एक बार यह संसार ऐसे राजाओं की अनावश्यक सैनिक शक्ति से बोझिल हो गया, जो वास्तव में असुर थे, किन्तु अपने आपको राजा मान रहे थे। तब सारा संसार विक्षुब्ध हो उठा और पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी, जिसे भूमि कहते हैं, इन आसुरी राजाओं से उत्पन्न अपनी विपदाओं को बताने के लिए ब्रह्माजी के पास गई। भूमि ने गऊ का रूप धारण किया और वह आँखों में आँसू भर कर ब्रह्मा के समक्ष प्रकट हुई। वह शोकार्त थी और भगवान् की करुणा जगाने के लिए रो रही थी। उसने पृथ्वी की विपदाग्रस्त स्थिति का वर्णन किया। इस वृत्तान्त को सुनकर ब्रह्मा अत्यन्त दुखित हुए। वे तुरन्त क्षीर-सागर के लिए चल पड़े जहाँ भगवान् विष्णु निवास करते हैं। ब्रह्माजी के साथ शिवजी इत्यादि सारे देवता थे और भूमि भी उनके साथ हो ली। क्षीर-सागर के तट पर आकर ब्रह्माजी भगवान् विष्णु को, जिन्होंने पहले वराह का दिव्य रूप धारण करके पृथ्वी लोक की रक्षा की थी, प्रसन्न करने का उपाय करने लगे । वैदिक मंत्रों में पुरुष-सूक्त नामक एक विशेष प्रकार की प्रार्थना है। सामान्य रूप से देवतागण इसी पुरुष सूक्त का उच्चारण करके श्रीभगवान् विष्णु को नमस्कार करते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जब भी किसी लोक में कोई उपद्रव होता है, उस लोक का अधिष्ठाता देव इस ब्रह्माण्ड के स्वामी ब्रह्मा के पास जा सकता है और ब्रह्माजी भी परमेश्वर विष्णु के पास जा सकते हैं, किन्तु वे वहीं प्रत्यक्ष दर्शन नहीं, अपितु क्षीर-सागर के तट पर खड़े होकर उनका प्रत्यक्ष दर्शन कर सकते हैं। इस ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत श्वेतद्वीप नामक एक लोक है, जिसमें क्षीर-सागर है। विविध वैदिक वाङ्मय से ज्ञात होता है कि जिस प्रकार इस लोक में लवण -सागर है, उसी से प्रकार अन्य लोकों में भी अनेक प्रकार के तरल सागर हैं। कहीं क्षीर-सागर है, तो कहीं तेल-सागर और कहीं सुरा – सागर तथा अन्य प्रकार के सागर हैं। पुरुष-सूक्त ही वह आदर्श प्रार्थना (स्तुति) है, जिसे देवतागण क्षीरोदकशायी श्रीभगवान् को प्रसन्न करने के लिए पढ़ते हैं। क्षीर-सागर में शयन करने के कारण वे क्षीरोदकशायी विष्णु कहलाते है वे ही श्री भगवान है जिनसे इस ब्रह्माण्ड के समस्त अवतार प्रकट होते है।