भगवान शिव शंकर जी का नंदग्राम (गोकुल) में भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप के दर्शन करने का प्रसंग अत्यंत मधुर और भावपूर्ण है। यह लीला श्रीमद्भागवत, ब्रज की व्रज-वाणी और संतों की कथाओं में बड़े आदर और प्रेम से गाई जाती है। यहाँ मैं आपके लिए इस दिव्य प्रसंग को विस्तारपूर्वक हिंदी में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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शिव शंकर द्वारा श्रीकृष्ण बाल रूप दर्शन की कथा
(एक भावपूर्ण विस्तृत वर्णन)
१. भूमिका
धर्मग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि जब-जब भगवान विष्णु धरती पर अवतार लेते हैं, तब देवता भी उनके दर्शन के लिए उत्सुक रहते हैं। श्रीकृष्ण के अवतार में भी यही हुआ। वेद-पुराणों में वर्णित है कि स्वयं ब्रह्मा, इन्द्र, वरुण, यम, वायु, अग्नि आदि देवता गोकुल में आकर उस नन्हें श्यामसुंदर के दर्शन करते रहे। उन्हीं में से एक सबसे विलक्षण प्रसंग है भगवान शंकर का नंदग्राम आगमन।
भगवान शंकर, जो स्वयं योगेश्वर, महादेव और त्रिकालदर्शी हैं, उन्हें भी उस ब्रज में जन्मे नंदलाल श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का आकर्षण हुआ। कैलास पर विराजमान शिवजी जब यह समाचार सुनते हैं कि स्वयं परब्रह्म श्रीकृष्ण नंदबाबा के घर बालरूप में प्रकट हुए हैं, तब वे ध्यानमग्न हो जाते हैं। उनकी अंतरात्मा से यह आकांक्षा उठती है कि “मुझे भी उस नन्हें श्यामसुंदर का दर्शन करना चाहिए।”
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२. कैलास से गोकुल की यात्रा
भगवान शंकर माता पार्वती के सामने अपनी इच्छा प्रकट करते हैं। वे कहते हैं –
“उमा! यह जानकर मेरा हृदय पुलकित हो रहा है कि स्वयं नारायण ने ब्रज में बालक रूप धारण किया है। उनकी लीला और सौंदर्य की झलक देखने के लिए मैं व्याकुल हूँ। मुझे गोकुल जाना ही होगा।”
पार्वतीजी भी इस विचार से आनंदित होती हैं और वे भी साथ चलना चाहती हैं। किन्तु शिवजी कहते हैं कि अभी केवल मैं ही जाऊँगा, क्योंकि यह दर्शन अत्यंत गोपनीय है।
शिवजी जटाजूट सजाकर, गले में सर्पों की माला धारण कर, भस्म रमाकर, डमरू और त्रिशूल लेकर गोकुल की ओर प्रस्थान करते हैं। उनके साथ नंदी बैल, गण और योगियों का समुदाय भी चलता है। उनके दर्शन से मार्ग के जीव-जंतु तक आनंदित हो उठते हैं।
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३. नंदग्राम का प्रथम दृश्य
जब शंकरजी गोकुल के समीप पहुँचते हैं, तो वे देखते हैं कि सम्पूर्ण व्रजभूमि एक अनोखी दिव्य आभा से दीप्त हो रही है। यमुना का कलकल नाद, ग्वाल-बालों की हंसी, गोपियों के गीत और गायों की मधुर रंभाना — सब वातावरण को अद्वितीय बना रहे थे।
गोकुल का हर द्वार सजा हुआ था। घर-घर मंगलगीत गाए जा रहे थे। नंदबाबा के महल में माता यशोदा गोद में अपने नन्हें कृष्ण को लेकर बैठी थीं। उस समय भगवान कृष्ण खेल-खेल में अपनी माता की उँगली पकड़कर हँस रहे थे।
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४. शिवजी का आगमन और अटकाव
शिवजी जब नंदभवन के द्वार पर पहुँचे, तो द्वारपालों ने उन्हें देखा। सामने खड़े महादेव भस्म रमाए, सर्पों को गले में धारण किए, रुद्राक्ष की माला पहने, जटाजूटवाले रूप में खड़े थे। द्वारपाल डर गए और वे भीतर जाकर यशोदा मैया से कहने लगे –
“मइया! बाहर एक अजीब साधु खड़ा है। शरीर पर भस्म लगी है, गले में नाग लटक रहे हैं। उसके साथ कुछ गण भी हैं। हमें लगता है कि यह कोई डरावना योगी है।”
यशोदा मैया माता का हृदय कोमल था। वे बाहर आकर देखने लगीं। उन्होंने शिवजी का स्वरूप देखा। साधारण स्त्रियों के लिए वह रूप भयप्रद प्रतीत होता है। इसलिए माता यशोदा ने कहा –
“बाबा! आप कौन हैं? आपसे मेरे नन्हें लाल को डर लग सकता है। कृपया आप दूर से ही आशीर्वाद दीजिए।”
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५. शिवजी की करुण याचना
शिवजी ने folded hands यशोदा से विनम्रता से कहा –
“मइया! मैं कोई सामान्य योगी नहीं हूँ। मैं आपके लाल का दर्शन करने आया हूँ। मैं उनके चरणकमलों की एक झलक पाना चाहता हूँ। कृपा कर मुझे बालकृष्ण के दर्शन करा दीजिए।”
लेकिन यशोदा को भय था कि कहीं उनका लाल इस अजीब से साधु को देखकर रो न पड़े। अतः उन्होंने शिवजी से निवेदन किया –
“बाबा! मेरा बच्चा बहुत छोटा है। वह आपके इस भयानक रूप से डर जाएगा। कृपा कर आप अभी यहाँ से चले जाइए।”
शिवजी का हृदय विषाद से भर गया। वे उदास होकर नंदभवन के बाहर पीपल वृक्ष के नीचे बैठ गए। उन्होंने समाधि लगाई और अपने मन में श्रीकृष्ण का ध्यान करने लगे।
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६. बालकृष्ण का आग्रह
उधर महल के भीतर जब श्रीकृष्ण ने देखा कि उनकी मैया द्वार से आकर कुछ उदास हैं, तो उन्होंने बालभाषा में पूछा –
“मैया! कौन आया था?”
