एक बार की बात है, राधा और गोपियां वृंदावन में श्रीकृष्ण के साथ थीं। कृष्ण अपनी बांसुरी बजा रहे थे, और उसकी मधुर ध्वनि ने सभी को मोहित कर दिया। राधा को यह बात अच्छी तरह से पता थी कि श्रीकृष्ण की बांसुरी में ऐसी शक्ति है कि वह हर किसी को आकर्षित कर लेती है।
राधा ने एक दिन श्रीकृष्ण से पूछा, "हे कान्हा, यह बांसुरी तुम्हारे इतने करीब क्यों है? यह तुम्हारे होठों को छूती है, और तुम इसे कभी अपने से अलग नहीं करते।" श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, "राधे, यह बांसुरी खाली है। इसमें कुछ भी अपना नहीं है। यह न तो कोई ध्वनि करती है, न कोई इच्छा रखती है। इसकी खालीपन ही इसे मेरे लिए सबसे प्रिय बनाती है। यह मेरे संगीत को अपने अंदर धारण करती है और उसे संसार में फैलाती है।" राधा ने गहराई से सोचा और कहा, "तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि यदि मैं भी अपने मन को खाली कर दूं और तुम्हारी इच्छाओं के अनुसार चलूं, तो मैं भी तुम्हारे उतने ही करीब हो जाऊंगी?" श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, "राधे, तुम तो पहले से ही मेरे हृदय में बसी हो। लेकिन जो भी अपना अहंकार और अपनी इच्छाएं छोड़कर मेरे प्रति पूर्ण समर्पण करता है, वह मेरे प्रेम का अनुभव करता है।" यह सुनकर राधा मुस्कुराईं और बोलीं, "हे कान्हा, तब तो यह बांसुरी भी मेरी बहन जैसी हुई, क्योंकि इसका समर्पण ही इसे तुम्हारा प्रिय बनाता है।" तब से राधा ने समझ लिया कि प्रेम और भक्ति का मार्ग समर्पण और निःस्वार्थता का है। यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि हम अपने भीतर से अहंकार और स्वार्थ को मिटा दें, तो हम भी ईश्वर के करीब आ सकते हैं।
- Shri Krishna