श्री कृष्ण द्वारा गोपीयों संग रासक्रीड़ा का संकल्प - श्री कृष्ण ने अपनी योगमाया के द्वारा रासक्रीड़ा करने का संकल्प किया भगवान ने अपनी बाँसुरी पर ब्रज सुन्दरियों के मन को हरण करने वाली कामबीज मधुर तान छेड़ी । बंसी की ध्वनि सुनते ही उनकी विचित्र गति हो गई। जो गोपियाँ दूध दुह रहीं थीं, दूध गरम कर रहीं थीं, वे घर का काम छोड़कर चल दीं। पिता और पतियों ने, भाई और जाति बन्धुओं ने उन्हें रोका, परन्तु वे इतनी मोहित हो चुकीं थीं कि उनके रोकने पर भी न रुकीं। वे रुकतीं कैसे ? भगवान श्री कृष्ण ने उनके प्राण, मन और आत्मा सब कुछ अपहरण कर लिया था । भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा- महाभाग्यवती देवियों! तुम्हारा स्वागत है । बतलाओ, तुम्हें प्रसन्न करने के लिए मैं क्या करूँ ? तुम सब तुरन्त ब्रज में लौट जाओ। तुम्हें न देखकर तुम्हारे माँ-बाप, पति-पुत्र, भाईबन्धु, ढूँढ रहे होंगे। घर के नन्हें-नन्हें बच्चे और गाँव के बछड़े रम्भा रहे हैं। तुम उन्हें दूध पिलाओ और गौएँ हो। स्त्रियों का परम धर्म यही है कि वे पति और भाईबन्धुओं की निष्कपट भाव से सेवा करें। किसी भी ॐ तरह से पति का परित्याग न करें। भगवान श्री कृष्ण का यह अप्रिय भाषण सुनकर गोपियाँ उदास और खिन्न हो गईं। सब गोपियों ने कहा- आप घट-घट के स्वामी हैं। हमारे हृदय की बात आप जानते हैं। आपको इस प्रकार के निष्ठुरता भरे वचन नहीं कहने चाहिएँ । हम सब कुछ छोड़कर केवल तुम्हारे ही चरणों में प्रेम करती हैं। हमारा परित्याग मत करो। गोपियों की व्याकुलता से भरी वाणी सुनकर भगवान श्री कृष्ण का हृदय प्रेम से भर गया। उन्होंने हँसकर उनके साथ क्रीड़ा करनी प्रारम्भ कर दी। भगवान की प्रेम भरी चितवन से और उनके दर्शन से गोपियों का मुख कमल खिल गया । भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ यमुना जी के तट पर क्रीड़ाएँ कीं । आलिंगन करना, हाथ दबाना, उनकी चोटी, आदि को स्पर्श करना, विनोद करना, नखक्षत करना, विनोद पूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना इन क्रियाओं के द्वारा गोपियों को क्रीड़ा द्वारा आनन्दित करने लगे। तब वहीं भगवान श्री कृष्ण उनके बीच में से अन्तर्धान हो गए।- Shri Krishna