यशोदा मईया का भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम

भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यकाल उनके भक्तों के लिए दिव्य लीलाओं से भरा हुआ है। विशेष रूप से, उनकी माता यशोदा के साथ उनका संबंध भक्तों के लिए अनन्य प्रेम और वात्सल्य का सबसे पवित्र उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी इसे सर्वोच्च मानते थे।

यशोदा मईया का प्रेम वात्सल्य भक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमें भगवान को माँ-बेटे के संबंध में बाँध लिया गया। इस विस्तृत लेख में हम यशोदा मईया के श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम को विभिन्न पहलुओं से समझने का प्रयास करेंगे:

1. यशोदा मईया का वात्सल्य प्रेम

यशोदा मईया का प्रेम सांसारिक माताओं के प्रेम से कई गुणा अधिक था क्योंकि उनका पुत्र स्वयं साक्षात भगवान था। किंतु भगवान ने अपने बालक स्वरूप में लीलाएं रचाकर अपने आपको एक सामान्य बालक के रूप में प्रकट किया, ताकि माता का स्नेह सहज बना रहे।

जब श्रीकृष्ण का जन्म गोकुल में हुआ, तब नंदबाबा और यशोदा मईया के घर आनंद की लहर दौड़ पड़ी। यशोदा मईया को श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से अपार सुख की अनुभूति होती थी। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि उनका लाडला कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं परमब्रह्म है। उनके लिए श्रीकृष्ण उनके पुत्र थे, और वे उनकी रक्षा व देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ती थीं।

2. कृष्ण के बालस्वरूप में यशोदा का आनंद

बालक कृष्ण की क्रीड़ाएं नंद भवन में हर क्षण एक नया उत्सव लेकर आती थीं। श्रीकृष्ण जब रोते, तो यशोदा मईया उन्हें गोद में लेकर दुलारतीं, स्तनपान करातीं और अपनी ममता से उन्हें शांत कर देतीं। उनका प्रेम इतना निश्छल और गहरा था कि जब वे श्रीकृष्ण को गोद में लेकर झुलातीं, तब उन्हें संसार की किसी अन्य वस्तु का ध्यान नहीं रहता था।

वे श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर कभी उनके मुख की सुंदरता निहारतीं, कभी उनके बालों को संवारतीं, और कभी उनके छोटे-छोटे हाथों और पैरों को चूमतीं। उनके लिए श्रीकृष्ण उनकी आत्मा का अंश थे, उनके जीवन का सार थे।

3. कृष्ण की शरारतें और यशोदा का प्रेमपूर्ण दंड

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेक बाल लीलाएँ रचीं, जिनमें उनकी माखन चोरी की लीला सबसे प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ मिलकर गोकुल की गलियों में मक्खन चुराने जाते थे। जब यशोदा मईया को यह ज्ञात होता, तो वे श्रीकृष्ण को पकड़कर उन्हें प्रेम से डांटतीं।

कई बार यशोदा मईया ने श्रीकृष्ण को मक्खन चुराते हुए पकड़ा और गुस्से में उन्हें पकड़कर दंड देने की चेष्टा की। किंतु जब वे श्रीकृष्ण की भोली सूरत और मासूम हंसी देखतीं, तो उनका हृदय पिघल जाता और वे उन्हें गले से लगा लेतीं।

4. उखल बंधन लीला: यशोदा का अनन्य प्रेम

भगवान श्रीकृष्ण की ‘उखल बंधन लीला’ इस वात्सल्य प्रेम का एक अद्भुत उदाहरण है। एक दिन श्रीकृष्ण घर में माखन खा रहे थे, तभी यशोदा मईया ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया। श्रीकृष्ण अपनी चपलता से भाग गए, लेकिन यशोदा मईया ने उनका पीछा किया और अंततः उन्हें पकड़ लिया।

उन्होंने श्रीकृष्ण को ऊखल (जाँता) से बाँधने का प्रयास किया, लेकिन बार-बार रस्सी छोटी पड़ जाती। जब यशोदा मईया थक गईं और उनके नेत्रों में वात्सल्य के आँसू आ गए, तब श्रीकृष्ण ने स्वयं को बंधने की अनुमति दी। यह दर्शाता है कि भगवान भी भक्त के प्रेम के आगे झुक जाते हैं।

5. कृष्ण के मुख में ब्रह्मांड का दर्शन

एक अन्य प्रसंग में जब श्रीकृष्ण बालक थे, तब उनके मित्रों ने उनकी शिकायत की कि उन्होंने मिट्टी खा ली है। यशोदा मईया जब उनके मुख को खोलकर देखती हैं, तो वे उसमें संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन करती हैं—सूर्य, चंद्र, तारे, सृष्टि के समस्त लोक, नदियाँ, पर्वत और यहाँ तक कि स्वयं को भी देखती हैं।

इस दृश्य को देखकर यशोदा मईया स्तब्ध रह जाती हैं, किंतु अगले ही क्षण वे इस घटना को भूलकर श्रीकृष्ण को अपने बालक रूप में ही स्वीकार कर लेती हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि उनका प्रेम किसी लौकिक ज्ञान या तर्क से परे था।

6. यशोदा मईया का निःस्वार्थ प्रेम

यशोदा मईया का प्रेम निःस्वार्थ था। उन्हें कभी यह एहसास नहीं हुआ कि उनका पुत्र कोई महान शक्ति है या कोई दैवीय अवतार। उनके लिए श्रीकृष्ण केवल उनका पुत्र था, जिसे वे अपनी ममता से बड़ा करना चाहती थीं।

उनका प्रेम इस बात से भी प्रकट होता है कि जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब यशोदा मईया अत्यंत दुःखी हो गईं। उनके हृदय में श्रीकृष्ण की यादें बस गई थीं और वे हर क्षण उनकी प्रतीक्षा करती थीं।

7. माता यशोदा की भक्ति का महत्व

भक्तियोग में चार प्रकार की भक्ति बताई गई है—दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य। यशोदा मईया का प्रेम वात्सल्य भाव का सर्वोच्च उदाहरण है। भगवान श्रीकृष्ण भी माता यशोदा के इस प्रेम को सर्वोच्च मानते थे।

यशोदा मईया का प्रेम दर्शाता है कि भगवान को प्रेम के बंधन में बाँधना संभव है, लेकिन यह प्रेम निःस्वार्थ और निष्कपट होना चाहिए। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है—

“नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद॥”

अर्थात्, “मैं न वैकुण्ठ में निवास करता हूँ, न योगियों के हृदय में। मैं वहीं रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त प्रेम से मुझे पुकारते हैं।”

8. निष्कर्ष

यशोदा मईया और श्रीकृष्ण का संबंध प्रेम, वात्सल्य और भक्ति का आदर्श उदाहरण है। यशोदा का प्रेम न केवल श्रीकृष्ण को लुभाता है, बल्कि समस्त भक्तों को यह प्रेरणा देता है कि यदि प्रेम निश्छल हो, तो स्वयं परमात्मा भी उसके वश में हो जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के प्रति यशोदा मईया का प्रेम अद्वितीय, आत्मीय और पवित्र था। यह प्रेम केवल माता-पुत्र के संबंध का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह दर्शाता है कि प्रेम और भक्ति से ईश्वर को भी जीता जा सकता है।