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श्री शुकदेव जी ने बताया पुरुषोत्तम भगवान संसार की उत्पत्ति, पालन और प्रलय की लीलाओं को करने हेतु सत्व, रज और तमोगुण रूपी तीन शक्तियों को स्वीकार कर ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप धारण करते हैं। पंच महाभूतों से इन शरीरों का निर्माण करके इनमें जीव रूप से शयन करते हैं और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच प्राण प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान) और एक मन, इन सोलह कलाओं से युक्त होकर इनके द्वारा सोलह विषयों का भाग करते हैं। भगवान ने काल शक्ति को स्वीकार करके और एक साथ महत्तत्व, अहंकार, पंचभूत, पंच तन्मात्राएँ और ग्यारह इंन्द्रियों सहित २३ तत्त्वों के समुदाय म ... Read more

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