भगवान श्रीकृष्ण की अपने बाल सखाओं के साथ नृत्य लीला
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ अत्यंत मनोहर, मधुर और भक्तों को आनंद देने वाली हैं। उन्होंने नंदगांव और वृंदावन में अपने ग्वाल बाल सखाओं के साथ अनेक प्रकार की लीलाएँ कीं, जिनमें नृत्य लीला भी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह लीला केवल एक मनोरंजन या खेल नहीं था, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक रहस्य छिपे थे।
इस लेख में हम भगवान श्रीकृष्ण की बाल सखाओं के साथ की गई नृत्य लीला का विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे।
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1. नृत्य लीला का प्रारंभ: बाल्यावस्था की सरलता
भगवान श्रीकृष्ण जब छोटे थे, तो वे गोकुल में अपने मित्रों के साथ खेला करते थे। उनके मित्रों में बलराम, श्रीदामा, सुभाष, माधुमंगल, उद्धव, और अन्य कई ग्वाल बाल थे। ये सभी श्रीकृष्ण के अत्यंत प्रिय सखा थे और उनके साथ दिन-रात खेलते, हँसते और आनंद में डूबे रहते थे।
नंदगांव और वृंदावन के हरे-भरे कुंजों में, यमुना के किनारे और गोचारण भूमि में श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ आनंदपूर्वक नृत्य करते थे। यह नृत्य कभी-कभी खेल के रूप में होता था, तो कभी किसी उत्सव या खुशी के अवसर पर किया जाता था।
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2. नृत्य लीला का विशेष अवसर
भगवान श्रीकृष्ण की नृत्य लीला कई अवसरों पर हुई, जिनमें कुछ विशेष प्रसंग प्रमुख हैं—
(क) माखन चोरी के बाद नृत्य
गोपियाँ जब श्रीकृष्ण की माखन चोरी की शिकायत नंद बाबा और यशोदा मैया से करतीं, तब कृष्ण अपनी सरल मुस्कान से सबको मोहित कर देते। कई बार जब वे अपने सखाओं के साथ माखन चोरी करते और पकड़े जाते, तो गोपियाँ उनसे दंडस्वरूप नृत्य करवातीं।
गोपियाँ कहतीं—
“अरे नंदलाल! यदि तुमने हमारे घर से माखन चुराया है, तो तुम्हें दंड स्वरूप हमारे कहने पर नृत्य करना होगा।”
भगवान श्रीकृष्ण अपनी बालसुलभ चतुराई से मुस्कुराते और अपनी आँखें इधर-उधर घुमाकर अपने सखाओं को संकेत देते कि वे भी इसमें भाग लें। फिर कृष्ण, बलराम और उनके सखा मिलकर नृत्य करने लगते। उनके नृत्य को देखकर गोपियाँ भी आनंद विभोर हो जातीं और अपने सारे क्रोध को भूलकर ताली बजाने लगतीं।
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(ख) वन में गाय चराते समय नृत्य लीला
वृंदावन की हरियाली में जब श्रीकृष्ण और उनके सखा अपनी गायों को चराने ले जाते, तब वे वहाँ तरह-तरह के खेल खेलते। कभी वे एक-दूसरे पर फूलों की वर्षा करते, तो कभी वृक्षों की शाखाओं पर झूलते। इसी बीच श्रीकृष्ण की मुरली बज उठती, जिसकी ध्वनि सुनकर सभी सखा झूम उठते और आनंद में नृत्य करने लगते।
सुभाष, श्रीदामा और माधुमंगल नृत्य में सबसे आगे होते। बलराम जी भी अपनी अद्भुत शक्ति से नृत्य करते और पूरी ग्वाल मंडली उल्लास से भर जाती। कभी-कभी वे अपनी लाठी उठाकर नृत्य करते, तो कभी एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर हँसी-ठिठोली करते।
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(ग) जल विहार के समय नृत्य
