एक दिन यदुवंशियों के कुल पुरोहित श्री गर्गाचार्य नन्दबाबा के घर पधारे। उन्हें देखकर नन्दबाबा ने खड़े होकर उनके चरणों में प्रणाम किया। उन्होंने गर्गाचार्य जी से निवदेन किया कि मेरे इन दोनों बालकों का नामकरण संस्कार गर्गाचार्य जी ने कहा- यह रोहिणी का पुत्र है । इसलिए इसका एक नाम रौहिणेय और दूसरा नाम राम तथा इसका नाम बल भी है। अर्थात् यह बालक बलराम के नाम से प्रसिद्ध होगा और यह दूसरा साँवला सा बालक है इसका नाम श्री कृष्ण होगा। नन्दजी यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेव जी के घर भी पैदा हुआ था, इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे श् री वसुदेव भी कहेंगे। यह बालक साक्षात् भगवान नारायण के समान है। इससे प्रेम करने वालों को भीतर या बाहर किसी भी प्रकार के शत्रु नहीं जीत सकते। इतना बताकर श्री गर्गाचार्य जी अपने आश्रम को प्रस्थान कर गए। जब उनके दोनों नन्हें-नन्हें शिशु अपने शरीर पर कीचड़ का अंगराग लगाकर लौटते तब उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग जाते । माताएँ उन्हें दोनों हाथों से गोद में लेकर हृदय से लगा लेतीं और दूध पिलाने लगतीं । जब बलराम और कुछ बड़े हुए तो बछड़ों की पूँछ पकड़ने लगे। बछड़े भागते तो उनके साथ भागते-भागते ज़मीन पर गिर जाते और बछड़े उन्हें घसीटते हुए दौड़ने लगते । गोपियाँ घर का काम धन्धा छोड़कर उनकी बाल लीलाओं का आनन्द उठातीं। वे बछड़ों को गायों के पास खोल देते। एक दिन सब गोपियाँ मिलकर यशोदा जी के पास गईं और कृष्ण कन्हैया की शिकायत करने लगीं। उन्होंने कहा- यह दूध-दही चुराकर खा जाता है तथा वानरों को खिला देता। मटकों को फोड़ देता है । इस प्रकार दोनों भाई बलराम और श्री कृष्ण माखन चोरी की लीलाएँ करते और गोपियों को रिझाते रहते थे । एक दिन दोनों भाई ग्वाल बालकों के साथ खेल रहे थे। उन लोगों ने यशोदा जी से कन्हैया की शिकायत की कि इसने मिट्टी खाई है। यशोदा मैया ने डाँटकर कहा- क्यों रे नटखट ! तू बहुत ढीठ हो गया है। तूने मिट्टी क्यों खाई ? इस पर श्री कृष्ण ने मुँह फाड़कर दिखाते हुए कहा- माँ! मैंने मिट्टी नहीं खाई है । ये सब झूठ बोल रहे हैं । यशोदा जी को मुँह में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, चन्द्रमा, तारे, पहाड़ आदि दिखाई दिए। तब माता कृष्ण का तत्त्व समझ गईं। भगवान ने उनके हृदय में योगमाया का संचार कर दिया | यशोदा जी वह घटना भूल गईं और अपने दुलारे को गोद में उठा लिया । नन्द और यशोदा को उनका अपार सुख मिलने लगा । नन्द बाबा पूर्व जन्म में एक श्रेष्ठ वसु थे। उनका नाम द्रोण और पत्नी का धरा था। उन्होंने ब्रह्माजी के आदेशों का पालन करने की इच्छा से उनसे कहा – भगवन् ! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें, तब जदीश्वर भगवान श्री कृष्ण में हमारी अनन्य भक्ति हो । ब्रह्माजी ने कहाऐसा ही होगा। वे ही परम यशस्वी भगवन्तयं द्रोण ब्रज में पैदा हुए और उनका नाम रखा गया नन्द | उनकी पत्नी धरा इस जन्म में यशोदा के नाम से उनकी पत्नी बनीं। ब्रह्माजी की बात सत्य कहने के लिए भगवान श्री कृष्ण बलराम जी के साथ ब्रज में रहकर समस्त ब्रजवासियों को अपनी बाल लीलाओं से आनन्दित करने लगे।