भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रलम्बासुर उद्धार - ऐसा सुन्दर वन देखकर श्याम सुन्दर श्री कृष्ण और ' गौर वर्ण बलराम जी ने उसमें विहार करने की इच्छा व्यक्त की। आगे-आगे गौएँ चलीं, पीछे पीछे ग्वाल बाचा और बीच में अपने बड़े भाई के साथ बाँसुरी बजाते हुए श्री कृष्ण जिस समय श्री कृष्ण नाचने लगते, उस समय कुछ ग्वाल बाल गाने लगते और कुछ बाँसुरी तथा सींग बजाने लगते । कुछ हथेली से ही ताल देते तो कुछ वाह-वाह करने लगते । इस प्रकार बलराम और श्याम वृन्दावन की नदी, पर्वत, घाटी, कुँज, वन और सरोवरों में वे सभी खेल खेलते जो साधारण बच्चे संसार में खेला करते हैं । श्री एक दिन जब बलराम और श्री कृष्ण ग्वाल बालों के साथ उस वन में गौएँ चरा रहे थे, तब ग्वाल बालों के वेष में प्रलम्ब नाम का एक असुर आया। उसकी इच्छा थी कि मैं श्री कृष्ण और बलराम को हर ले जाऊँ । श्री कृष्ण उसे देखते ही पहचान गए फिर भी उन्होंने उसकी मित्रता का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । कृष्ण मन की मन यह सोच रहे थे कि किस युक्ति से इसका वध करना चाहिए। ग्वाल बालों में सबसे बड़े खिलाड़ी खेलों के आचार्य श्री कृष्ण ही थे। उन्होंने सब ग्वालबालों को बुलाकर कहा- मेरे प्यारे मित्रों ! आज हम लोग अपने को उचित रीति से दो दलों में विभक्त कर लें। एक दल के नायक बलराम और दूसरे दल के नायक श्री कृष्ण बने। फिर उन्होंने निश्चित किया कि जो दल हार जाएगा वह दूसरे दल के व्यक्तियों को पीठ पर लादकर एक निश्चित स्थान तक ले जाएगा। एक बार बलराम के नेतृत्व वाले दल ने बाजी मार ली। उस दल में श्रीदामा और वृषभ भी थे । श्री कृष्ण ने सुदामा को, भद्रसेन ने वृषभ को और प्रलम्ब दैत्य ने बलराम जी को अपनी पीठ पर चढ़ाया। प्रलम्ब बलराम जी को निश्चित स्थान पर न उतार कर आगे ले गया । वह आकाश मार्ग से कहीं ले जाने लगा। तब बलराम जी ने उसके सिर पर एक कसकर घूंसा मारा। उसका सिर चकनाचूर हो गया। वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर लुढ़क गया। इस प्रकार असुर प्रलम्बासुर का उद्धार हो गया। देवताओं ने श्री कृष्ण व बलराम जी पर फूलों की वर्षा की।- Shri Krishna