एक बार शूरसेन के पुत्र वसुदेव देवकी को ब्याह कर अपनी नवपरिणीता पत्नी के साथ रथ पर चढ़कर अपने घर जा रहे थे । देवकी के पिता, देवक, ने प्रचुर दहेज दिया था, क्योंकि वह अपनी पुत्री को अत्यधिक चाहता था। उसने सैकड़ों रथ दिये थे, जो पूर्णतया स्वर्णमण्डित थे। उस समय उग्रसेन का पुत्र कंस अपनी चचेरी बहन देवकी को प्रसन्न करने के लिए वसुदेव के रथ के घोड़ों की रास स्वेच्छा से अपने हाथ में लेकर हाँकने लगा था। वैदिक सभ्यता की प्रथानुसार जब कन्या का ब्याह होता है, तो उसका भाई अपनी बहन तथा अपने बहनोई को उनके घर ले जाता है। नवविवाहिता कन्या को अपने पिता के परिवार का विछोह न खले, इसलिए भाई उसके साथ तब तक जाता है जब तक वह अपनी ससुराल न पहुँच जाये। देवक ने जो पूरा दहेज दिया था वह इस प्रकार था: स्वर्णहारों से मण्डित ४०० हाथी, १५,००० सुसज्जित घोड़े तथा १,८०० रथ। उसने अपनी पुत्री के साथ जाने के लिए २०० सुन्दर बालिकाएँ भी भेजने की व्यवस्था की थी। क्षत्रियों की विवाह-प्रणाली, जो भारत में अब भी प्रचलित है, बताती है कि जब क्षत्रिय का विवाह हो, तो दुलहिन के अतिरिक्त उस की कुछ दर्जन तरुण सहेलियाँ भी राजा के घर जाँये। रानी की अनुचरियाँ दासी कहलाती हैं, किन्तु वास्तव में वे रानी की सहेलियों की तरह कार्य करती हैं। यह प्रथा अनादि काल से प्रचलित है और कम से कम ५००० वर्ष पूर्व भगवान् कृष्ण के अवतार के भी पहले से खोजी जा सकती है। इस प्रकार वसुदेव अपनी पत्नी देवकी के साथ दो सौ सुन्दर कन्याएँ श्री लेते आये । जब दूल्हा तथा दुलहन रथ में जा रहे थे, तो इस शुभ मुहूर्त की जानकारी देने के लिए अनेक प्रकार के बाजे बज रहे थे। शंख, बिगुल, ढोल तथा मृदंग एकसाथ मिलकर मधुर संगीत (समूह वादन) की ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे। जुलूस अत्यन्त मनोहर ढंग से निकल रहा था और कंस रथ को हाँक रहा था। तभी आकाश से अचानक एक आश्चर्यजनक ध्वनि गूँजी जिसने विशेष रूप से कंस को उद्बोधित किया, “हे कंस! तुम कितने मूर्ख हो! तुम अपनी बहन तथा बहनोई का रथ हाँक रहे हो किन्तु तुम यह नही जानते कि तुम्हारी इसी बहन की आठवीं सन्तान तुम्हारा वध करेगी । आकाशवाणी के सुनते ही कंस ने देवकी के केश पकड़ लिए ओर उसे अपनी तलवार से मारना चाहा किन्तु वासुदेव ने कंस को रोक दिया और समझाते हुए कहा कि यदि यह आकाशवाणी सत्य है तो मै तुम्हे वचन देता हूँ कि मै स्वयं देवकी की आठवीं सन्तान आपको सोंप दूँगा।