भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध कैसे किया उसको किसने भेजा था और यह राक्षसी अपने पूर्व जन्म में कौन थी

पूतना वध की कथा:

भगवान श्री कृष्ण ने पूतना राक्षसी का वध अपनी बाल्यावस्था में किया। पूतना कंस द्वारा भेजी गई थी। कंस ने भविष्यवाणी सुनी थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा, इसलिए उसने अपने आस-पास के सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दिया। इसी उद्देश्य से कंस ने पूतना को गोकुल भेजा था।

पूतना का वध: पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके गोकुल पहुंची और यशोदा से श्रीकृष्ण को गोद में लेने की इच्छा जताई। उसने अपने स्तनों पर विष लगाया हुआ था और जैसे ही उसने श्रीकृष्ण को स्तनपान कराया, श्री कृष्ण ने उसके स्तनों से विष और उसके प्राण दोनों खींच लिए। पूतना ने अपने असली राक्षसी रूप में लौटते हुए प्राण त्याग दिए।

पूतना का पूर्व जन्म: कथाओं के अनुसार, पूतना अपने पूर्व जन्म में राजा बली की पुत्री थी, जिसका नाम रत्नमाला था। जब वामन भगवान राजा बली से भिक्षा मांगने आए थे, तो रत्नमाला ने वामन रूप में भगवान को देखकर उनसे स्नेहभाव से उन्हें अपना पुत्र बनाने की इच्छा की थी। लेकिन बाद में, जब वामन ने अपने विराट रूप में बली से तीन पग भूमि मांगी और सब कुछ ले लिया, तो रत्नमाला ने क्रोधवश उन्हें मारने की इच्छा जताई। भगवान ने उसके दोनों भावों को स्वीकार किया। इसी कारण अगले जन्म में उसे पूतना के रूप में जन्म मिला और उसे भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराने का अवसर मिला। श्रीकृष्ण द्वारा वध होने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

पूतना के वध के बाद, गोकुल वासियों ने उसके विशाल राक्षसी रूप को देखकर भय और आश्चर्य से भर गए। इसके बावजूद, उन्होंने पूतना के शरीर को जलाने का निर्णय लिया। पूतना के शरीर को जलाने के दौरान एक अद्भुत घटना घटी—उसके शरीर से एक दिव्य सुगंध फैलने लगी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के स्पर्श से पूतना को मोक्ष प्राप्त हुआ था और उसका शरीर पवित्र हो गया था। इसलिए, जब उसका अंतिम संस्कार किया गया, तो वह सुगंधित धुआँ में परिवर्तित हो गया, जो देवताओं की कृपा का प्रतीक था।

गोकुलवासियों ने इस घटना को भगवान श्रीकृष्ण की लीला और उनकी दिव्यता का प्रमाण माना और भगवान की जय-जयकार की। उन्होंने श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में मानने लगे और उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति और अधिक बढ़ा ली।

पूतना, जो भगवान श्री कृष्ण के हाथों मारी गई थी, अंत में गोलोक धाम को पधारी। पूतना ने भगवान श्रीकृष्ण को मां के रूप में स्तनपान कराने का प्रयास किया था, भले ही उसका उद्देश्य बुरा था। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी इस सेवा को मां के समान माना। शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान किसी भी व्यक्ति की भावना को महत्व देते हैं, चाहे वह कैसी भी हो।

श्री कृष्ण ने पूतना को मातृत्व का दर्जा दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। इस प्रकार, पूतना अपनी मृत्यु के बाद गोलोक धाम चली गई, जहां भगवान श्रीकृष्ण के साथ रहने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ। यह भगवान की करुणा और अनुग्रह का प्रतीक है कि उन्होंने अपने शत्रु को भी मोक्ष प्रदान कर दिया।

श्री कृष्ण भगवान ने बकासुर का वध कैसे किया और बकासुर अपने पिछले जन्म में कौन था

बकासुर का वध:

बकासुर एक राक्षस था जो भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल में मथुरा के पास व्रज क्षेत्र (गोकुल) में उत्पन्न हुआ था। बकासुर मथुरा के राजा कंस का एक मित्र था और कंस ने उसे व्रजवासियों को परेशान करने के लिए भेजा था। बकासुर ने व्रज के गाँव में आकर वहां के लोगों को डराना और शिकार करना शुरू कर दिया। वह एक विशाल पक्षी के रूप में आता था और अपने बड़े-से मुंह में किसी भी व्यक्ति को निगलने की क्षमता रखता था।

