श्रीमद्भगवत कथा अज्ञानी जीव के लिए औषधि तुल्य है, जीवन्मुक्त महापुरुषों के लिए आहार का कार्य करती है, जिनको प्रेमाभक्ति प्राप्त हो जाती है उनके लिए प्राण तुल्य है। श्री परीक्षित ने परमहँस श्री शुकदेव जी को ऊँचे व्यास आसन पर विराजमान किया। अब यद्यपि परीक्षित को कथा सुनाते समय शास्त्रों में श्री शुकदेवजी की आयु सोलह वर्ष की कही गई है किन्तु अनेक वैष्णवाचार्य इस मत से सहमत नहीं हैं, विश्वगुरु श्रील जीव गोस्वामी पाद जी लिखते हैं कि परीक्षित को कथा सुनाते समय श्री शुकदेवजी सोलह वर्ष आयु के प्रतीत होते थे। सोलह वर्ष के थे नहीं, आयु तो अधिक थी, इसका प्रमाण दिया है कि जिस समय भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर पड़े थे तो अनेक ऋषि, भगवान श्री कृष्ण, पांडव ये सब भीष्म पितामह के पास कुरुक्षेत्र पहुंचे थे तो श्री सूत जी प्रथम स्कन्ध में उन ऋषियों में शुकदेवजी का नाम भी गिनवाते हैं । भीष्म पितामह के देह त्याग के समय भी श्री शुकदेवजी उपस्थित थे और भीष्म पितामह के देह त्याग के कुछ समय उपरांत ही अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया उस समय परीक्षित मां के उदर में थे अर्थात जब परीक्षित का जन्म भी नहीं हुआ था उस समय भी शुकदेवजी की गिनती ऋषियों में हुई थी, आयु लगभग 25 वर्ष और जब परीक्षित का शरीर पूरा हुआ उस समय परीक्षित की आयु 45 वर्ष लगभग थी तो इसका मतलब परीक्षित को भागवत सुनाते समय शुकदेवजी की आयु 70 वर्ष के लगभग थी किंतु प्रतीत होते थे 16 वर्ष जितने, ऐसा क्यों, क्योंकि श्री शुकदेवजी मुक्त पार्षद हैं। जो भगवान के मुक्त पार्षद होते हैं उनका शरीर भी जन्ममृत्यु जरा-व्याधि से मुक्त हो जाता है तो शुकदेवजी के शरीर मे जरा ने प्रवेश नहीं किया और वे नवयुवक ही प्रतीत हो रहे थे। श्री परीक्षित ने श्री शुकदेवजी से दो प्रश्न पूछे हे महामुनि हे समस्त प्रकार के योगियों के समूह के परम गुरु, जो व्यक्ति मरणासन स्थिति में पहुंच गया है उसके लिए परम कर्तव्य क्या है, उसका अभिधेय क्या है, उसका सरलतम साधन क्या है, किस साधन का अवलम्बन करे जो मृत्यु के सन्निकट पहुंच गया है और एक जिज्ञासु व्यक्ति के लिए श्रोतव्य क्या है सुनने योग्य क्या है, जपने योग्य क्या है, करने योग्य क्या है, स्मरण के योग्य क्या है, सेवा के योग्य क्या है और इसके जो विपरीत है अर्थात जो सुनने योग्य नहीं, जो जपने योग्य नहीं, जो करने योग्य नहीं, जो स्मरण के योग्य नहीं, जो सेवा के योग्य नहीं वो सब भी बताओ अर्थात जो साध्य तत्व है उसके विषय में बताओ। पहले प्रश्न में साधन तत्व दूसरे में साध्य तत्व के विषय में जिज्ञासा रखी। साधन और साध्य, आध्यात्मिकता में इसका बड़ा भारी महत्व है ।- Shri Krishna