श्री कृष्ण भगवान की लीलाएँ भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा में अद्वितीय स्थान रखती हैं। इनमें से एक प्रमुख लीला है कालिया नाग का उद्धार। यह घटना श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध में विस्तार से वर्णित है और भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल की अद्भुत कहानियों में से एक है। इस कथा में भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों और करुणा का परिचय दिया और यमुना नदी को विष मुक्त किया। इस कथा को विस्तार से समझने के लिए हम इसे कई महत्वपूर्ण पहलुओं में विभाजित करेंगे:

1. यमुना नदी का विषाक्त होना और ब्रजवासियों की पीड़ा

कालिया नाग यमुना नदी के एक विशेष भाग, जिसे कालीय-ह्रद कहा जाता था, में वास करता था। यह स्थान वृंदावन के निकट था। कालिया नाग अत्यंत विषैला और शक्तिशाली था। उसकी उपस्थिति के कारण यमुना का जल विषाक्त हो गया था। इस विषैले जल के कारण यमुना में रहने वाले मछली, कछुए और अन्य जलीय जीव मरने लगे थे। यहाँ तक कि यमुना के पास के पेड़-पौधे भी सूखने लगे थे। यमुना का जल ब्रजवासियों के लिए जीवन का स्रोत था, लेकिन कालिया नाग के विष के कारण यह जल अब उनके लिए मृत्यु का कारण बन रहा था।

ब्रजवासियों को इस संकट से मुक्ति दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने कालिया नाग के उद्धार का निश्चय किया। इस घटना ने यह भी दर्शाया कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी संकट का सामना करने के लिए तत्पर रहते हैं।

2. कालिया नाग का यमुना में वास और गरुड़ से भय

कालिया नाग का यमुना में वास करने का कारण उसकी गरुड़ से शत्रुता थी। कालिया नाग ने एक बार गरुड़ को क्रोधित कर दिया था। गरुड़, जो भगवान विष्णु के वाहन और नागों के शत्रु थे, ने कालिया नाग को हर जगह भयभीत कर रखा था। कालिया नाग ने अपनी सुरक्षा के लिए यमुना के उस भाग में शरण ली, जहाँ ऋषि शौनक के श्राप के कारण गरुड़ का प्रवेश निषेध था। इस श्राप के कारण यमुना का वह स्थान कालिया नाग के लिए सुरक्षित हो गया था।

3. श्री कृष्ण का यमुना में प्रवेश और कालिया नाग से सामना

एक दिन श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना के किनारे खेल रहे थे। खेलते-खेलते उनके मित्रों ने यमुना का जल पी लिया, जिससे वे बेहोश हो गए। यह देख श्री कृष्ण चिंतित हुए और उन्होंने तुरंत यमुना में प्रवेश करने का निर्णय लिया। श्री कृष्ण जानते थे कि यह विष कालिया नाग के कारण है, और उन्होंने उसे चुनौती देने का निश्चय किया।

जैसे ही श्री कृष्ण ने यमुना में प्रवेश किया, उन्होंने कालिया नाग को ललकारा। कालिया नाग ने श्री कृष्ण को अपने जल में देखकर अपने फनों को फुफकारते हुए उन्हें डराने का प्रयास किया। कालिया नाग ने अपनी विषाक्त फुफकार से यमुना को और भी अधिक विषाक्त कर दिया, लेकिन श्री कृष्ण तो स्वयं भगवान थे। वे न केवल कालिया नाग से भयभीत नहीं हुए, बल्कि उन्होंने कालिया नाग के ऊपर चढ़कर अपने नृत्य का प्रदर्शन किया।

4. श्री कृष्ण का कालिया नाग पर नृत्य

श्री कृष्ण ने कालिया नाग के फनों पर चढ़कर नृत्य करना शुरू किया। उनका यह नृत्य दिव्य और अद्भुत था। श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों से कालिया नाग के फनों को इस प्रकार दबाया कि वह थक गया और हार मानने पर विवश हो गया। कालिया नाग के फनों पर श्री कृष्ण का यह नृत्य यह दर्शाता है कि भगवान किसी भी बुराई को समाप्त कर सकते हैं।