एक दिन बकासुर कृष्ण के मित्रों को डराने आया और सुदामा नामक एक बालक को अपने मुंह में डालने की कोशिश की। कृष्ण ने देखा कि उनके मित्र संकट में हैं, तो वह बकासुर से लड़ने के लिए तैयार हो गए। कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करते हुए बकासुर से मुकाबला किया। उन्होंने बकासुर को अपनी पूरी ताकत से हवा में उड़ा दिया और उसे एक जबरदस्त वार किया। बकासुर को कृष्ण के हाथों मार डाला गया और इस प्रकार व्रजवासियों को राहत मिली।

बकासुर का पिछले जन्म में रूप:

बकासुर के बारे में पुराणों में कहा जाता है कि वह अपने पिछले जन्म में एक राक्षस था, जिसका नाम “दुर्मुख” था। दुर्मुख ने भगवान शिव की उपासना की थी और शिवजी ने उसे वरदान दिया था कि वह किसी भी रूप में उत्पन्न होगा तो वह अजेय रहेगा। लेकिन, दुर्मुख ने अपने वरदान का दुरुपयोग किया और अहंकार में भरकर दुष्टता करने लगा। इस कारण उसे अगले जन्म में राक्षस रूप में जन्म लेना पड़ा और वह बकासुर के रूप में कृष्ण के सामने आया।

बकासुर का वध श्री कृष्ण द्वारा उसकी अधर्मिता और अहंकार के कारण हुआ था, जो यह दिखाता है कि भगवान हर रूप में दुष्टता का नाश करने के लिए अवतार लेते हैं।

जब वासुदेव मथुरा कारागार में यशोदा की कन्या को लेकर आए तो क्या हुआ

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद, वसुदेव उन्हें मथुरा की कारागार से गोकुल ले गए और वहाँ अपने मित्र नंद बाबा की पत्नी यशोदा माता के पास श्री कृष्ण को लेटा दिया। इसके बदले में, वसुदेव यशोदा की नवजात कन्या को मथुरा ले आए। जब कंस को कन्या होने का पता चला तो उसने उस कन्या को मारने का प्रयास किया, लेकिन वह आकाश में उड़ गई और देवी के रूप में प्रकट होकर कंस को चेतावनी दी कि तुझे मारने वाला तो कोई और है और वह इस धरती पर जन्म ले चुका है। इस चेतावनी को सुनने के बाद कंस कारागार से बाहर आ गया और उसने सभी अपने मित्र राक्षसों और दरबारी की सभा बुलाई और उनसे विचार विमर्श करने के बाद मथुरा के आसपास के सभी गांव में 10 दिन पहले जन्मे सभी बालकों की हत्या करने को कहा योग माया की चेतावनी सुनने के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार से मुक्त कर दिया उसने देव की ओर वासुदेव दोनों से क्षमा मांगी और उनसे कहने लगा की मैंने तुम पर बहुत अत्याचार किए हैं मुझे क्षमा करना अब तुम कारागार से मुक्त हो और जहां चाहे वहां जा सकते हो उसके बाद वह प्रतिदिन अपने शत्रु श्री कृष्ण की खोज में लग गया कंस ने श्री कृष्ण की खोज में बड़े-बड़े राक्षसों को भेजा परंतु उसके सभी बड़े-बड़े राक्षस एक-एक करके भगवान श्री कृष्ण के हाथों मारे गए

