जब राजा से राजऋषि बने सम्राट परीक्षित जैसे ही शुक्रताल में गंगातट पर आए तो ये सूचना कि चक्करवर्ती सम्राट को कलयुग के करण भयंकर शाप मिला है, तो ऋषि समाज मे चारों तरफ चर्चे हो गए, " अरे बहुत बुरा हुआ, इतने धर्मात्मा, धर्म के स्तम्भ, इतने महान भक्त, कलयुग ने ऐसे महान धर्मात्मा राजा का भी ऐसा बुरा हाल कर दिया तो आगे-आगे क्या होगा, जो लोग स्वभाव से ही अधर्मी होंगे उनका क्या बनेगा" और सब भूमंडल के ऋषिगण राजऋषि, ब्रह्मऋषि, देवलोक के देवऋषि, सामान्य ब्राम्हण, क्षत्रिय, ज्ञानमार्गी ऋषि, ध्यानमार्गी ऋषि, भक्तिमार्गी ऋषि सब एकत्रित होने लगे परीक्षित के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के लिए, सांत्वना प्रकट करने के लिए और श्री परीक्षित ने कहा "हे ऋषियो आप सभी का हार्दिक अभिनंदन है, मैने अपने हृदय में भगवान श्री कृष्ण को धारण कर रखा है, मुझे मृत्यु का भय नहीं है, चिन्ता तो केवल एक बात की है कि मुझे अभी तक कृष्ण कथा सुनाने वाला नहीं आया । आपमें से कोई श्री शुकदेव जी हों तो कृपा करके आएं और मुझे श्रीमद्भागवत कथा सुनाएं । तभी वहां पर परमहंस, रसतत्ववेत्ता, प्रेमतत्ववेत्ता, महामुनि श्री शुकदेव जी पधारे ओर उनको देखकर उपस्थित जन व ऋषिमुनि उनके सम्मान में खड़े हो गए। श्री परीक्षित ने परमहँस श्री शुकदेव जी को ऊँचे व्यास आसन पर विराजमान किया। श्री शुकदेव जी प्रसन्न हैं इतने ऋषिमुनियों को श्रोताओं के रूप में पाकर और परीक्षित जी प्रसन्न हैं कि उन्हें श्री उद्धव जी ने आशीर्वाद दिया था कि जीवन के अन्तिम दिनों में तुम्हें श्री शुकदेव जी श्रीमद्भागवत कथा सुनायेंगे।- Shri Krishna