श्रीकृष्ण जन्मोत्सव और उनका दिव्य श्रृंगार

भूमिका

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल यशोदा और नंद बाबा के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त गोकुल और ब्रह्मांड के लिए आनंद और उल्लास का संदेश लेकर आया। उनके जन्म की खबर सुनते ही पूरे गोकुल में खुशी की लहर दौड़ गई। गोपियाँ और ग्वाल-बाल आनंदित हो उठे। यशोदा मईया और गोपियों ने नन्हें कान्हा का बड़े प्रेम और भक्ति से श्रृंगार किया, जिससे उनका रूप और भी दिव्य प्रतीत होने लगा।

1. यशोदा मईया का वात्सल्य और कान्हा का प्रथम स्पर्श

रात्रि के अंतिम प्रहर में जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो नंद भवन में दिव्य प्रकाश फैल गया। यशोदा मईया को जब होश आया, तो उन्होंने अपने श्यामसुंदर बालक को अपनी गोद में पाया। उनके कोमल तन को देखकर माता का हृदय वात्सल्य से भर गया। उन्होंने कृष्ण को अपनी छाती से लगाया और अपनी गोद में रखकर प्रेमपूर्वक निहारा।

गोपियों को जैसे ही खबर मिली कि यशोदा मईया के घर एक अद्भुत बालक ने जन्म लिया है, वे आनंदित होकर दौड़ती हुईं आईं। वे अपने हाथों में दूध, दही, माखन, मिठाई, हल्दी, चंदन और अन्य श्रृंगार सामग्री लेकर आईं, ताकि अपने लाडले गोपाल का सुंदर श्रृंगार कर सकें।

2. गंगाजल और पंचामृत से स्नान

नवजात श्रीकृष्ण के तन पर जन्म के समय की कुछ धूल और दिव्य कण लगे हुए थे। यशोदा मईया और गोपियों ने मिलकर उनका पवित्र जल से स्नान कराया।

गंगाजल और यमुना जल: गोपियाँ स्वर्ण कलशों में गंगाजल और यमुना जल लेकर आईं और उससे बालकृष्ण का अभिषेक किया।

पंचामृत स्नान: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से पंचामृत तैयार किया गया और उससे श्रीकृष्ण का स्नान कराया गया।

गुलाब और केवड़ा जल: स्नान के बाद सुगंधित गुलाब और केवड़ा जल से कान्हा को स्नान कराया गया, जिससे उनका शरीर सुगंधित हो उठा।

गोपियाँ मंत्रोच्चार और मंगलगीत गाती रहीं। वे हर्षित होकर भगवान के इस दिव्य रूप का अवलोकन कर रही थीं।

3. उबटन और चंदन का लेप

स्नान के बाद श्रीकृष्ण के तन को और अधिक सुंदर बनाने के लिए उबटन और चंदन का लेप किया गया।

हल्दी और चंदन: गोपियों ने हल्दी, चंदन और केसर को दूध में मिलाकर एक विशेष उबटन तैयार किया।

केसर का लेप: श्रीकृष्ण के कोमल अंगों पर केसर और चंदन का लेप किया गया, जिससे उनका तन सुवर्ण के समान दमक उठा।

सुगंधित तेल: उनके बालों और शरीर पर विशेष सुगंधित तेल लगाया गया, जिससे उनका तन कोमल और सुगंधमय हो गया।

गोपियाँ यह कार्य बड़े प्रेम और भक्ति भाव से कर रही थीं। वे बार-बार कान्हा की चंचल आँखों और उनकी मधुर मुस्कान को निहार रही थीं।

4. दिव्य वस्त्र और रत्नजड़ित आभूषण

अब श्रीकृष्ण को सुंदर वस्त्र पहनाने की बारी आई।

पीतांबर वस्त्र: गोपियों ने भगवान को पीतांबर (पीले रंग के वस्त्र) पहनाए, जो उनके श्याम रंग के तन पर अत्यंत मनोहारी लग रहे थे।

रेशमी उपवस्त्र: उनके शरीर को ढकने के लिए हल्के रेशमी वस्त्र लपेटे गए, जो अत्यंत कोमल और सुगंधित थे।

रत्नजड़ित कंठहार: श्रीकृष्ण के गले में सोने और मोतियों का हार पहनाया गया, जो उनकी दिव्यता को और बढ़ा रहा था।

कानों में कुण्डल: कानों में झुमके डाले गए, जो उनकी चंचलता के साथ झूलते हुए अद्भुत छटा बिखेर रहे थे।

हाथों में कंगन और बाजूबंद: उनके नन्हे-नन्हे हाथों में स्वर्ण और रत्नों से जड़े कंगन और बाजूबंद पहनाए गए।

कमरबंद: उनकी कमर में एक सुंदर स्वर्ण कमरबंद पहनाया गया, जो उनकी चाल में और अधिक शोभा जोड़ रहा था।

पैरों में नूपुर: उनके नन्हे चरणों में चाँदी के पायजेब और घुँघरू बाँधे गए, जिनकी झंकार पूरे नंदगांव में गूँज उठी।

5. मुकुट और मोरपंख का अलंकरण

अब बारी आई मुकुट और मोरपंख धारण कराने की।

मोरपंख मुकुट: गोपियों ने श्रीकृष्ण के सिर पर एक सुंदर मुकुट रखा, जिसमें चमकीले मोरपंख सजे हुए थे। यह मुकुट उनके बालस्वरूप को दिव्यता प्रदान कर रहा था।

तुलसी माला: श्रीकृष्ण के गले में विशेष तुलसी की माला पहनाई गई, जिससे उनकी शोभा और अधिक बढ़ गई।

6. गोपियों का आनंद उत्सव और नृत्य

जब श्रीकृष्ण का श्रृंगार पूर्ण हुआ, तब गोपियाँ खुशी से झूम उठीं। वे मंगल गीत गाने लगीं—

“नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की!”

गोपियाँ ढोलक, मृदंग, मंजीरा और करताल बजाने लगीं।

कुछ गोपियाँ आनंद से झूमने लगीं और कुछ कृष्ण को देख-देखकर प्रेममग्न हो गईं।

चारों ओर बधाइयाँ गूँज उठीं।

7. नंद बाबा का दान और उत्सव का समापन

नंद बाबा ने पुत्र जन्म की खुशी में अपार दान दिया। उन्होंने ब्राह्मणों को स्वर्ण, गौ, अन्न और वस्त्र प्रदान किए। पूरे नंदगांव में दूध-दही की नदियाँ बहा दी गईं।

गोकुलवासियों ने अपने घरों को दीपों से सजाया।

घर-घर में माखन-मिश्री बाँटी गई।

संपूर्ण गोकुल में आनंद और उल्लास का वातावरण छा गया।

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण के जन्म का यह उत्सव केवल एक पर्व नहीं था, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और आनंद का महासागर था। यशोदा मईया और गोपियों ने श्रीकृष्ण के श्रृंगार को केवल एक साधारण प्रक्रिया के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुष्ठान के रूप में संपन्न किया। यह श्रृंगार उनके प्रति अनन्य प्रेम, वात्सल्य और भक्ति का प्रतीक था।

श्रीकृष्ण के इस दिव्य श्रृंगार का वर्णन जितना किया जाए, उतना कम है, क्योंकि उनका रूप स्वयं ब्रह्मांड की शोभा को पार कर जाता है।