एक बार भगवान श्री कृष्ण जब वृंदावन की याद कर अपने भक्तों के प्रति भावपूर्ण हो रहे थे तब उनको उद्धव जी कहते है हे भगवन आप अपने रुप को जानिए आप एक साधारण मनुष्य नही है तब भगवान श्री कृष्ण उद्धव को कहते है कि हे उद्धव आपको अभी प्रेम हुआ नही है इसलिए आप मुझे मत समझाइये बस आप एक कार्य कीजिए मेरे वृंदावन जाइये और नंद बाबा यशोदा मईया सब ग्वाल बाल सब गोपिया कैसे है उनकी सुध लेकर आजाना ओर उद्धव जाने को तो मै भी जा सकता हूं किन्तु अगर मै चला गया तो फिर वापिस नही आ पाऊँगा और अगर आ गया तो सब बृजवासी अपने प्राण त्याग देगे इसलिए उद्धव आप जाइए तब उद्धव जी कहते है ठीक है मै जाता हूँ और मैं सब बृजव ... ासियों को समझाकर भी आऊँगा की आप साधारण व्यक्ति नही है आप अखिल ब्रह्मांड नायक श्री कृष्ण भगवान है आप ना किसी के पुत्र है ना किसी के सखा न किसी के प्रेमी तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि ठीक है उद्धव और मेरी ये काली कमली गले मे डाल लो और ये मोर पंख अपने मुकुट पर धारण कर लो और मेरे गले लग जाओ क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो ब्रजवासी तुम्हे पहचानेगे नही ओर तुमसे बात भी नही करेंगे तब उद्धव ने वैसे ही किया और चल दिए उद्धव जी ब्रज पहुचकर देखते है कि सब बृजवासी मथुरा को जाने वाले मार्ग पर बैठे है जोकि रोजाना सभी ब्रजवासी श्री कृष्ण की आने की राह में रोजाना मथुरा मार्ग पर बैठ जाते थे जब सब ब्रजवासियों ने दूर से एक रथ को मथुरा से आते हुए देखा और उस पर खड़े मोरमुकुट और काली कमली पहने प्रतीत होते हुए किसी व्यक्ति को देखा तो उन्होंने समझा की शायद हमारा कान्हा आ गया है तब सब दौड़ने लगे रथ की ओर चारो तरफ से रथ को घेर लिया तब उद्धव जी सबको जय श्री कृष्ण बोलते है और कहते है कि श्री कृष्ण नही आये है आप सब की सुध लेने उन्होंने मुझे भेज दिया है मैं उनका सेनापति ओर परम सखा हु उद्धव के यह वचन सब ब्रजवासियों को बाण की तरह लगे तब उद्धव जी सभी ग्वाल बालो से नंद भवन का मार्ग पूछने लगे तब श्री कृष्ण के एक सखा मधुमंगल ने कहा उद्धव जी आपको मार्ग जानना है नंद भवन का तब मधुमंगल ने एक छोटे से नाले की और इशारा करते हुए कहा कि यह नंद भवन से ही आ रहा है और इसमें बहने वाला पानी नंद भवन में रहने वाले नंद यशोदा ओर सभी ब्रजवासियों की आँसू धारा है यह देखकर उद्धव दंग रह गए उद्धव जी जब नंद भवन पहुँचे तब उद्धव के साथ साथ आ रहे भगवान श्री कृष्ण के सखा ने नंद भवन के बाहर से आवाज लगाई नंद बाबा यशोदा मईया देखो तो कौन आया है जल्दी बाहर निकल के देखो कोई उद्वव उद्वव आया है तनिक देखो तो कौन आया है तब यशोदा मईया बाहर आँगन में निकल कर आती है और मधुमंगल से कहती है कि मधुमंगल तू कब सुधरेगा क्यो इतनी जोर जोर से चिल्ला रहा है तू जनता नही कन्हइया राज भोग पाकर अपने कक्ष में सो रहा है और तू यहाँ पर हल्ला मचा रहा है कन्हइया उठ जाएगा तब मधुमंगल उद्धव जी से कहते है देखा उद्धव जी कन्हइया को मथुरा गए हुए 5 वर्ष हो गए लेकिन यशोदा मईया को लगता है कि कन्हइया अभी भी यही है तब मधुमंगल यशोदा मईया बताते है मईया कन्हइया तो मथुरा में है और उन्होंने अपने सेनापति अपने सखा उद्धव को भेजा हमारी सुध लेने तब यशोदा को ध्यान आया कि हमारा कन्हइया तो मथुरा चला गया है तब आँगन में खड़े नंद बाबा ने उद्धव के गले मे कन्हइया की काली कमली को देखा और कहने लगे उद्धव जी यह काली कमली आप मुझे दे दीजिए मै काफी समय से सोया नही हु क्योंकि कन्हइया के