भगवान श्री कृष्ण ने चौपाल में जाकर नंदरॉय, उपन्द आदि गोपों को स्पष्ट शब्दों में कह दिया, बाबा आज से ब्रज में देवराज इंद्र की पूजा नहीं होगी बल्कि गिरिराज गोवर्धन की पूजा होगी। यदि आप लोगों ने मेरी बात नहीं मानी तो वृन्दावन छोड़कर चला जाऊँगा फिर कभी लौट कर नहीं आऊँगा। श्रीकृष्ण का रूठना तो उनको गवारा था ही नहीं इसलिए सभी एक स्वर में बोले नहीं नहीं कान्हा जैसा तुम बोलोगे वैसा ही करेंगे। किंतु इस बार तो कर लेने दें सारी सामग्री जा चुकी है, गोवर्धन की पूजा अलग सामग्री लेकर कर लेंगे कान्हा ने कहा नहीं नहीं इसी सामग्री से ही गोवर्धन की पूजा करनी है, गिरिराज गोवर्धन मुझे अत्यंत प्रिय है और देवराज इंद्र की पूजा आज और अभी से बंद करनी है। सभी ब्रजवासी सहमत हो गए और सारी भोज्य सामग्री लेकर गोवर्धन की तलहटी में जाकर गिरिराज की पूजा करी। जब देवराज इन्द्र को ज्ञात हुआ कि ब्रजवासियों ने उसकी पूजा बंद कर दी है तो तत्काल संवर्तक बदल को आदेश दिया कि जाओ प्रलयकारी वर्षा करो। उन ब्रजवासियों ने उस कृष्ण के कहने से हमारी पूजा बंद की है अब हम ब्रजवासियों को जीवित नहीं छोड़ेंगे। चारों तरफ़ भीषण वर्षा होने लगी सभी ब्रजवासी दौड़ कर नन्द भवन आए और कहने लगे हे कन्हैया आपके कहने से हमने इन्द्र की पूजा बंद करी थी अब आप ही इन्द्र के कोप से हमें बचाओ।भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ब्रजवासियों डरने की कोई बात नहीं है, इन्हीं गिरिराज की पूजा करने से इन्द्र रुष्ट हुआ है अब ये गिरिराज ही आपकी रक्षा करेंगे ऐसा कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने वामहस्त की कनिष्ठका अंगुली के नाख़ून के ऊपर गिरिराज गोवर्धन को धारण कर लिया। सभी ब्रजवासी अपने सामान सहित उसके नीचे आ गए। इन्द्र ने वायुदेव को आदेश दिया कि जाओ इस पर्वत को गिरा दो ताकि ब्रजवासियों की दबकर मृत्यु हो जाए और स्वयं भी वज्रपात करने लगा। सात दिन सात रात तक मुसलाधार वर्षा, तेज वायु और वज्रपात लगातार चलता रहा। चारों ओर ब्रजमंडल में सागर बन गया किन्तु गोवर्धन के नीचे पानी नहीं भरा क्योंकि भगवान ने वासुकी सर्प को आदेश दिया था जिससे वासुकी सर्प गोवर्धन के चारों ओर लिपट गया था जिससे पानी नहीं भरा। अब भगवान ने अपना सौंदर्य बढ़ाना शुरू किया। वैसे तो भगवान अद्भुत सुन्दर हैं किन्तु सुंदरता नामक गुण का इतना विस्तार किया कि जो जहां देख रहा था, वहीं देखता रह गया, पलक झपकते नहीं बनी। भगवान का इतना सुंदर स्वरूप कि सभी ब्रजवासी सात दिन सात रात बिना भूख प्यास के केवल भगवान श्री कृष्ण को देखते रहे। किसी को फ़ुरसत ही नहीं हुई कि वहाँ से दृष्टि हटा सकें। तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण ने अगस्त ऋषि का स्मरण किया कि आइए मैंने पूर्वकाल में आपको जल पिलाने का वचन दिया था अब जल पीने का अवसर आ गया है, व्रजमंडल में सागर तुल्य जल भरा हुआ है इसे पी जाओ अगस्त ऋषि आए और एक ही घूँट में सारा जल पी गये। थोड़ी ही देर में वहाँ पर धूल उड़ने लगी। इंद्र देखकर हैरान रह गया। वासुकी सर्प भी चला गया। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर सभी ब्रजवासी गोवर्धन के नीचे से बाहर आ गये और भगवान श्री कृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को यथास्थल विराजमान किए।