श्री कृष्ण भगवान की गोवर्धन लीला कैसे की और इंद्र का अहंकार कैसे तोड़ा

भगवान श्री कृष्ण की कई दिव्य लीलाएँ हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध लीला “गोवर्धन पर्वत उठाना” है। यह लीला इस प्रकार है:

जब इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और सभी गोकुलवासियों को उसकी छांव में सुरक्षित किया। उन्होंने इन्द्रदेव को यह दिखाया कि वे केवल एक छोटे से पहाड़ के नीचे अपनी छोटी अंगुली पर पूरी गोकुल की रक्षा कर सकते हैं, जबकि इन्द्रदेव जैसे देवता भी पृथ्वी पर जल को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे। इस लीला के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने यह सिखाया कि भगवान की शक्ति से कोई भी बड़ी से बड़ी समस्या हल हो सकती है, और भक्ति व श्रद्धा से उनका कृपा बरसता है।

यह लीला भगवान श्री कृष्ण के अद्वितीय रूप और उनके विराट रूप को प्रकट करती है, जो न केवल भक्ति के प्रतीक हैं, बल्कि हर एक जीव की सुरक्षा और कल्याण के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

इस सम्पूर्ण सृष्टि का सबसे सर्वोत्तम धाम श्री गोलोक धाम है जहाँ श्री कृष्ण भगवान संग श्री राधा रानी रहती है

भक्तों इस सम्पूर्ण सृष्टि में सबसे सुन्दर और सबसे सर्वोत्तम धाम अगर कोई है तो वह श्री गोलोक धाम है यह धाम भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान है इस धाम में भगवान श्री कृष्ण श्री राधा रानी और अपने पार्षदों व लीलता, विशाखा जैसी परम सखियों के साथ रहते है भगवान श्री कृष्ण के ये सखियां व पार्षद उनकी सेवा करते रहते है यह धाम उस जीव को प्राप्त होता है जो भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्ति कर इस धाम को प्राप्त हो जाता है इस धाम को प्राप्त करने के पश्चात कुछ भी प्राप्त करना बाकि नही रह जाता । इस धाम की विशेषता यह है कि इस धाम में जो प्राणी प्राप्त कर लेता है वह जीवन मृत्यु के जन्मजन्मांतर के चक्कर से छूट जाता है इस धाम में किसी को भूख प्यास नही लगती इस धाम में बहुत ज्यादा सुंदर भवन,अत्यंत सुंदर बागीचे व अत्यंत सुंदर फल फूल के पौधे है इस धाम में कोई भी फल या भोग का भोग लगता है तो उसको उसका विसर्जन नही करना पड़ता श्री गोलोक धाम इस ब्रह्मांड में सबसे सर्वोत्तम धाम है जब भी भगवान श्री कृष्ण धरती पर किसी भी रूप में अवतार लेते है तब श्री गोलोक धाम में रहने वाले उनके पार्षद व सखियां इस धरती पर श्री कृष्ण भगवान की लीलाओं में उनके सहायक बनने के लिए और उनकी लीलाओं का आनंद लेने के भगवान श्री कृष्ण के आस पास प्रकट होते है इस धाम में श्री कृष्ण भगवान संग श्री राधा रानी भी रहती है जिनको हम जगतजननी महालक्ष्मी भी कहते है श्री गोलोक धाम सभी लोंको मे सबसे ऊपर है जिसको प्राप्त करना अत्यंत मुश्किल है यह धाम देवी देवताओं को भी बड़ी कठिनता से प्राप्त होता है सभी देव देवियां सुर नर मुनि गण आपने प्रारब्ध के अनुसार धरती पर मनुष्य योनि को प्राप्त करते रहते है और हर बार भगवान श्री कृष्ण की भक्ति कर कर श्रेष्ठ लोक जैसे इंद्रलोक आदि को प्राप्त कर लेते है परन्तु श्री गोलोक धाम देव देवियों को भी सहजता से प्राप्त नही होता श्री गोलोक धाम को प्राप्त करने के लिए देवियों और देवताओं को अपने प्रारब्ध के अनुसार श्रेष्ठ लोंको से अपना भोग भोगने के बाद फिर इस धरती पर जन्म लेना पड़ता है जब क्रम अनुसार मनुष्य रूप मे जीव हर बार भगवान श्री कृष्ण की कठोर भक्ति करता है फिर वह समय आता है जब उस जीव की अत्यंत कठोर भक्ति से भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होते है तब भगवान श्री कृष्ण उस मनुष्य या जीवात्मा को अपने श्री चरणों मे अथवा अपने गोलोक धाम में अपना पार्षद बना लेते है और वह जीवात्मा भगवान श्री कृष्ण में विलीन होकर सदा के लिए जन्मजन्मांतर के चक्कर से छूट जाती है

