एक बार भगवान नारायण अपनी शेष नाग सईया पर ध्यान मगन लेटे हुए थे । उसी समय नारद मुनि नारायण नारायण करते हुए वहाँ पहुँचे और नारायण भगवान को प्रणाम किया । लेकिन नारायण भगवान ध्यानमग्न ही रहे । जब नारदमुनि काफी समय तक नारायण भजन करते रहे तब काफी समय बाद नारायण भगवान ने ध्यानमग्न से आँखे खोली । तो नारदमुनि ने नारायण भगवान से पूछा – प्रभुवर आप कहा ध्यानमग्न थे जो आपके परमभक्त को भी इंतजार करना पड़ा । तब नारायण भगवान जी बोले – है एक किसान जो आपसे भी बड़ा भक़्त है मेरा ध्यान उसी की ऒर ध्यान था मेरा । नारद को बड़ा आश्चर्य हुआ और बोला मै पूरा दिन इस ब्रह्मांड में नारायण नारायण करते हुए घूमता रहता हूँ । आपका मुझसे बड़ा भक़्त कौन हो सकता । तब नारायण भगवान जी बोले – नारद अगर तम्हें संदेह है तो मै अभी तुम्हारा संदेह दूर किए देता हूँ नारद तुम एक कार्य करो मै तुम्हें एक दीपक देता हूँ तुमने इस दीपक को हाथों में लेकर पूरा दिन इस ब्रह्माण्ड का भृमण करना है और इस दीपक को बुझने नही देना है । तब यह निश्चित हो जाएगा कि आप और किसान में से मेरा कौन बड़ा भक़्त है । यह सुनते ही नारद जी ने दीपक लिया और उसके चारों तरफ हाथों से ओट करकर हवा आदि से बचाव करते हुए ब्रह्माण्ड का भृमण करने लगे । शाम को नारदमुनि जब नारायण भगवान जी के पास पहुँचे और उनसे बोले देखों प्रभु आपका सबसे बड़ा भक़्त मै ही हूँ मैने दीपक को बुझने नही दिया। तब नारायण भगवान जी बोले – अच्छा नारद तुम ये बताओ जब तुम भृमण कर रहे तो मेरा कितनी बार तुमने स्मरण किया । नारद बोले – प्रभु एक बार भी नही ….नारायण जी बोले मेरा स्मरण क्यो नही किया नारद…. तब नारद ने कहा स्मरण कैसे करता प्रभु मेरा ध्यान तो दीपक की तरफ था मैने उसको भुजने नही देना था । तब नारायण भगवान जी बोले तो हो गया निश्चित कि आपसे बड़ा भक़्त मेरा किसान है जो पूरा दिन मेरा दिया हुआ कर्म ( कार्य ) को भी करता है और सुबह शाम दो वक़्त मेरा नाम भी स्मरण करता है।