भगवान श्री कृष्ण की माटी खाने की लीला
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में से एक अत्यंत प्रसिद्ध और मनोहर लीला है—माटी खाने की लीला। यह लीला न केवल बाल कृष्ण की मोहक चपलता को दर्शाती है, बल्कि इसके गहरे आध्यात्मिक अर्थ भी हैं। यह घटना श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में वर्णित है और भक्तों के लिए विशेष रूप से प्रेरणादायक है।
लीला का पृष्ठभूमि
गोकुल और वृंदावन में बालकृष्ण ने अनेकों बाल लीलाएँ रचीं, जिससे वे गोकुलवासियों के प्रिय बन गए। उनकी मधुर मुस्कान, भोला स्वभाव और अलौकिक खेल-खेल में उनके दिव्य रूप का दर्शन सभी को आनंदित कर देता था। श्रीकृष्ण की माताजी यशोदा अत्यंत स्नेहमयी थीं और वे अपने बालकृष्ण की हर चेष्टा पर मुग्ध रहती थीं।
श्रीकृष्ण का लालन-पालन गोपों के साथ हुआ, जो ग्वाल-बालों के साथ खेलते, दौड़ते और अनेक प्रकार की चंचल बाल लीलाएँ करते रहते थे। उन्हीं लीलाओं में एक दिन उन्होंने मिट्टी खाने की लीला रची। यह लीला कई महत्वपूर्ण संदेशों को समाहित किए हुए है, जिसे हमें समझने की आवश्यकता है।
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लीला का वर्णन
1. ग्वाल-बालों के साथ खेलना
एक दिन श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ गोचारण के लिए गए। सभी ग्वाल-बाल आनंदपूर्वक खेल रहे थे, हँसी-ठिठोली कर रहे थे और श्रीकृष्ण के साथ प्रसन्नता से समय बिता रहे थे। खेलते-खेलते श्रीकृष्ण को भूख लग गई। उनके सखा तो अपने-अपने घर से लाया हुआ भोजन कर रहे थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने बालस्वभाव में अनोखी चेष्टा की और धरती की माटी उठा ली और खाने लगे।
2. सखाओं की शिकायत
यह देखकर उनके सखा अचंभित रह गए। गोपबालकों ने तुरंत जाकर माता यशोदा से शिकायत कर दी, “माँ यशोदा! देखो, कृष्ण ने माटी खा ली है।”
यशोदा मैया को पहले विश्वास नहीं हुआ। उन्हें लगा कि यह बालकों की शरारत हो सकती है। उन्होंने श्रीकृष्ण को बुलाया और पूछा,
“लल्ला! तूने माटी खाई?”
तब नटखट श्रीकृष्ण ने बड़ी भोली सूरत बनाकर उत्तर दिया,
“मैया! मैंने कोई माटी नहीं खाई। ये सब झूठ बोल रहे हैं।”
3. श्रीकृष्ण का मुख खोलना
माता यशोदा को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने सखाओं की बातों को गंभीरता से लिया और श्रीकृष्ण से कहा,
“लल्ला, यदि तूने माटी नहीं खाई तो अपना मुख खोलकर दिखा।”
श्रीकृष्ण ने सोचा कि अब माता यशोदा को अपनी दिव्य लीला दिखाने का समय आ गया है। उन्होंने धीरे-धीरे अपना मुख खोल दिया।
4. यशोदा माता को विराट दर्शन
जैसे ही माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का मुख देखा, वे चकित रह गईं। उन्हें केवल माटी ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन हुए।
उन्होंने कृष्ण के छोटे से मुख में –
अनगिनत लोक-लोकांतर,
सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह-नक्षत्र,
विशाल पर्वत, नदियाँ, सागर,
सम्पूर्ण सृष्टि का चक्र,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश,
और स्वयं को भी श्रीकृष्ण के मुख में देखा।
माता यशोदा यह सब देखकर स्तब्ध रह गईं। उनकी बुद्धि कुछ क्षण के लिए ठिठक गई, वे सोचने लगीं—
“क्या यह मेरा वही छोटा सा लल्ला है? क्या यह कोई साधारण बालक है या स्वयं साक्षात् नारायण हैं?”
वे विस्मय से भर गईं और उनकी ममता और प्रेम और भी बढ़ गया। तभी श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से माता यशोदा की बुद्धि को लौकिक अवस्था में ला दिया, जिससे वे इस विराट दर्शन को भूल गईं और पुनः श्रीकृष्ण को गोद में लेकर प्रेमपूर्वक दुलारने लगीं।
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लीला का आध्यात्मिक रहस्य
इस लीला में कई गहरे आध्यात्मिक संकेत छिपे हुए हैं—
1. भगवान ही संपूर्ण सृष्टि के अधिपति हैं
श्रीकृष्ण ने अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड को दिखाकर यह सिद्ध किया कि वे ही इस समस्त सृष्टि के कर्ता, पालक और संहारक हैं। समस्त लोक उन्हीं में स्थित हैं।
2. माया का प्रभाव
माता यशोदा को जब श्रीकृष्ण ने ब्रह्मांड के दर्शन कराए, तो उन्हें एक क्षण के लिए ब्रह्मज्ञान प्राप्त हुआ। लेकिन कृष्ण ने तुरंत अपनी योगमाया से उन्हें लौकिक प्रेम की स्थिति में लौटा दिया। इससे यह सिद्ध होता है कि जब तक भगवान की कृपा नहीं होती, तब तक कोई भी जीव अपनी माया से मुक्त नहीं हो सकता।
3. बालकृष्ण की नटखट लीला
भगवान श्रीकृष्ण नटखट भी हैं और भोले भी। वे अपनी बाल्यावस्था में भी ऐसी लीलाएँ करते हैं जिससे भक्तगण उनके अद्भुत स्वरूप का अनुभव कर सकें। उनकी माटी खाने की लीला दर्शाती है कि वे प्रेम करने वाले भक्तों को समय-समय पर अपनी दिव्यता का आभास कराते रहते हैं।
4. सांसारिक सत्य की झलक
भगवान ने यह भी संकेत दिया कि यह संपूर्ण जगत, जिसे हम वास्तविक मानते हैं, वह भी एक मायारूप है। वास्तव में, यह सारा ब्रह्मांड भगवान के ही अधीन है और उनकी ही इच्छा से संचालित होता है।
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उपसंहार
श्रीकृष्ण की माटी खाने की लीला केवल एक बाल-क्रीड़ा नहीं, बल्कि इसमें अद्भुत आध्यात्मिक रहस्य छिपे हुए हैं। यह लीला हमें यह सिखाती है कि भगवान की प्रत्येक लीला में अनंत रहस्य होते हैं, जिन्हें केवल भक्ति और प्रेम से समझा जा सकता है।
माता यशोदा के प्रेम में श्रीकृष्ण बंधे रहते हैं, परंतु समय-समय पर वे यह भी संकेत देते हैं कि वे अनंत ब्रह्मांडों के अधिपति हैं।
इसलिए, जो भी भक्त इस लीला का श्रवण और मनन करता है, उसे निश्चित रूप से श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। जय श्रीकृष्ण!