भगवान श्री कृष्ण और अघासुर वध की कथा श्रीमद्भागवत पुराण के 10वें स्कंध में वर्णित है। यह कथा भगवान कृष्ण की दिव्य बाल लीलाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने अपने भक्तों की रक्षा और अधर्म के विनाश का कार्य किया। इस कथा में गहरे आध्यात्मिक और सांकेतिक अर्थ भी छिपे हुए हैं। अघासुर का वध भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और उनकी करुणा का एक अनूठा उदाहरण है।
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अघासुर का परिचय
अघासुर पुतना और बकासुर का छोटा भाई था। ये तीनों ही कंस के सेनापति और उसके विश्वासपात्र सहयोगी थे। कंस ने अघासुर को श्रीकृष्ण का वध करने के लिए वृंदावन भेजा। अघासुर एक अत्यंत विशाल अजगर था, जो अपनी मायावी शक्तियों और क्रूरता के लिए प्रसिद्ध था।
अघासुर का पूर्व जन्म
पुराणों में वर्णित है कि अघासुर अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था, जिसका नाम अग्निध्र था। वह अत्यंत तेजस्वी और शक्तिशाली था, लेकिन उसके भीतर घमंड और क्रोध भर गया था। उसने एक बार ऋषियों का अपमान किया, जिसके कारण उसे शाप मिला और वह राक्षस योनि में जन्मा। ऋषियों ने यह भी कहा था कि उसे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण द्वारा मुक्ति प्राप्त होगी।
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कथा का आरंभ: अघासुर का आगमन
कंस का षड्यंत्र
मथुरा का राजा कंस, जो भगवान कृष्ण का मामा था, उन्हें अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता था। उसने अनेक असुरों को कृष्ण के वध के लिए भेजा, लेकिन सभी असफल हुए। पुतना और बकासुर के वध के बाद कंस ने अघासुर को भेजा। अघासुर ने यह निश्चय किया कि वह न केवल कृष्ण, बल्कि उनके सभी सखाओं और गौओं का भी वध करेगा।
अघासुर का योजना
अघासुर ने अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग करके एक विशाल अजगर का रूप धारण कर लिया। उसका मुंह इतना बड़ा था कि उसमें हजारों लोग समा सकते थे। वह यमुना के किनारे एक जंगल के पास लेट गया और अपना मुंह खोलकर मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।
उसके खुले हुए मुंह को देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे कोई गुफा हो। उसके दाँत पहाड़ों जैसे दिखाई देते थे, और उसकी जीभ एक लाल सड़क के समान प्रतीत होती थी। उसका विष और उसकी दुर्गंध दूर से ही महसूस की जा सकती थी।
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गोप बालकों और गौओं का प्रवेश
एक दिन श्रीकृष्ण अपने सखाओं और गौओं के साथ यमुना किनारे चरागाह में गए। खेलते-खेलते वे अघासुर के पास पहुँच गए। गोप बालकों ने अघासुर को देखा, लेकिन वे उसकी माया को पहचान नहीं पाए। उन्होंने उसे एक विशाल गुफा समझा और उसमें प्रवेश करने का निश्चय किया।
सखाओं की जिज्ञासा
गोप बालकों ने कहा, “देखो, यह गुफा कितनी विशाल और अद्भुत है! चलो, इसमें प्रवेश करते हैं और देखते हैं कि यह कहाँ तक जाती है।”
सभी सखा और गौएँ उस गुफा के अंदर चली गईं।
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श्रीकृष्ण का आगमन और अघासुर की पहचान
जब श्रीकृष्ण ने देखा कि उनके सखा और गौएँ उस अजगर के अंदर जा रहे हैं, तो उन्हें तुरंत पता चल गया कि यह कोई गुफा नहीं, बल्कि अघासुर है। श्रीकृष्ण को यह भी पता था कि अघासुर एक अत्यंत शक्तिशाली असुर है और यदि वह सफल हो गया तो वृंदावन के सभी लोग संकट में पड़ जाएंगे।
अघासुर का इंतजार
अघासुर ने सोचा कि जब सभी गोप बालक और गौएँ उसके पेट में प्रवेश कर जाएंगे, तब वह श्रीकृष्ण को भी निगल लेगा। उसके बाद वह उन्हें अपने विष से मार देगा।
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श्रीकृष्ण का अघासुर के अंदर प्रवेश
श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं और गौओं की रक्षा के लिए अघासुर के अंदर प्रवेश किया। जैसे ही भगवान उसके भीतर गए, अघासुर ने अपना मुँह बंद कर लिया।
अघासुर की योजना
अघासुर ने अपनी सांसों से विष छोड़ना शुरू कर दिया, जिससे गोप बालकों और गौओं का दम घुटने लगा।
भगवान की लीला
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग किया और अघासुर के भीतर अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया। उनका शरीर इतना विशाल हो गया कि अघासुर का दम घुटने लगा।
अघासुर का अंत
जब अघासुर ने महसूस किया कि वह अब और सहन नहीं कर सकता, तो उसने भगवान को छोड़ने की कोशिश की। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भगवान ने अपने चरणों से उसके गले को इतना दबा दिया कि उसकी प्राण वायु बाहर निकल गई।
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अघासुर की मुक्ति
जैसे ही अघासुर की मृत्यु हुई, उसके शरीर से एक दिव्य ज्योति निकलकर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में विलीन हो गई। यह अघासुर की आत्मा की मुक्ति का प्रतीक था।
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गोप बालकों का पुनर्जीवन
भगवान ने अपनी दिव्य शक्ति से सभी गोप बालकों और गौओं को पुनर्जीवित कर दिया। वे सभी प्रसन्न होकर बाहर निकले और भगवान की महिमा का गान करने लगे।
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कथा का आध्यात्मिक और सांकेतिक महत्व
1. अहंकार का विनाश: अघासुर का विशाल आकार और उसकी घमंड यह दर्शाता है कि अहंकार कितना भी बड़ा क्यों न हो, भगवान की कृपा से वह नष्ट हो सकता है।
2. माया का जाल: अघासुर का मुंह माया का प्रतीक है, जिसमें जीव फँसता है। भगवान ही माया के बंधन से मुक्त कर सकते हैं।
3. भक्तों की रक्षा: यह कथा इस बात को सिद्ध करती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।
4. आत्मा की मुक्ति: अघासुर के उद्धार से यह संदेश मिलता है कि भगवान के संपर्क में आने से सबसे पापी व्यक्ति भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
5. विष और सत्य: अघासुर का विष अधर्म और असत्य का प्रतीक है, जिसे भगवान ने सत्य और धर्म से समाप्त किया।
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निष्कर्ष
अघासुर वध की कथा भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक बाल लीलाओं का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, यदि भगवान पर अटूट विश्वास हो तो हर संकट का समाधान संभव है। अघासुर का उद्धार यह भी बताता है कि भगवान केवल दंड देने वाले नहीं, बल्कि उद्धारकर्ता भी हैं।