श्री राधाकृष्ण प्रेम कथा

श्री राधा जी को जब यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा, उन्होंने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया। पर जब कृष्ण अपनी माँ की ही नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कंहा सुनते । उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को जारी रखा। एक दिन राधा कृष्ण को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब कृष्ण उन्हें मनाने गये तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मनाने के लिए लीलाधर को एक लीला सूझी। ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में पुकार करते हुए घूमने लगे। जब वो बरसाने, राधा रानी की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे।
मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी,
दीदार की मैं प्यासी, दर्शन दो वृषभानु दुलारी।
हाथ जोड़ विनंती करूँ, अर्ज मान लो हमारी,
आपकी गलिन गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी।।
जब राधा जी ने यह आवाज सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा, और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुँह को छिपाते हुए कृष्ण राधा जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो राधा जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं।
माथे पे मनमोहन लिखो, पलकों पे पीताम्बर धारी !
नासिका पे नटवर लिख दो, कपोलों पे कृष्ण मुरारी |
अधरों पे अच्युत लिख दो, गर्दन पे गोवर्धन धारी !
कानो में केशव लिख दो, भृकुटी पे चार भुजाधारी !
गुदाओं पर ग्वाल लिख दो, नाभि पे नाग नथैया!
बाहों पे लिख दो बनवारी, हथेली पे दाउजी के भैया!
नखों पे नारायण लिख दो , पैरों पे जग पालनहारी!
चरणों में चितचोर लिख दो, मन में मोर मुकुट धारी!
नैनो में तू गोद दे रे, नंदनंदन की सूरत प्यारी!
रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी!
जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पर मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभू उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी को उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया ,और वो जोर से बोल उठी कि अरे.. ये तो कृष्ण ही है। अपने प्रेम के इज़हार पर राधाजी बहुत शरमा गयी ,और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था।
कृष्ण भी राधा का अपने प्रति अपार प्रेम जानकर गदगद और भाव विभोर हो गए।

भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा रानी की अद्भुत प्रेम लीला