एक दिन की बात है, जब श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ यमुना किनारे पहुँचे। वहाँ जल में कमल खिले हुए थे और पक्षियों की चहचहाहट हो रही थी। कृष्ण और उनके सखा जलक्रीड़ा करने लगे। जब वे जल से बाहर निकले, तो कृष्ण ने अपनी मुरली बजानी शुरू की।
उस मधुर संगीत को सुनकर सभी सखा नाचने लगे। वे कभी तालियाँ बजाते, कभी हाथ पकड़कर वृत्ताकार नृत्य करते। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनके साथ अद्भुत नृत्य किया। यह दृश्य इतना मनोरम था कि देवताओं ने भी स्वर्ग से पुष्प वर्षा की।
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(घ) पर्वों और उत्सवों पर नृत्य
ब्रज में अनेक पर्व मनाए जाते थे, जैसे रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, होली, गोवर्धन पूजा आदि। इन उत्सवों पर ग्वाल बाल समूह बनाकर आनंदपूर्वक नृत्य करते। श्रीकृष्ण स्वयं सबसे आगे रहकर अपने सखाओं के साथ नृत्य करते और उनकी ऊर्जा से पूरा ब्रजमंडल आनंद में डूब जाता।
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3. नृत्य लीला के गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य
भगवान श्रीकृष्ण की यह नृत्य लीला केवल खेल नहीं थी, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे थे—
(क) भक्ति का संदेश
श्रीकृष्ण की नृत्य लीला यह दर्शाती है कि जब मनुष्य प्रेम और भक्ति से पूर्ण होता है, तो वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर आनंद में मग्न हो सकता है। उनके सखा कोई साधारण बालक नहीं थे, वे उच्च कोटि के भक्त थे, जिन्होंने कृष्ण के साथ अपनी भक्ति को व्यक्त करने के लिए नृत्य को माध्यम बनाया।
(ख) सखा भाव की प्रधानता
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सखाओं के साथ नृत्य कर यह दिखाया कि ईश्वर केवल पूजनीय ही नहीं, बल्कि मित्र भी हो सकते हैं। यह लीला सखा भाव की उच्चता को प्रकट करती है।
(ग) समर्पण और आनंद
जब कृष्ण और उनके सखा नृत्य करते थे, तो वे अपनी सारी चिंताओं को भूल जाते थे। यह संदेश है कि यदि मनुष्य अपने हृदय में पूर्ण समर्पण और प्रेम रखे, तो वह भी जीवन में आनंद और शांति प्राप्त कर सकता है।
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4. नृत्य लीला का आधुनिक संदर्भ
आज भी वृंदावन और गोकुल में श्रीकृष्ण की नृत्य लीला को भक्ति रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मथुरा-वृंदावन में नंदोत्सव, होली और अन्य उत्सवों में श्रद्धालु ग्वाल बालों की भाँति नृत्य करते हैं और भगवान की भक्ति में मग्न हो जाते हैं।
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निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण की नृत्य लीला केवल एक मनोरंजक घटना नहीं थी, बल्कि यह प्रेम, भक्ति और आनंद का एक अनोखा उदाहरण थी। इस लीला में उन्होंने अपने सखाओं के साथ अद्भुत आनंद का अनुभव किया और संसार को यह सिखाया कि भक्ति का मार्ग केवल ध्यान और तपस्या तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें प्रेम, आनंद और उल्लास का भी स्थान है।
उनकी यह लीला हमें यह भी सिखाती है कि यदि हम भगवान के प्रति निष्कपट प्रेम रखें और उन्हें अपने जीवन का मित्र बनाएँ, तो हमें भी वही दिव्य आनंद प्राप्त हो सकता है जो उनके सखा बाल्यकाल में अनुभव करते थे।
यदि आप इस विषय को और विस्तार से पढ़ना चाहते हैं, तो कृपया बताइए, मैं इसे और अधिक विस्तृत रूप से लिख सकता हूँ।