भगवान श्रीकृष्ण की अत्यंत प्रिय नैमित्तिक लीला होती है *श्री गोवर्धन लीला*। गोवर्धन लीला के दो कारण है एक है अतंरंग कारण और दूसरा बह्या कारण। बाह्या करण में भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त समुदाय को, पूरे संसार को ये संदेश देना चाहते हैं कि जो वैष्णव हैं, मेरी पूजा करते हैं उसे अन्य अन्य अभक्त देवताओं की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। अंतरंग व गोपनीय कारण :- जैसे भगवान ने अपनी माता यशोदा की सखियों की विरह वेदना दूर करने के लिए माखन चोरी लीला की थी “कैसी विरह-वेदना ? यशोदा मईया की जितनी भी सखियां हैं वह सभी कृष्ण को अपना ही पुत्र मानती है और अपने बेटों से उतना प्रेम नहीं करतीं जितना वो कृष्ण को करती हैं। “ऐसा भागवत के दसवें स्कन्ध के तेरहवें अध्याय में लिखा है”। (यशोदा माता की सखियां भी सैंकड़ों हैं। हमेशा नन्द भवन में उनका जमावड़ा लगा रहता था। एक दिन माता यशोदा ने क्रोध किया और सभी सखियों को कह दिया कि जबतक कोई विशेष काम न हो यहां मत आना। सभी सखियां चली तो गई किन्तु छुप छुप कर कान्हा के विरह में रोने लगी। भगवान उन माताओं की मन: स्थिति जानते थे इसलिए उन्होंने योजना बनाई कि वह उन सबके घर से माखन चोरी करेंगे व पकड़े जाएंगे ताकि वह माताएं उनको देख सकें व वात्सल्य का अभाव भी न रहे) ऐसे ही वृन्दावन में जब भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया था तो वहाँ पर राधा आदि गोपियां भी यमुना के तट पर आयी थी । उस रात्रि में सभी ने यमुना के निकटतम वन, वृन्दावन में ही विश्राम किया जहां रात्रि में कंस के असुरों ने जंगल में आग लगा दी तो सभी ने श्री कृष्ण को आत्मभाव से पुकारा व श्री कृष्ण ने दावानल पान कर लिया (उस आग को पी लिया) श्री कृष्ण की इन दो लीलाओं को राधा आदि गोपियों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा था। कालिया नाग पर नृत्य करते हुए और दावानल का पान करते हुए। ये राधा आदि गोपियाँ गोलोक में श्री कृष्ण की ह्लादनीशक्ति और उसके अंश हैं इनके हृदय में नित्यसिद्ध श्री कृष्ण प्रेम है और नित्यसिद्ध कृष्ण प्रेम, श्री कृष्ण का दर्शन करते ही प्रकट हो गया है “जिसको कहते हैं पूर्व राग जागृत होना”। पूर्व राग बहुत तीव्र वेदना होती है। उस तीव्र वेदना के कारण उन सभी गोपियों ने कात्यायनी नामक योगमाया की पूजा की व एक महीना व्रत किया कि श्री कृष्ण हमारे पति बन जाएं। कात्यायनी ने प्रकट होकर उनको वर दिया कि श्री कृष्ण अवश्य तुम्हारे पति बनेंगे मगर विलम्ब से। इस प्रकार कात्यायनी की पूजा करने से भी श्री कृष्ण से मिलना नहीं हो रहा था। श्री कृष्ण की सखियाँ (जो सात से नौ वर्ष तक की आयु की ) (श्री कृष्ण आठ वर्ष के हैं) जो श्री कृष्ण के विरह में निरन्तर रोती रहती थी। श्री कृष्ण तो सर्व अन्तर्यामी है ही तो उन्होंने देखा कि मेरी सखियाँ मेरे विरह में निरन्तर रुदन कर रही हैं और लोकलाज व लोकभय के कारण ये मेरे समीप भी नहीं आ सकतीं, मुझे अपना सामीप्य देना है। अपनी सामीप्य देने के लिए ही भगवान ने गोवर्धन लीला की। यह गोवर्धन लीला का मूल व अन्तरंग कारण है।