यशोदा ने उत्तर दिया – “बेटा, एक अजीब साधु आया था। उसने साँप गले में पहन रखे थे, सारा शरीर भस्म से ढका था। मैं डर गई कि तुझे कहीं भय न लगे, इसलिए मैंने उसे लौटा दिया।”
तब बालकृष्ण हँस पड़े और बोले –
“मैया! वह साधु कोई साधारण साधु नहीं, वह मेरे अपने शिव बाबा हैं। उन्होंने मेरे दर्शन के लिए बहुत तप किया है। आप उन्हें क्यों लौटा दीं? आप तुरंत उन्हें बुलाइए।”
यशोदा मैया को समझ में आ गया कि यह कोई साधारण प्रसंग नहीं है। उन्होंने तुरंत दूत भेजकर शिवजी को बुलवाया।
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७. अद्भुत मिलन
जब शिवजी अंदर आए तो बालकृष्ण ने उन्हें देखकर हँसते हुए अपने दोनों नन्हें हाथ फैलाए। यह दृश्य देखकर समस्त गोकुलवासी स्तब्ध रह गए।
शिवजी नतमस्तक हो गए और उन्होंने बालकृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया। वे रो पड़े। उनके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। वे बोले –
“प्रभो! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मैं धन्य हुआ, क्योंकि आपने मुझे अपने इस अलौकिक बालरूप का दर्शन दिया।”
कृष्ण भी मुस्कराते हुए अपनी कोमल हथेलियों से शिवजी की जटाओं को पकड़ने लगे। कभी वे उनके गले के नाग से खेलने लगे, कभी उनके डमरू को खींचने लगे। यह दृश्य इतना मधुर था कि सबकी आँखें भर आईं।
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८. शिवजी का आशीर्वाद
कुछ समय तक कृष्ण की गोद में खेलकर शिवजी ने माता यशोदा से कहा –
“मइया! आपका लाल ही समस्त ब्रह्मांड का पालनकर्ता है। यह सभी देवताओं का स्वामी है। आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको इनकी माता बनने का अवसर मिला। मैं शिव होकर भी अपने आपको धन्य मानता हूँ कि इनके चरणों का स्पर्श मुझे प्राप्त हुआ।”
फिर शिवजी ने बालकृष्ण को आशीर्वाद दिया और बोले –
“नंदलाल! तुम्हारी लीलाएँ अनंत हैं। जब-जब कोई भक्त भाव से तुम्हें पुकारेगा, मैं भी वहाँ तुम्हारी सेवा में उपस्थित रहूँगा।”
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९. गोकुलवासियों का भाव
गोकुल की गोपियाँ यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। वे आपस में कहने लगीं –
“देखो! यह तो वही महादेव हैं, जिन्हें हम देवों के देव कहते हैं। वे भी हमारे नंदलाल के चरणों में लीन हैं।”
नंदबाबा भी बड़े आश्चर्य में थे। उन्होंने शिवजी को प्रणाम किया और उनके लिए नंदभवन में स्थान बनाया। तभी से गोकुल में “गोपेश्वर महादेव” की उपासना प्रचलित हुई।
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११. आध्यात्मिक महत्व
इस पूरी लीला का भाव यह है कि ब्रह्मांड के अधिपति शिवशंकर भी श्रीकृष्ण के बालरूप के दर्शन के लिए लालायित होते हैं। यह घटना हमें सिखाती है कि श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति में कोई बड़ा-छोटा नहीं है। स्वयं महादेव भी कृष्णभक्ति के बिना अधूरे हैं।
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१२. निष्कर्ष
इस प्रकार शिवजी का गोकुल आगमन और श्रीकृष्ण बालरूप दर्शन की कथा भक्तों को यह सिखाती है कि जब स्वयं देवाधिदेव भी श्रीकृष्ण के चरणों में झुकते हैं, तब हमें भी अहंकार छोड़कर सच्चे भाव से श्रीकृष्ण की शरण लेनी चाहिए।