वस्त्रों की सुगन्ध अब मुझे नही मिलती कन्हइया की इस काली कमली को अब मै गोद मे भरकर खूब आराम से सोऊंगा तब उद्धव जी ने काली कमली नंद बाबा को दे दी और नंद बाबा उसको गोद मे लेकर अपने कक्ष में सोने चले गए उद्धव यह समस्त दृश्य देखकर शून्यता में चले गए क्योंकि नंद यशोदा और ब्रजवासियों का प्रेम देखकर उद्धव का ज्ञान का अहंकार टूटता जा रहा था उसके बाद मधुमंगल उद्धव को गोपियों से मिलाने ले गया तब नंद भवन के पीछे विहंगम वन में समस्त गोपियों के बीच मे एक शिला पर श्री किशोरी जी बैठी है यह दृश्य उद्धव जी एक वृक्ष के नीचे खड़े हुए देख रहे है तब सभी गोपियों के बीच मे से एक गोपी बोली कि सखियों कल तो कन्हइया ने मेरे साथ बहुत बुरा किया मै यमुना से मटकी में जल भरकर ला रही थी ये नंद का छोरा कन्हइया पता नही कहा से आया और मेरी मटकी में पीछे से इतनी जोर से कंकड़ मारा की मेरी मटकी फुट गयी और मै पूरी की पूरी भिज गयी जब मै कन्हइया के पीछे भागी ओर कहने लगी कि रे कन्हइया तू ऐसा ऊधम क्यो करता है तब यह यशोदा का यह लाला मुझे कहता है कि अरी गोपी तू बहुत समय से नहाई नही है तेरे में से तो गोबर की दुर्गंद आती है यह सुनकर जब मैं उसको पकड़ने के लिए पीछे पीछे भागी तो बस कन्हइया का हाथ ही मेरे हाथ मे आने वाला था जैसे ही मैंने कन्हइया का हाथ पकड़ा तो बस एक क्षण में ही मेरी आँखें खुली और देखा क्या कि कन्हइया तो चला गया यह तो स्वपन था ऐसे ही सभी गोपिया अपने अपने भाव सुना रही थी तभी एक गोपी किशोरी जी के चरण स्पर्श करती है और किशोरी जी से कहती है कि आप भी अपने भाव बताइए तब किशोरी जी गोपियों से कहती है हे गोपियों तुम बहुत भाग्यशाली हो क्योंकि आप सभी को कन्हइया स्वपन में तो दिख जाते है लेकिन जब से कन्हइया मथुरा गए है मुझे तो नींद ही नही आती और जब आँख ही नही बंद होती तो स्वपन कैसे आएंगे तभी कुछ गोपियों की नजर वृक्ष के नीचे खड़े उद्धव पर जाती है वह उद्धव की और न देखकर उद्धव के मुकुट पर लगे मोर पंख को देख लेती है और समझ जाती है कि यह कोई श्री कृष्ण का ही सखा है वही वन में एक भंवरा इधर उधर घूम रहा था उस भंवरे को देखकर गोपिया श्री कृष्ण के सखा उद्धव में से व्यंग कसते हुए कहती है कि अरे भंवरे तू भी काला काला है कृष्ण भी , तेरा स्वभाव भी कृष्ण जैसा ही है जैसे तू एक फूल से उसका सारा रस लेकर दूसरे फूल पर बैठ जाता है दूसरे का सारा रस लेकर तीसरे पर बैठ जाता है फिर उसका सारा रस ले लेता है वैसे ही कन्हइया है वह भी हम सब ब्रजवासियों का सारा रस ( सुख चैन ) लेकर मथुरा चला गया है फिर मथुरा से कही और चला जाएगा गोपियों के यह सभी भाव उद्धव जी सुनकर उन सभी गोपियों के पास जाकर अपना परिचय देते तब सभी गोपियों उद्धव जी को कन्हइया का सखा जान श्री कृष्ण के प्रति अपना प्रेम उद्धव के सामने व्यक्त करती है और कहती है हे उद्धव जी मथुरा बृंदावन से इतनी दूर नही है कि हम जा नही सकती हम सभी गोपियां दिन में दो बार मथुरा जा सकती है किन्तु हमारा प्रेम ऐसा नही है हमारा प्रेम तो कन्हइया की खुशी में है अगर हमारा कन्हइया मथुरा में रहकर खुश है तो हमारी भी खुशी इसी बात में है और यह सुनकर उद्धव जी किशोरी जी के चरणो में गिर जाते है और रुदन करके कहने लगते है किशोरी जी आप और सभी गोपिया धन्य है आप सभी का प्रेम देखकर मैंने निश्चय किया है कि अब मै भी ब्रज में ही रहूंगा यहाँ के कण कण में श्री कृष्ण विद्यमान है तब किशोरी जी उद्धव जी से कहती है हे उद्धव जी अब आप भी हम सब गोपियों में से