बकासुर का वध:
बकासुर एक राक्षस था जो भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल में मथुरा के पास व्रज क्षेत्र (गोकुल) में उत्पन्न हुआ था। बकासुर मथुरा के राजा कंस का एक मित्र था और कंस ने उसे व्रजवासियों को परेशान करने के लिए भेजा था। बकासुर ने व्रज के गाँव में आकर वहां के लोगों को डराना और शिकार करना शुरू कर दिया। वह एक विशाल पक्षी के रूप में आता था और अपने बड़े-से मुंह में किसी भी व्यक्ति को निगलने की क्षमता रखता था।
एक दिन बकासुर कृष्ण के मित्रों को डराने आया और सुदामा नामक एक बालक को अपने मुंह में डालने की कोशिश की। कृष्ण ने देखा कि उनके मित्र संकट में हैं, तो वह बकासुर से लड़ने के लिए तैयार हो गए। कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करते हुए बकासुर से मुकाबला किया। उन्होंने बकासुर को अपनी पूरी ताकत से हवा में उड़ा दिया और उसे एक जबरदस्त वार किया। बकासुर को कृष्ण के हाथों मार डाला गया और इस प्रकार व्रजवासियों को राहत मिली।
बकासुर का पिछले जन्म में रूप:
बकासुर के बारे में पुराणों में कहा जाता है कि वह अपने पिछले जन्म में एक राक्षस था, जिसका नाम “दुर्मुख” था। दुर्मुख ने भगवान शिव की उपासना की थी और शिवजी ने उसे वरदान दिया था कि वह किसी भी रूप में उत्पन्न होगा तो वह अजेय रहेगा। लेकिन, दुर्मुख ने अपने वरदान का दुरुपयोग किया और अहंकार में भरकर दुष्टता करने लगा। इस कारण उसे अगले जन्म में राक्षस रूप में जन्म लेना पड़ा और वह बकासुर के रूप में कृष्ण के सामने आया।
बकासुर का वध श्री कृष्ण द्वारा उसकी अधर्मिता और अहंकार के कारण हुआ था, जो यह दिखाता है कि भगवान हर रूप में दुष्टता का नाश करने के लिए अवतार लेते हैं।