवन प्राप्त होता है।