पूतना नाम की एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। उसका एक ही काम था, बच्चों को मारना । कंस की आज्ञा से एक दिन वह नन्दबाबा के गोकुल के पास जाकर उसने अपने को एक सुन्दर युवती में परिवर्तित कर लिया और गोकुल में प्रवेश कर गई । वह अनायास ही नन्दबाबा के घर में घुस गई। उस समय श्री कृष्ण शैय्या पर लेटे हुए थे। पूतना को आया देखकर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी आँखें बन्द कर लीं। इधर भयानक राक्षसी पूतना ने बालक श्री कृष्ण को अपनी गोद में उठाया और अपना स्तन उनके मुँह में दे दिया। उसने अपने स्तनों पर ज़हर का लेप लगा रखा था। भगवान श्री कृष्ण ने क्रोध में भरकर दोनों हाथों से उसके स्तनों को ज़ोर से दबाकर उसके प्राणों के साथ उसका दूध पीने लगे ( वे स्वयं दूध पी रहे थे और उनका क्रोध उसके प्राण पीने लगा ) । पूतना सटपटाकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसके नेत्र उलट गए। उसकी चिल्लाहट का वेग इतना तीव्र था कि सातों पाताल और दिशाएँ गूंज उठीं। वह राक्षसी रूप में प्रकट हो गई। उसके शरीर से प्राण निकल गए। मुँह फट गया, बाल बिखर गए और हाथ पैर फैल गए । जिस प्रकार इन्द्र के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर गिर पड़ा था, वैसी ही बाहर गोष्ठ में आकर वह गिर पड़ी । पूतना के उस शरीर को देखकर सब ग्वाल और गोपी डर गए । जब गोपियों ने देखा कि बालक श्री कृष्ण उसकी छाती पर खेल रहे हैं तो उन्होंने श्री कृष्ण को उठा लिया। इसके बाद यशोदा और रोहिणी ने गोपियों के साथ मिलकर गाय की पूँछ घुमाने आदि उपायों से श्री कृष्ण नज़र उतारी। यशोदा जी ने स्तनपान कराया और फिर उन्हें पालने में सुला दिया । भगवान ने पूतना का स्तनपान किया था। क्योकि यह पूतना अपने पूर्व जन्म में राजा बली की पुत्री थी और जब इससे पूर्व जन्म में वामन भगवान देवताओं की सहायता हेतु धरती पर अवतरित हुए थे तब एक दिन वामन रूप में भगवान तीन पग भूमि लेने हेतु राजा बलि की यज्ञशाला में आये तब बलि की पुत्री वामन भगवान के सुंदर रूप से मोहित होकर उन्हें अपनी छाती से लगाकर दूध पिलाने की इच्छा अपने हृदय में धारण की । तब वामन रूप में खड़े वामन भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने हेतु ह्रदय से अंदर ही अंदर तथास्तु कह दिया । और जब वामन भगवान ने विराट रूप धरकर दो पग में सारी त्रिलोकी को नाप कर बलि का सारा सम्राज्य छीन लिया तब राजा बलि की पुत्री ने अपने पिता के साथ हुए इस छल को देखकर हृदय में इच्छा प्रकट की कि अगर ऐसा छलिया को तो मै अपनी छाती से दूध की जगह विष पिला दूँ तब भी प्रभु वामन ने अंदर ही अंदर हृदय में राजा बलि की पुत्री के लिए तथास्तु कह दिया और इस तरह द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण ने पूतना के रूप में आयी राजा बलि की पुत्री की दोनों इच्छाओं को पूर्ण किया और पूतना का उद्धार किया।