भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी का नामकरण संस्कार यदुवंश के कुलगुरु महर्षि गर्गाचार्य द्वारा गोकुल में संपन्न हुआ था। महर्षि गर्गाचार्य द्वापर युग में एक प्रमुख ऋषि और यदुवंश के कुलगुरु थे। उनका जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को माता विजया और पिता महर्षि भुवमन्यु के घर हुआ था। वे महर्षि भारद्वाज के पौत्र और अङ्गिरस कुल के सदस्य थे, इसलिए उन्हें अङ्गिरस गर्ग भी कहा जाता है।

गर्गाचार्य जी वेद, ज्योतिष और धर्मशास्त्रों का गहरा ज्ञान था। वे एक महान तपस्वी और विद्वान थे, जो अपनी सरलता, सत्यनिष्ठा और धार्मिक आचरण के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें ग्रह-नक्षत्रों का गहन ज्ञान था। उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे समस्त वेद विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया, जबकि ज्योतिष विद्या में शेषनाग जी से शिक्षा ली। उनकी कुछ विशेषताएं -:

1. सादा जीवन: गर्गाचार्य जी का जीवन सादा और संयमित था। वे अपनी तपस्या और ध्यान में लीन रहते थे, और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे।

2. ज्ञान और शिक्षा: वे अपने समय के अत्यंत विद्वान और ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्होंने ज्योतिषशास्त्र और अन्य धार्मिक ग्रंथों की रचना की, जिनका उपयोग आज भी किया जाता है।

3. त्याग और सेवा: गर्गाचार्य ने अपने जीवन में त्याग और सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया। वे अपनी विद्याओं का उपयोग समाज की भलाई के लिए करते थे और अपने शिष्यों को भी यही सिखाते थे।

4. धर्म और नैतिकता: उन्होंने धर्म और नैतिकता के उच्च मानकों का पालन किया और अपने शिष्यों को भी यही सिखाया। वे सत्य, अहिंसा और धर्म के पालन को अत्यधिक महत्व देते थे।

गर्गाचार्य जी ने अपने जीवन में कई पुण्य कर्म किए थे, जिनके कारण उन्हें भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी का नामकरण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

गर्गाचार्य जी वंश परंपरा से ब्राह्मण थे और उनकी गौत्रीय परंपरा और कुल की पवित्रता ने उन्हें उच्च स्थान दिलाया। उनके कुल की पवित्रता और धार्मिकता के कारण उन्हें विशिष्ट सम्मान मिला।

उन्होंने अपने जीवन में निःस्वार्थ सेवा की। वे हमेशा समाज की भलाई के लिए कार्य करते थे और उन्होंने राजा से लेकर सामान्य जन तक, सभी के लिए धार्मिक कार्य किए।

वासुदेवजी की प्रार्थना पर गर्गाचार्यजी ब्रज पहुंचे, जहां नंदबाबा ने उनका स्वागत किया और अपने दोनों पुत्रों का नामकरण करने का अनुरोध किया। कंस के भय से यह संस्कार गुप्त रूप से गौशाला में किया गया।

गर्गाचार्यजी ने रोहिणी के पुत्र का नामकरण करते हुए कहा कि यह बालक अपने गुणों से सबको प्रसन्न करेगा, इसलिए इसका नाम ‘राम’ होगा। यह अत्यंत बलशाली होगा, अतः इसे ‘बल’ भी कहा जाएगा। यदुवंशियों में एकता स्थापित करने के कारण इसे ‘संकर्षण’ भी पुकारा जाएगा। इस प्रकार, इसका नाम ‘बलराम’ निर्धारित हुआ।

श्रीकृष्ण के नामकरण के समय गर्गाचार्यजी ने बताया कि यह बालक प्रत्येक युग में अवतार ग्रहण करता है और इस बार इसका वर्ण कृष्ण (श्याम) है, इसलिए इसका नाम ‘कृष्ण’ होगा। पूर्वजन्म में वसुदेव के यहां जन्म लेने के कारण इसे ‘वासुदेव’ नाम से भी जाना जाएगा। गर्गाचार्यजी ने भविष्यवाणी की कि यह बालक गोकुल को आनंदित करेगा और सभी विपत्तियों से रक्षा करेगा।

इस प्रकार, गर्गाचार्यजी ने गुप्त रूप से श्रीकृष्ण और बलराम का नामकरण संस्कार संपन्न किया।