भगवान श्रीकृष्ण द्वारा ब्रह्मा जी का मान भंग करने की कथा श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में वर्णित है। यह कथा अत्यंत दिव्य, रोचक और गूढ़ रहस्यों से परिपूर्ण है। कथा का मूल उद्देश्य भगवान की लीला के माध्यम से अहंकार और माया के प्रभाव से मुक्त होने का संदेश देना है। नीचे इस कथा का विस्तृत वर्णन किया गया है।

कथा की पृष्ठभूमि

जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में पृथ्वी पर अवतार लिया, तो उनके जन्म का मुख्य उद्देश्य धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश और भक्तों का उद्धार करना था। उनका बाल्यकाल गोकुल, वृंदावन और नंदगांव में बीता। यहाँ उन्होंने अनेक बाल लीलाएँ कीं, जो आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा और भक्ति का स्रोत हैं।

श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे। वे ग्वाल-बालों और गायों के साथ आनंदपूर्वक यमुना तट पर विचरण करते, बंसी बजाते और बाल सखाओं के साथ माखन-चोरी की लीलाएँ करते। उनके इन अद्भुत कार्यों और बाल स्वरूप से सारा ब्रजमंडल मोहित था।

जब ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण की इन लीलाओं के बारे में सुना, तो उनके मन में एक संदेह उत्पन्न हुआ। वे सोचने लगे कि यह साधारण ग्वाला बालक क्या सचमुच वही परमब्रह्म है, जिसकी स्तुति वे स्वयं ब्रह्मलोक में करते हैं? इस संदेह के कारण उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने का निर्णय लिया।

ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने की योजना

ब्रह्मा जी ने अपनी माया शक्ति का प्रयोग करते हुए एक योजना बनाई। एक दिन जब श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बालों और गायों के साथ यमुना किनारे भोजन कर रहे थे, तब ब्रह्मा जी ने सभी ग्वाल-बालों और गायों को अदृश्य कर दिया। उन्होंने उन्हें अपनी माया के बल से एक गुफा में छिपा दिया।

ब्रह्मा जी को लगा कि यदि श्रीकृष्ण वास्तव में ईश्वर हैं, तो वे इस समस्या को सुलझा लेंगे। यदि नहीं, तो उनका दिव्यता का दावा मिथ्या साबित होगा।

श्रीकृष्ण की दिव्य लीला

भगवान श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे। वे समझ गए कि यह ब्रह्मा जी की लीला है। लेकिन भगवान ने इसे एक अवसर के रूप में देखा, ताकि ब्रह्मा जी को उनकी सीमा और उनकी माया की सच्चाई का बोध कराया जा सके।

भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया का प्रयोग करते हुए अद्भुत लीला रची। उन्होंने प्रत्येक ग्वाल-बाल और गाय का सटीक प्रतिरूप बना दिया। ये प्रतिरूप असली ग्वाल-बाल और गायों जैसे ही थे—उनके हाव-भाव, आवाज़ें, आदतें और सब कुछ।

ब्रह्मा जी का भ्रम

ब्रह्मा जी ने जब यह दृश्य देखा तो वे चकित रह गए। उन्होंने सोचा कि यह कैसे संभव है? जिन ग्वाल-बालों और गायों को उन्होंने गुफा में छिपाया था, वे यहाँ कैसे हो सकते हैं? उन्होंने गुफा में जाकर देखा, तो वहाँ भी ग्वाल-बाल और गायें वैसे ही उपस्थित थीं।

ब्रह्मा जी की माया और भ्रम तब और गहरा गया, जब उन्होंने देखा कि हर ग्वाल-बाल और गाय के अंदर भगवान श्रीकृष्ण ही विद्यमान हैं। उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि यह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि साक्षात परब्रह्म हैं।

ब्रह्मा जी का मान भंग

जब ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण की यह अद्भुत लीला देखी, तो उनका अहंकार चूर-चूर हो गया। उन्होंने समझ लिया कि उनकी माया और शक्ति भगवान श्रीकृष्ण की अनंत शक्ति के आगे कुछ भी नहीं है।

वे श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़े और उनसे क्षमा याचना करने लगे। उन्होंने कहा:

> “हे भगवन! मैं अपनी अल्प बुद्धि और अहंकार के कारण आपकी दिव्य लीलाओं को पहचान नहीं पाया। मैंने आपकी परीक्षा लेने का प्रयास करके एक गंभीर भूल की है। कृपया मुझे क्षमा करें। आप साक्षात परब्रह्म हैं, जिनकी माया को समझ पाना किसी भी प्राणी के लिए संभव नहीं है।”

श्रीकृष्ण का उत्तर

भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर मुस्कुराते हुए कहा:

> “हे ब्रह्मा! तुमने जो किया, वह मेरे लिए कोई समस्या नहीं थी। मेरी माया इतनी व्यापक है कि बड़े-बड़े योगी और ज्ञानी भी इसमें फँस जाते हैं। लेकिन जो भक्त मुझ पर पूर्ण विश्वास और भक्ति रखते हैं, वे मेरी माया से परे हो जाते हैं। तुम्हारा यह अहंकार केवल तुम्हारी परीक्षा थी। अब तुम मुक्त हो गए हो।”

ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण के चरणों में बार-बार नमन किया और उनके अद्भुत स्वरूप का दर्शन किया।

कथा का गूढ़ संदेश

यह कथा गहन आध्यात्मिक संदेश देती है। भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला से निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं:

1. अहंकार का त्याग: चाहे कोई कितना भी ज्ञानवान और शक्तिशाली क्यों न हो, अहंकार से बचना आवश्यक है। ब्रह्मा जी जैसे महान देवता भी अहंकार के कारण भूल कर बैठे।

2. ईश्वर की अनंतता: भगवान की शक्तियों को समझ पाना मानव या देवताओं के लिए संभव नहीं है। उनकी माया असीमित और उनकी लीलाएँ अलौकिक हैं।

3. भक्ति का महत्व: ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग और सच्ची भक्ति आवश्यक है।

4. माया का प्रभाव: भगवान की माया इतनी प्रबल है कि बड़े-बड़े ज्ञानी और योगी भी इसमें उलझ जाते हैं। केवल भगवान के प्रति समर्पण ही माया से मुक्ति का मार्ग है।

5. सामर्थ्य और दया: भगवान हर परिस्थिति को अपने सामर्थ्य और दया से सुलझा सकते हैं।

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण और ब्रह्मा जी की यह कथा ईश्वर की महिमा और उनकी लीला के गहन रहस्यों को प्रकट करती है। यह हमें अहंकार त्यागने और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण करने की प्रेरणा देती है। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा जी का मान भंग करके यह सिखाया कि ईश्वर की माया और शक्ति को समझने का प्रयास व्यर्थ है।

यह कथा आज भी भक्तों को भगवान की ओर आकर्षित करती है और जीवन में आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।