एक बार श्री कृष्ण और श्री राधा जी एक वन में प्रेम लीला कर रहे थे। भगवान श्री कृष्ण और राधा जी दोनों वहाँ पर अकेले थे। इस बीच श्री कृष्ण जी ने राधा जी को एक बरगद के पेड़ के पीछे ले जाकर उनकी आँखों को अपनी पीतांबर से बांध कर उनको वही पर खड़े रहने को कहा। और वहाँ से थोड़ी दूर पर एक कदम के वृक्ष के नीचे जाकर श्री राधा जी के लिए एक उपहार तैयार करने लगे। कुछ पल ऐसे व्यतीत हुआ और थोड़ा विलम्ब होने लगा तो राधा जी बरगद के वृक्ष के पीछे से आवाज लगायी की वो अब थोड़ी भी देर नहीं खड़ी हो सकती और बोली की मेरी ऑंखें दर्द कर रही है। तो इसपर भगवान श्री कृष्ण थोड़ा सा मुस्कुराये और वहीं कदम के वृक्ष के नीचे से जवाब दिया कि राधे बस कुछ पल के लिए आप प्रतीक्षा कीजिये। उसके बाद राधा जी वहीं आँख बंद करके प्रतीक्षा करती रहती है। और यहाँ श्री कृष्ण जी जल्दी जल्दी अपना काम पूरा करने लगते है और जल्द ही श्री कृष्ण जी काम पूरा करके श्री राधा जी के पास गए और श्री कृष्ण ने अपनी हाथों से श्री राधा जी की आँखों से पीताम्बर हटाया और फिर उनको अपना उपहार दिखाने के लिए श्री राधा जी को कदम के वृक्ष के नीचे ले गए। वहाँ पर पहुंच कर राधा जी वो खूबसूरत उपहार देखकर बहुत प्रसन्न हुई। श्री राधा जी ने जब देखा एक विशाल फूलों से सजा हुआ झूला देखा तो वो एक छोटी बच्ची की भाँति हँसते हुए उस झूले से जा लिपटी। भगवान श्री कृष्ण ने बड़ी लगन से ये उपहार श्री राधे के लिए तैयार किया था। फिर राधा जी उस झूले पर बैठ कर श्री कृष्ण जी से बोलती है कान्हा पीछे से थोड़ा झूले को धक्का लगा दो। फिर श्री कृष्ण प्रसन्न मन से झूले को पीछे से धक्का लगाने लगते है। और श्री कृष्ण जी ने इस प्रकार झूले को यमुना जी के तट पर बनाया था की जितनी बार श्री कृष्ण जी झूले को धक्का लगाते है और राधा जी जब आगे की ओर जाती या पीछे की ओर आती तो राधा जी कोमल चरण यमुना जी निर्मल लहरों को छूते हुए निकल जाती । ऐसे ही कुछ वक्त चलता रहा फिर अचानक से श्री राधा जी की नज़र उस झूले में लगी एक श्वेत फूल पर जा पड़ी और उस पुष्प को देखते ही श्री राधा जी बहुत अधिक प्रसन्न हो कर श्री कृष्ण जी से कहती है की हे कान्हा ये पुष्प तो हमारे व्रज में तो नहीं है तो आप इस पुष्प को कहाँ से लेकर आये ? इस बात भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले की मैं ये त्रेतायुग से लाया था। त्रेतायुग ? ये सुन कर राधा जी को आश्चर्य हुआ और फिर पूछी की त्रेतायुग से कैसे ? फिर श्री कृष्ण जी ने झूला रोक कर और राधा जी के बगल में जाकर बैठ गए। और फिर श्री कृष्ण प्रेम के आंसू अपने आँखों में लिए राधा जी को बताते है की हाँ राधे त्रेतायुग से लाया हूँ, जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था तो तुम पुष्प वाटिका में थी। पहली बार तुम्हें देखते ही राधे मुझे तुम्हें उसी पल एक अपने हाथों से बनाया हुआ पुष्प से निर्मित झूला देने को मन किया। परन्तु उस समय मैं रामावतार में था और मर्यादा पुरुषोत्तम होने की वजह से अपनी वो प्यारी सी इच्छा पूरी न कर सका। लेकिन मैंने आज के इसी खूबसूरत दिन के लिए उस वक्त कुछ श्वेत पुष्प अपने पास संभालकर रख लिए थे। और आज जब समय आया तो मैंने अपनी वर्षों की इच्छा पूरी कर तुम्हें ये प्यारा सा उपहार देना चाहा और मेरी यह इच्छा पूरी भी हुई। यह सुनकर राधा जी की आँखें ख़ुशी के मारे नम हो गयी, और उन्होंने श्री कृष्ण जी के कोमल हाथों चूम लिया। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा जी दोनों एक साथ झूले पर बैठकर झूले का आनंद लेने लगे।