भगवान श्री कृष्ण भक्तों माता यशोदा और नंद जी ने अपने पूर्व जन्म में भगवान की अत्यंत कठोर भक्त्ति की थी। यशोदा मईया और नंद जी अपने पूर्व जन्म में धरा और द्रोण नाम के वसु थे उस समय धरा ओर द्रोण ने गंदमादन पर्वत पर कई हजार वर्षो तक इस उद्देश्य से तपस्या की उन्हें भगवान के दुर्लभ बाल रूप के दर्शन हो। जोकि बड़े बड़े योगियों को भी दुर्लभ है तब आकाश से आकाशवाणी हुई – हे द्रोण, देवी धरा मै तुम्हारी अति कठोर तपस्या से अति प्रश्न हूँ और जिस उद्देश्य को ह्रदय में धारण करके तुमने यह कठोर तप किया है उसको मै अवश्य पूरा करूंगा मै तुम्हें यह वर देता हूँ कि जब द्वापर युग मे मै इस धरती पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार धारण करूँगा तब मै आप दोनों का पुत्र बनकर अपनी बाल लीला आपके यहाँ सम्पूर्ण करूँगा तब आप दोनों को अपनी बाल लीलाओं से पूर्ण आनंदित करूँगा इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने जब द्वापर युग मे श्री कृष्ण के रूप मे अवतार धारण किया तब देवी धरा यशोदा के रूप में और द्रोण ने नंद बाबा के रूप में धरती पर थे इसीलिए अपने दिए हुए वर को पूरा करने के लिए ही भगवान श्री कृष्ण मथुरा से गोकुल नंद यशोदा के घर आए और लगभग 11 वर्ष तक नंद व यशोदा को अपनी बाल रूप और बाल लीलाओं से आनंदित किया