भक्तों प्रत्येक व्यक्ति सत्य की खोज में लगा है। यही जीवन को दार्शनिक रीति है। देवतागण जानकारी देते हैं कि परम सत्य कृष्ण ही हैं। जो पूर्णत: कृष्णभावनाभावित हो जाता है, वह परम सत्य को प्राप्त कर सकता है। कृष्ण ही परम सत्य है। शाश्वत काल की तीन अवस्थाओं में सत्य हैं, सापेक्ष सत्य नहीं । काल भूत, वर्तमान तथा भविष्य में विभाजित है। भौतिक जगत में प्रत्येक वस्तु परम काल द्वाराभूत, वर्तमान तथा भविष्य के द्वारा नियंत्रित हो रही है; किन्तु सृष्टि के पूर्व कृष्ण विद्यमान थे; सृष्टि के हो जाने पर प्रत्येक वस्तु कृष्ण पर आश्रित है और जब यह सृष्टि समाप्त होगी, तो कृष्ण बचे रहेंगे। अतः वे सभी परिस्थितियों में परम सत्य हैं। यदि भौतिक जगत में सत्य है, तो यह परम सत्य से उद्भूत है। यदि इस भौतिक जगत में कहीं वैभव है, तो इस के स्रोत कृष्ण ही हैं। यदि संसार में कुछ ख्याति है, तो कृष्ण ही उसके कारण हैं। यदि संसार में कोई बल (शक्ति) है, तो इस शक्ति के कारण कृष्ण हैं। यदि संसार में कोई ज्ञान तथा शिक्षा है, तो उसके कारण स्वरूप कृष्ण हैं। इस तरह कृष्ण सारे सत्यों के स्रोत हैं।