श्री कृष्ण और श्री राधा रानी की बाल लीलाएँ

भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा रानी की बाल लीलाएँ प्रेम, भक्ति और अलौकिक आनंद से परिपूर्ण हैं। श्री कृष्ण की बाल लीलाएँ गोपियों, गोप-गोपियों, ब्रजवासियों और विशेष रूप से श्री राधा रानी के साथ अनेक मधुर प्रसंगों से ओतप्रोत हैं।

1. श्री राधा और श्री कृष्ण का जन्म एवं प्रारंभिक काल

श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, लेकिन उनके पिता वसुदेव ने उन्हें यशोदा और नंद बाबा के यहाँ गोकुल में पहुँचा दिया। वहीं, दूसरी ओर श्री राधा रानी का जन्म वृषभानु जी और माता कीर्ति के यहाँ बरसाना में हुआ। मान्यता है कि श्री राधा जी बिना किसी शारीरिक जन्म के, दिव्य ज्योति रूप में प्रकट हुई थीं।

श्री राधा और श्री कृष्ण का प्रथम मिलन उनके बाल्यकाल में ही हुआ। जब श्री कृष्ण छोटे थे, तब वे गोकुल में अपनी बाल लीलाओं से सभी को आनंदित करते थे। जब वे अपने बाल्यकाल में गोचारण करने लगे, तब उनका सान्निध्य राधा रानी से बढ़ने लगा।

2. श्री कृष्ण और श्री राधा रानी का प्रथम मिलन

श्री कृष्ण और राधा रानी का प्रथम मिलन तब हुआ जब श्री कृष्ण ने पहली बार वृन्दावन में प्रवेश किया। यह वह समय था जब श्री राधा अपनी सखियों के साथ यमुना तट पर खेल रही थीं। जैसे ही उन्होंने श्री कृष्ण को देखा, वे उनकी ओर आकर्षित हो गईं। इसी समय से उनके बीच प्रेम और भक्ति का दिव्य संबंध स्थापित हुआ।

3. माखन चोरी और राधा रानी के संग हास-परिहास

श्री कृष्ण अपनी बाल्यकाल में माखन चोरी के लिए प्रसिद्ध थे। वे अपने सखाओं के साथ मिलकर ग्वालिनों के घरों से माखन चुराते और बाल सखाओं संग बाँटते। एक बार, जब श्री कृष्ण माखन चोरी करने गए, तब श्री राधा ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। उन्होंने कृष्ण से पूछा कि वे चोरी क्यों करते हैं, जबकि उनकी माता यशोदा उन्हें बहुत सारा माखन देती हैं। इस पर श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “राधे! यह माखन तुम लोगों के प्रेम का प्रतीक है, जो मुझे सबसे प्रिय है।”

4. राधा-कृष्ण का कुंज बिहारी खेल

श्री राधा और श्री कृष्ण की बाल लीलाओं में कुंज बिहारी खेल विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह लीला वृन्दावन के निकुंजों में होती थी, जहाँ श्री कृष्ण और श्री राधा अपनी सखियों के साथ क्रीड़ा करते। कभी वे फूलों की वर्षा करते, कभी यमुना तट पर जल क्रीड़ा करते, तो कभी मधुर गीतों के माध्यम से एक-दूसरे से संवाद करते।

5. रास लीला की प्रारंभिक झलकियाँ

बाल्यावस्था में ही श्री कृष्ण ने अपनी मोहिनी मुरली से सम्पूर्ण ब्रज को मोहित कर दिया था। जब भी वे बंसी बजाते, समस्त गोपियाँ उनकी ओर आकर्षित हो जातीं। बाल्यकाल में भी श्री कृष्ण ने रास लीला का प्रारंभ किया था, जिसमें श्री राधा रानी उनके साथ नृत्य करती थीं।

6. राधा-कृष्ण की जल क्रीड़ा

एक बार श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी में जल क्रीड़ा कर रहे थे। श्री राधा अपनी सखियों के साथ वहाँ पहुँचीं। श्री कृष्ण ने राधा रानी को जल में खींच लिया और दोनों ने जल में एक-दूसरे पर छींटे मारकर खूब खेला। यह लीला ब्रजवासियों के लिए अत्यंत आनंदमय थी।

7. फूलों की होली और मधुर प्रेम प्रसंग

राधा-कृष्ण की बाल लीलाओं में एक और प्रमुख प्रसंग है—फूलों की होली। बसंत पंचमी के दिन श्री कृष्ण और श्री राधा अपनी सखियों संग फूलों की होली खेलते थे। श्री कृष्ण, राधा रानी पर रंग डालते और वे लजाते हुए उन्हें मारने का प्रयास करतीं। यह लीला अत्यंत मनोरम होती थी।

8. श्री कृष्ण की बाल गोपियों संग प्रेम भरी छेड़छाड़

श्री कृष्ण अपनी बाल सखाओं के साथ गोपियों को छेड़ने में भी बहुत निपुण थे। वे कभी उनकी मटकी तोड़ देते, तो कभी उनका घड़ा छुपा देते। श्री राधा जब श्री कृष्ण की शरारतों से परेशान हो जातीं, तब वे अपनी सखियों संग जाकर माता यशोदा से उनकी शिकायत कर देतीं।

9. बंसी की मधुर तान और राधा जी का रिझना

जब भी श्री कृष्ण अपनी बंसी बजाते, तो श्री राधा मंत्रमुग्ध होकर उनकी ओर खिंची चली आतीं। उनकी मुरली की तान इतनी मोहक थी कि ब्रज की गोपियाँ, ग्वाले और यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी ठहर जाते। श्री राधा इस तान को सुनकर स्वयं को रोक नहीं पातीं और श्री कृष्ण के पास पहुँच जातीं।

10. प्रेम और भक्ति का संदेश

श्री कृष्ण और श्री राधा की बाल लीलाएँ केवल प्रेम प्रसंगों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे भक्ति, समर्पण और दिव्य आनंद का संदेश देती हैं। उनका प्रेम लौकिक नहीं, बल्कि अलौकिक था, जो भक्ति मार्ग में हर भक्त के लिए प्रेरणा है।

निष्कर्ष

श्री राधा और श्री कृष्ण की बाल लीलाएँ उनके अद्भुत प्रेम, भक्ति और आनंद का प्रतीक हैं। इन लीलाओं में न केवल दिव्य प्रेम झलकता है, बल्कि भक्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है। ब्रज की भूमि में आज भी इन लीलाओं की स्मृतियाँ जीवंत हैं, और भक्तगण इन्हें सुनकर व स्मरण कर आत्मिक आनंद का अनुभव करते हैं।