इस नृत्य के दौरान, कालिया नाग ने अपने आप को श्री कृष्ण के सामने असहाय पाया। उसकी सभी शक्तियाँ क्षीण हो गईं और वह हार मानकर भगवान से क्षमा मांगने लगा। श्री कृष्ण के चरणों की स्पर्श से उसकी बुद्धि शुद्ध हो गई और उसने अपने पापों के लिए क्षमा मांगी।

5. कालिया नाग का उद्धार और यमुना का शुद्धिकरण

कालिया नाग ने श्री कृष्ण के चरणों में शरण ली और उनसे क्षमा याचना की। कालिया नाग की पत्नियाँ, जिन्हें नाग कन्याएँ कहा जाता है, भी श्री कृष्ण के चरणों में आकर प्रार्थना करने लगीं। उन्होंने भगवान से अपने पति को क्षमा करने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण ने अपनी करुणा दिखाते हुए कालिया नाग को क्षमा कर दिया।

श्री कृष्ण ने कालिया नाग को आदेश दिया कि वह यमुना को छोड़कर समुद्र में चला जाए। उन्होंने कहा कि अब वह गरुड़ से भयभीत नहीं होगा, क्योंकि उसने भगवान की शरण ले ली है। इस प्रकार कालिया नाग ने श्री कृष्ण के हाथों उद्धार पाया और यमुना का जल पुनः शुद्ध हो गया।

6. कालिया नाग का पूर्व जन्म और श्राप की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कालिया नाग अपने पूर्व जन्म में एक विद्याधर था, जिसका नाम सुदर्शन था। सुदर्शन अत्यंत सुंदर और तेजस्वी था, लेकिन उसमें घमंड था। एक बार उसने अपने सौंदर्य और शक्ति के कारण ऋषियों का अपमान किया। इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि शौनक ने उसे श्राप दिया कि वह नाग योनि में जन्म लेगा। सुदर्शन ने अपने अहंकार के कारण इस श्राप को स्वीकार किया, लेकिन जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तब उसने ऋषियों से क्षमा मांगी।

ऋषियों ने उसे यह वरदान दिया कि जब श्री विष्णु स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेंगे, तब उनके द्वारा तुम्हारा उद्धार होगा। यही कारण था कि सुदर्शन कालिया नाग के रूप में यमुना में रहने लगा और अंततः श्री कृष्ण द्वारा उसका उद्धार हुआ।

7. आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ

कालिया नाग की कथा का आध्यात्मिक अर्थ अत्यंत गहरा है। यह कथा दर्शाती है कि अहंकार और बुराई किसी को भी नीचे गिरा सकती है, लेकिन भगवान की शरण में जाकर इनसे मुक्ति पाई जा सकती है। कालिया नाग का यमुना में वास और उसका विषाक्त जल यह दर्शाता है कि जब मनुष्य अहंकार और बुराई में लिप्त हो जाता है, तब वह अपने चारों ओर नकारात्मकता फैलाता है। श्री कृष्ण का कालिया नाग पर नृत्य यह दर्शाता है कि भगवान की कृपा से इन बुराइयों को समाप्त किया जा सकता है।

8. उद्धार का संदेश

श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग का उद्धार यह सिखाता है कि भगवान की शरण में जाकर कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो सकता है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी संकट का सामना कर सकते हैं। कालिया नाग की पत्नियों की प्रार्थना और श्री कृष्ण की करुणा यह दर्शाती है कि क्षमा और प्रायश्चित से उद्धार संभव है।

निष्कर्ष

कालिया नाग का उद्धार श्री कृष्ण की एक अद्भुत लीला है, जो उनकी दैवीय शक्तियों, करुणा और पराक्रम को दर्शाती है। यह कथा न केवल पौराणिक महत्व रखती है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक संदेश भी है। यह हमें सिखाती है कि भगवान की शरण में जाने से कोई भी जीव अपनी बुराइयों से मुक्त हो सकता है और एक नया जीवन प्राप्त कर सकता है। श्री कृष्ण की यह लीला हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में ईश्वर की शरण लें और अपने भीतर की बुराइयों को समाप्त करें।