दावानल की कथा

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में “दावानल” (जंगल की अग्नि) की कथा अत्यंत रोचक और रहस्यमय है। यह कथा वृंदावन के गोकुलवासियों के उद्धार और भगवान के दिव्य पराक्रम को दर्शाती है।

भूमिका

जब श्रीकृष्ण गोकुल में बाल लीलाएँ कर चुके, तब माता यशोदा और नंद बाबा ने उन्हें गोकुल से वृंदावन ले जाने का निर्णय लिया। वृंदावन का वन अत्यंत रमणीय था, जहाँ श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ गौचारण करते और असुरों का संहार कर भक्तों की रक्षा करते थे।

एक दिन, जब श्रीकृष्ण और बलराम अपने सखाओं के साथ वन में गौचारण कर रहे थे, तब उन्होंने कई अद्भुत लीलाएँ कीं। उस दिन उन्होंने कालिय नाग का दमन किया था, जिससे समस्त ग्वालबाल प्रसन्न थे और आनंदित होकर खेल रहे थे। उसी रात, जब सभी ग्वालबाल थककर एक वृक्ष के नीचे सो गए, तब एक भीषण घटना घटी—वृंदावन के वन में भीषण दावानल (जंगल की आग) प्रकट हुई।

दावानल का प्रकट होना

रात्रि का समय था। घना अंधकार चारों ओर फैल चुका था। सभी ग्वालबाल श्रीकृष्ण के साथ थककर गहरी नींद में सो गए थे। उसी समय, तेज़ हवा के झोंकों के साथ वृंदावन के वन में अचानक भयंकर आग प्रज्वलित हो उठी। यह दावानल एक प्राकृतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह अग्निदेव का ही रूप था, जो भगवान की लीलाओं में सम्मिलित होने के लिए आया था।

यह अग्नि चारों ओर फैल गई और धीरे-धीरे उस स्थान की ओर बढ़ने लगी, जहाँ श्रीकृष्ण और उनके सखा सो रहे थे। अग्नि की लपटें विशाल वृक्षों को जलाने लगीं, पक्षी भयभीत होकर आकाश में उड़ने लगे, और वन्य जीव इधर-उधर भागने लगे। वातावरण में धुआँ और लपटों का तांडव था।

गोपबालकों की नींद खुल गई। वे घबराकर इधर-उधर देखने लगे। उन्होंने देखा कि चारों ओर अग्नि की प्रचंड लपटें उठ रही हैं। भय और चिंता से व्याकुल होकर वे श्रीकृष्ण और बलराम के पास दौड़े और उनसे प्रार्थना करने लगे—

“हे कृष्ण! हे बलराम! इस अग्नि से हमारी रक्षा करें। हम शरणागत हैं, हमें बचाइए!”

श्रीकृष्ण का आश्वासन

श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं को धैर्य बंधाया और प्रेमपूर्वक कहा—

“डरो मत, यह अग्नि तुम्हारा कुछ भी अहित नहीं कर सकेगी। मेरी शरण में आने वाले भक्तों की रक्षा करना मेरा धर्म है। यह दावानल भी मेरे ही आदेश से प्रकट हुआ है और अब मैं ही इसे अपने में समाहित कर लूँगा।”

भगवान के वचन सुनकर गोपबालकों का भय समाप्त हो गया। वे सभी श्रीकृष्ण के आदेश की प्रतीक्षा करने लगे।

भगवान की अद्भुत लीला

श्रीकृष्ण ने अपने ईश्वरीय सामर्थ्य से संपूर्ण दावानल को अपनी लीलामयी शक्ति से अपने मुख में समाहित कर लिया। वे धीरे-धीरे गहरी साँस लेने लगे, और जैसे-जैसे उन्होंने श्वास ग्रहण किया, वैसे-वैसे वह भयंकर अग्नि उनकी ओर आकर्षित होती चली गई। कुछ ही क्षणों में संपूर्ण जंगल की अग्नि भगवान के मुख में प्रवेश कर गई और सम्पूर्ण वन पुनः शीतल और शांत हो गया।

यह दृश्य देखकर ग्वालबाल आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने अपने प्रिय सखा श्रीकृष्ण की जय-जयकार की।

दावानल का आध्यात्मिक रहस्य

यह लीला केवल बाह्य रूप से अग्नि शांत करने की नहीं थी, बल्कि इसका गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य भी है। दावानल उस सांसारिक ताप और क्लेश का प्रतीक है, जो भौतिक संसार में जीव को सताता है। भगवान श्रीकृष्ण उस दावानल को समाप्त कर यह दर्शाते हैं कि जो भी उनकी शरण में आता है, वह सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है।

इस कथा का सार यही है कि जो भी श्रीकृष्ण की भक्ति करता है, उसके जीवन के समस्त संकट स्वयं भगवान हर लेते हैं।