भक्तो भक्ति मे अपूर्णता रहनी चाहिए क्योंकि अपूर्णता ही पूर्णता की और ले जाती है कहने का भाव यह है कि जब महर्षि वेद व्यास जी ने 18 उपपुराण 17 महापुराण 4 वेद आदि लिख लिए थे तब भी उनकी संतुष्टि नही हुई उनको भक्ति में अपूर्णता का आभास हो रहा था महऋषि वेदव्यास जी सोच ही रहे थे कि नारद जी वहा आ गए और वेदव्यास जी से कहने लगे ऋषिवर आप उदास क्यो है तब वेदव्यास जी ने बताया कि मैंने 17 उपपुराण 18 महापुराण आदि इतना सब कुछ लिख लिया है परन्तु अभी भी अपूर्णता का अनुभव हो रहा है तभी नारद जी ने उनको बताया कि आपने अभी तक जितनी भी रचनाएं की है जितने भी पुराणों ग्रन्थो की लेखन किया है उन सब मे भगवान श्री कृष्ण के धन ऐश्वर्य धर्म, कामनाओ को पूरा करने वाले इन सब बातों का वर्णन किया है आपने कही भी उनके प्रेम भाव को नही लिखा आपने उनके भक्तों के प्रति उनकी प्रेम लीलाओं का वर्णन नही किया जिससे मानवों का भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम बढे इसीलिए आपको अपूर्णता का आभास हो रहा है आप भगवान श्री कृष्ण के प्रेमभाव का वर्णन अपने रचनाओं में किजिए तभी आपका मन सन्तुष्ट हो पाएगा तब महऋषि वेदव्यास जी ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से युक्त श्री मद्भागवत महापुराण की रचना की जिसमे भगवान श्री कृष्ण की प्रेमभाव वाली सम्पूर्ण लीलाओं का वर्णन है- Shri Krishna