एक हो गए हो कृप्या आप मथुरा वापिस जाइये और हमारे कन्हइया की खूब सेवा कीजिए और उनका खूब ध्यान रखना उनको हमारी ओर से किसी भी बात का विरह मत होने देना और इस तरह उद्धव छह महीने तक वृंदावन में रहें और जब छह महीने बाद जाने लगे तब वृक्षो से ब्रजवासियों से लिपट लिपट कर रुदन करते ब्रजवासियों के चरण छूते और कहते कि हे भगवन मै जब भी इस धरती पर जन्म लू तो मुझे वृंदावन की छोटी घास बनकर जन्म लू वृक्ष नही क्योंकि वृक्ष तो बड़ा हो जाता है ओर घास हमेशा छोटी ही रहती है वृक्ष बनकर मुझे ब्रजवासियों की चरण रज प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त नही होगा अगर मै ब्रज की घास बनकर जन्म लूंगा तो इन सब ब्रजवासियों की चरणों की रज मुझपर गिरती रहेगी तब सब ब्रजवासियों से विदा लेकर उद्धव जी मथुरा पहुचे मथुरा पहुचते ही जैसे ही श्री कृष्ण से मिले तो उद्धव कन्हइया के गले लगकर आँखे बंद कर बड़े जोर जोर से रोने लगे और कहने लगे कि आप वापिस वृंदावन चलिए आपको बृजवासियों से ज्यादा कोई प्रेम नही कर सकता ब्रजवासियों का प्रेम देखकर मेरा सारा ज्ञान धरा रह गया मेरा सारा अहंकार टूट गया आप बस वृंदावन चलिए सभी ब्रजवासी आपके विरह में आपके इंतजार में बहुत तड़फते है आप अभी वापिस वृंदावन चलिए तभी कन्हइया बोले उद्धव जरा विरह की वेदना से बाहर आओ और आँखे खोलो तब कन्हइया के कहने पर उद्धव जी आँसुओं से भरी अपनी आँखें पोंछकर आँखे खोलते है तो देखते है कि मथुरा का महल कही नही है और कन्हइया ब्रज में किशोरी जी के संग खड़े है और सभी ब्रजवासी भी कन्हइया के इर्द गिर्द खड़े है यह सब देखकर उद्धव जी श्री किशोरी जी की सभी बृजवासियों की और कन्हइया जी की जय जयकार करने लगे Read more
नटखट श्री कृष्ण छोटे से है गोल गोल उनकी आँखें है तो उनके केश गुनघराले है अल्कावली पूरे दिन मुख पर आती रहती है यशोदा मईया सवेरे सवेरे कन्हइया के पूरे केशों को एक साथ इक्कठा करके एक जुड़ा सा बनाकर कन्हइया के सिर पर बीच मे अटका देती है और उस जुड़े में एक मोर पंख लगा देती है फिर यशोदा मईया कन्हइया की आँखों मे काजल लगाती है उनको वस्त्र, माला, कड़े बाजूबंद, पाज़ेब धारण तो कराती है लेकिन नटखट.............. ... श्री कृष्ण कन्हइया वस्त्रों को तो थोड़ी देर बाद उतार देते है और माला, बाजूबंद, कड़े , पाज़ेब पहने हुए नगम नंगे घूमते रहते है नटखट से कन्हइया आभूषण तो धारण करते है किंतु वस्त्र धारण नही करते । श्री कृष्ण कन्हइया का यह प्रिय सिंगार है Read more - Shri Krishna
भक्तों जब भगवान श्री कृष्ण शिशु रूप में गोकुल आये थे तो बहुत ही भव्य उत्सव हुआ था सभी गोकुल वासी हर्षोउल्लास से भर गए थे क्योकि नंद बाबा को बहुत समय पश्चात पुत्र की प्राप्ति हुई थी और नंद गोकुल व अन्य आसपास के गांवों व गवालो के मुखिया थे नंद जी ने पुत्र जन्म की खुशी में स्वर्ण आभूषण व एक लाख गऊओं का दान किया था गोकुल व अन्य गांव वासियों की भेटों को प्राप्त कर कर भी तृप्ति नही हुई थी श्र ... कृष्ण के अति सुन्दर मुख को देखकर उनका मन बार बार श्री कृष्ण को देखने के लिए लालायित हो रहा था सभी की नजर पालने में झूल रहे श्री कृष्ण की ओर ही टिकी हुई थी जो भी श्री कृष्ण के मुख को एक बार देख लेता वो वही खड़ा रह जाता वहाँ से हटता ही नही कहते है कि इतना भव्य रूप गोकुल व अन्य गांव वासियों ने किसी भी नवजात शिशु का नही देखा था और होता भी कैसे स्वयं पूर्ण भगवान ने धरती पर अवतार धारण किया था Read more - Shri Krishna








