भगवान श्रीकृष्ण की वस्त्राहरण लीला भागवत पुराण (दशम स्कंध) में वर्णित है। यह लीला केवल एक सामान्य घटना नहीं है, बल्कि इसके भीतर अत्यंत गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य और भक्ति का संदेश छिपा हुआ है। आइए इसे विस्तारपूर्वक समझते हैं—

1. प्रसंग

गोकुल की गोपिकाएँ भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। वे नित्य कात्यायनी देवी की उपासना करती थीं और यमुना में स्नान कर कठोर व्रत करती थीं। उनका एकमात्र उद्देश्य था – “भगवान श्रीकृष्ण हमें पति रूप में स्वीकार करें।”

प्रातःकाल स्नान के लिए जाती हुई गोपिकाएँ अपने वस्त्र यमुना किनारे रखकर जल में प्रवेश करतीं और स्नान के बाद देवी से प्रार्थना करतीं। एक दिन श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना को पूर्ण करने हेतु यह अद्भुत लीला रची।

2. वस्त्रहरण का उद्देश्य

(क) सांसारिक लज्जा का त्याग

मानव जीवन में भगवान की प्राप्ति के लिए सबसे पहली शर्त है – अहंकार और आडंबर का त्याग। वस्त्र यहाँ प्रतीक हैं उस बाहरी आवरण के, जो जीवात्मा को ईश्वर से दूर रखते हैं। श्रीकृष्ण ने वस्त्र हरकर यह संदेश दिया कि –

> “यदि तुम मुझे पाना चाहती हो तो संसार की झूठी लाज-शर्म, अहंकार और बाहरी बंधनों को त्यागना होगा।”

(ख) पूर्ण आत्मसमर्पण

गोपियाँ जल में खड़ी होकर वृक्ष पर बैठे श्रीकृष्ण से वस्त्र वापस माँगने लगीं। श्रीकृष्ण ने कहा –
“तुम सब हाथ जोड़कर पूर्ण आत्मसमर्पण करो, तभी मैं वस्त्र लौटाऊँगा।”
यहाँ भगवान का संकेत था कि भक्त को ईश्वर की शरण में शत-प्रतिशत समर्पण करना चाहिए, तभी उसकी कामना पूर्ण होती है।

(ग) भक्तों की कामना की सिद्धि

गोपियों की गहरी इच्छा थी कि श्रीकृष्ण उन्हें पति रूप में स्वीकार करें। हिन्दू शास्त्रों में पति-पत्नी का संबंध केवल शरीर का ही नहीं बल्कि आत्मिक और धार्मिक बंधन का प्रतीक माना गया है। इस लीला द्वारा श्रीकृष्ण ने गोपियों की मनोकामना को स्वीकार किया और उन्हें भविष्य में रासलीला का अधिकारी बनाया।

(घ) भक्ति की पराकाष्ठा

गोपियों ने लज्जा, डर और लोक-लाज सब त्यागकर केवल कृष्ण की आज्ञा मानी। यह दिखाता है कि सच्चा भक्त ईश्वर की आज्ञा को सर्वोपरि मानकर संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

3. आध्यात्मिक रहस्य

वस्त्र = माया (भ्रम का आवरण)।

जल = संसार-सागर।

गोपियाँ = जीवात्माएँ।

कृष्ण = परमात्मा।

जब तक जीवात्मा मायिक आवरण में बंधी रहती है, वह परमात्मा के साथ एकरूप नहीं हो सकती। परन्तु जब आत्मा (गोपियाँ) अपनी मायिक लज्जा और अहंकार (वस्त्र) त्यागकर पूर्ण समर्पण करती है, तब परमात्मा (कृष्ण) उसे स्वीकार कर लेता है।

4. परिणाम

श्रीकृष्ण ने वस्त्र लौटाए और गोपियों से वचन लिया कि वे उनकी आज्ञा को सर्वोपरि मानेंगी।

इस घटना के बाद ही महान रासलीला का प्रारम्भ हुआ, जिसमें कृष्ण और गोपियाँ आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का प्रतीक बनीं।

✅ निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के वस्त्र इसलिए चुराए क्योंकि यह कोई साधारण शरारत नहीं थी, बल्कि भक्त और भगवान के बीच परम रहस्य की लीला थी। इसका संदेश है –

ईश्वर की प्राप्ति हेतु संसार की झूठी लज्जा और अहंकार त्यागो।

पूर्ण आत्मसमर्पण करो।

तब ही भक्त और भगवान का दिव्य मिलन संभव है।