पूतना वध की कथा:

भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध अपनी बाल्यावस्था में किया। पूतना कंस द्वारा भेजी गई थी। कंस ने भविष्यवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा, इसलिए उसने अपने आस-पास के सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दिया। इसी उद्देश्य से कंस ने पूतना को गोकुल भेजा था।

पूतना का वध: पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके गोकुल पहुंची और यशोदा से श्रीकृष्ण को गोद में लेने की इच्छा जताई। उसने अपने स्तनों पर विष लगाया हुआ था और जैसे ही उसने श्रीकृष्ण को स्तनपान कराया, श्री कृष्ण ने उसके स्तनों से विष और उसके प्राण दोनों खींच लिए। पूतना ने अपने असली राक्षसी रूप में लौटते हुए प्राण त्याग दिए।

पूतना का पूर्व जन्म: कथाओं के अनुसार, पूतना अपने पूर्व जन्म में राजा बली की पुत्री थी, जिसका नाम रत्नमाला था। जब वामन भगवान राजा बली से भिक्षा मांगने आए थे, तो रत्नमाला ने वामन रूप में भगवान को देखकर उनसे स्नेहभाव से उन्हें अपना पुत्र बनाने की इच्छा की थी। लेकिन बाद में, जब वामन ने अपने विराट रूप में बली से तीन पग भूमि मांगी और सब कुछ ले लिया, तो रत्नमाला ने क्रोधवश उन्हें मारने की इच्छा जताई। भगवान ने उसके दोनों भावों को स्वीकार किया। इसी कारण अगले जन्म में उसे पूतना के रूप में जन्म मिला और उसे भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराने का अवसर मिला। श्रीकृष्ण द्वारा वध होने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

पूतना के वध के बाद, गोकुल वासियों ने उसके विशाल राक्षसी रूप को देखकर भय और आश्चर्य से भर गए। इसके बावजूद, उन्होंने पूतना के शरीर को जलाने का निर्णय लिया। पूतना के शरीर को जलाने के दौरान एक अद्भुत घटना घटी—उसके शरीर से एक दिव्य सुगंध फैलने लगी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के स्पर्श से पूतना को मोक्ष प्राप्त हुआ था और उसका शरीर पवित्र हो गया था। इसलिए, जब उसका अंतिम संस्कार किया गया, तो वह सुगंधित धुआँ में परिवर्तित हो गया, जो देवताओं की कृपा का प्रतीक था।

गोकुलवासियों ने इस घटना को भगवान श्रीकृष्ण की लीला और उनकी दिव्यता का प्रमाण माना और भगवान की जय-जयकार की। उन्होंने श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में मानने लगे और उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति और अधिक बढ़ा ली।

पूतना, जो भगवान श्री कृष्ण के हाथों मारी गई थी, अंत में गोलोक धाम को पधारी। पूतना ने भगवान श्रीकृष्ण को मां के रूप में स्तनपान कराने का प्रयास किया था, भले ही उसका उद्देश्य बुरा था। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी इस सेवा को मां के समान माना। शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान किसी भी व्यक्ति की भावना को महत्व देते हैं, चाहे वह कैसी भी हो।

श्री कृष्ण ने पूतना को मातृत्व का दर्जा दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। इस प्रकार, पूतना अपनी मृत्यु के बाद गोलोक धाम चली गई, जहां भगवान श्रीकृष्ण के साथ रहने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ। यह भगवान की करुणा और अनुग्रह का प्रतीक है कि उन्होंने अपने शत्रु को भी मोक्ष प्रदान कर दिया।