प्रस्तावना

भारतीय पौराणिक कथाओं में अनेक कहानियाँ हैं जो देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष और भगवान विष्णु के दैवीय अवतारों के माध्यम से धर्म की स्थापना को दर्शाती हैं। इनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण कथा वह है जब पृथ्वी देवी (भू देवी) और अन्य सभी देवता भगवान विष्णु के पास जाकर उनसे प्रार्थना करते हैं। यह घटना तब घटित होती है जब पृथ्वी पर अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है। इस कथा का विवरण विशेष रूप से श्रीमद्भागवत महापुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। यह लेख इस कथा को विस्तार से वर्णन करेगा, जिसमें पृथ्वी और देवताओं की प्रार्थना, भगवान विष्णु का आश्वासन, और उसके बाद की घटनाओं का वर्णन किया जाएगा।

पृथ्वी पर अधर्म का विस्तार

द्वापर युग के अंत में, पृथ्वी पर अधर्म और अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए। राक्षस और दुष्ट राजा अपने प्रजा पर अत्याचार कर रहे थे। धार्मिक कृत्यों में विघ्न डाला जा रहा था, और अधर्म का बोलबाला हो गया था। विशेष रूप से कंस और अन्य दुष्ट राजाओं ने पूरे भारतवर्ष में आतंक फैलाया हुआ था। इन राजाओं ने न केवल सामान्य जनता को परेशान किया, बल्कि ऋषि-मुनियों के यज्ञ और तपस्या में भी विघ्न डाला।

पृथ्वी देवी इस स्थिति से अत्यंत दुःखी हो गईं। उन्होंने महसूस किया कि इस संकट से बाहर निकलने के लिए एक दैवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उन्होंने अन्य देवताओं के साथ मिलकर भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना करने का निर्णय लिया।

पृथ्वी और देवताओं की प्रार्थना

पृथ्वी देवी और समस्त देवता ब्रह्मा जी के नेतृत्व में भगवान विष्णु के परमधाम क्षीरसागर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की और उनसे अपनी समस्याओं का समाधान करने की याचना की। पृथ्वी देवी ने अत्यंत विनम्रता और करुणा से कहा:

“हे भगवन्, आप इस सृष्टि के पालनकर्ता हैं। आप ही के कारण यह संसार सुचारु रूप से संचालित होता है। लेकिन आज पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य फैल गया है। दुष्ट राक्षस और अत्याचारी राजा धर्म का नाश कर रहे हैं। यज्ञ, तपस्या, और धार्मिक अनुष्ठानों में विघ्न डाला जा रहा है। हे प्रभु, कृपया इस स्थिति को संभालें और पृथ्वी को अधर्म के इस भार से मुक्त करें।”

भगवान विष्णु का आश्वासन

भगवान विष्णु ने पृथ्वी देवी और देवताओं की प्रार्थना को सुनकर उन्हें आश्वासन दिया। उन्होंने कहा:

“हे देवताओं और पृथ्वी देवी, मैं आपकी पीड़ा को समझता हूँ। जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का विस्तार होता है, तब-तब मैं अवतार लेकर धर्म की स्थापना करता हूँ। मैं स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर दुष्टों का संहार करूंगा और धर्म की पुनर्स्थापना करूंगा। आप सभी निश्चिंत रहें, मैं शीघ्र ही इस संकट को समाप्त करूंगा।”

भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि वे वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और कंस तथा अन्य दुष्टों का नाश करेंगे। उन्होंने देवताओं को यह निर्देश दिया कि वे भी अपने अंशों से पृथ्वी पर अवतरित होकर धर्म की स्थापना में सहायता करें।

भगवान विष्णु का श्रीकृष्ण के रूप में अवतार

भगवान विष्णु ने वासुदेव और देवकी के घर में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेने का निर्णय लिया। मथुरा में कंस ने अत्याचार का साम्राज्य स्थापित कर रखा था। उसे एक भविष्यवाणी के अनुसार अपनी बहन देवकी के आठवें पुत्र से मृत्यु का भय था। इस कारण उसने देवकी के सभी बच्चों को मारने का निर्णय लिया।

भगवान विष्णु ने देवताओं के माध्यम से वासुदेव और देवकी को यह संदेश दिया कि वे उनके आठवें पुत्र के रूप में अवतरित होंगे। देवकी के गर्भ में भगवान विष्णु के रूप में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। उनके जन्म के समय कई चमत्कार हुए। वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पहुंचा दिया।

श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं

गोकुल और वृंदावन में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं के माध्यम से अनेक राक्षसों का वध किया। उन्होंने पूतना, बकासुर, अघासुर, और अन्य राक्षसों का नाश किया। गोवर्धन पर्वत को उठाकर उन्होंने इंद्र के अहंकार को दूर किया और गोकुलवासियों की रक्षा की। उनकी बाल लीलाएं प्रेम, भक्ति, और धर्म की स्थापना के प्रतीक हैं। उन्होंने अपनी लीलाओं के माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया कि प्रेम और भक्ति के माध्यम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।

कंस का वध

जैसे-जैसे श्रीकृष्ण बड़े हुए, उन्होंने मथुरा जाकर कंस का वध किया। कंस के अत्याचारों से पीड़ित जनता को मुक्ति दिलाई और धर्म की पुनर्स्थापना की। कंस का वध द्वापर युग की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने अन्य दुष्ट राजाओं को भी चेतावनी दी। श्रीकृष्ण ने मथुरा को कंस के आतंक से मुक्त किया और वहां धर्म का राज्य स्थापित किया।

महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका

श्रीकृष्ण ने महाभारत में धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध में उन्होंने पांडवों का साथ दिया। युद्ध के दौरान, उन्होंने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्मयोग, भक्ति योग, और ज्ञान योग की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने अर्जुन को यह सिखाया कि अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना ही सच्चा धर्म है।

भगवद्गीता का संदेश

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा:

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
(भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 7)

अर्थात, “जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं अवतार लेकर धर्म की स्थापना के लिए प्रकट होता हूं।”

इस उपदेश के माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ेगा, वे अवतार लेकर धर्म की स्थापना करेंगे।

देवताओं का योगदान

भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के साथ अन्य देवताओं ने भी अपने-अपने अंशों से पृथ्वी पर जन्म लिया। पांडवों के रूप में इंद्र, वायु, यम, और अश्विनीकुमारों ने अवतार लिया। उन्होंने धर्म की स्थापना में श्रीकृष्ण का साथ दिया और कौरवों के अधर्म के खिलाफ युद्ध किया। उनके सहयोग से धर्म की पुनर्स्थापना संभव हुई।

निष्कर्ष

पृथ्वी और देवताओं द्वारा भगवान विष्णु से की गई प्रार्थना और उनके आश्वासन का यह विवरण हमें यह सिखाता है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु अवतार लेकर धर्म की रक्षा करते हैं। उनकी लीलाएं और भगवद्गीता का उपदेश आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने यह साबित किया कि प्रेम, भक्ति, और धर्म की शक्ति से अधर्म का अंत किया जा सकता है।