श्री कृष्ण भगवान के गोकुल आगमन पर कैसा उत्सव हुआ

जब भगवान श्री कृष्ण शिशु रूप में गोकुल आये थे। तो बहुत ही भव्य उत्सव हुआ था सभी गोकुल वासी हर्षोउल्लास से भर गए थे क्योकि नंद बाबा को बहुत समय पश्चात पुत्र की प्राप्ति हुई थी। और नंद गोकुल व अन्य आसपास के गांवों व गवालो के मुखिया थे। नंद जी ने पुत्र जन्म की खुशी में स्वर्ण आभूषण व एक लाख गऊओं का दान किया था। गोकुल व अन्य गांव वासियों की भेटों को प्राप्त कर कर भी तृप्ति नही हुई थी। श्री कृष्ण के अति सुन्दर मुख को देखकर उनका मन बार बार श्री कृष्ण को देखने के लिए लालायित हो रहा था। सभी की नजर पालने में झूल रहे श्री कृष्ण की ओर ही टिकी हुई थी। जो भी श्री कृष्ण के मुख को एक बार देख लेता वो वही खड़ा रह जाता वहाँ से हटता ही नही कहते है कि इतना भव्य रूप गोकुल व अन्य गांव वासियों ने किसी भी नवजात शिशु का पहले कभी नही देखा था। और होता भी कैसे स्वयं सम्पूर्ण भगवान ने धरती पर अवतार धारण किया था।

नंद और यशोदा अपने पूर्व जन्म में कौन थे और उन्होंने भगवान को किस रूप में देखने के लिए तपस्या की

भगवान श्री कृष्ण भक्तों माता यशोदा और नंद जी ने अपने पूर्व जन्म में भगवान की अत्यंत कठोर भक्त्ति की थी। यशोदा मईया और नंद जी अपने पूर्व जन्म में धरा और द्रोण नाम के वसु थे उस समय धरा ओर द्रोण ने गंदमादन पर्वत पर कई हजार वर्षो तक इस उद्देश्य से तपस्या की उन्हें भगवान के दुर्लभ बाल रूप के दर्शन हो। जोकि बड़े बड़े योगियों को भी दुर्लभ है तब आकाश से आकाशवाणी हुई – हे द्रोण, देवी धरा मै तुम्हारी अति कठोर तपस्या से अति प्रश्न हूँ और जिस उद्देश्य को ह्रदय में धारण करके तुमने यह कठोर तप किया है उसको मै अवश्य पूरा करूंगा मै तुम्हें यह वर देता हूँ कि जब द्वापर युग मे मै इस धरती पर श्री कृष्ण के रूप में अवतार धारण करूँगा तब मै आप दोनों का पुत्र बनकर अपनी बाल लीला आपके यहाँ सम्पूर्ण करूँगा तब आप दोनों को अपनी बाल लीलाओं से पूर्ण आनंदित करूँगा इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने जब द्वापर युग मे श्री कृष्ण के रूप मे अवतार धारण किया तब देवी धरा यशोदा के रूप में और द्रोण ने नंद बाबा के रूप में धरती पर थे इसीलिए अपने दिए हुए वर को पूरा करने के लिए ही भगवान श्री कृष्ण मथुरा से गोकुल नंद यशोदा के घर आए और लगभग 11 वर्ष तक नंद व यशोदा को अपनी बाल रूप और बाल लीलाओं से आनंदित किया

शिव, ब्रह्मा और सभी देवताओं का भगवान विष्णु के पास जाकर पृथ्वी से राक्षसी शक्तियों का विनाश करने के लिए प्रार्थना करना

श्री कृष्ण भगवान के जन्म से पूर्व जब धरती राक्षसी शक्तियों और पापियों के आक्रांत से त्राहि त्राहि हो रही थी तब ब्रह्मा ,शिव और सभी देवतागण एकत्र होकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे विनम्र निवेदन कर कहने लगे कि हे प्रभु आप ही इस जगत के जन्म दाता ,पालन कर्ता और संहारक है आप सर्वस्व ज्ञाता है प्रभु , आपको तो पता ही है कि इस समय धरती पर कंस जैसी राक्षसी शक्तियों ने चारों दिशाओं में आतंक फैला रखा है दिनप्रतिदिन धरती पर अधर्म बढ़ता जा रहा है जिसके कारण आपके भक्तों को बहुत ज्यादा कष्ट उठाने पड़ रहे है इसलिए हे प्रभु हम सभी देवता गण आपसे विनती करते है कि अब आप धरती पर अवतार धारण कर राक्षसों और पापियों का विनाश करके धरती पर धर्म की स्थापना करें और अपने भक्तों की रक्षा कर उन्हें कृतार्थ करें।

राजा परीक्षित को कलयुग कहाँ मिला और राजा परीक्षित ने कलयुग के शरण मांगने पर उसको कौन कौन से स्थान दिए

एक दिन राजा परीक्षित वन में आखेट के लिए जाते हैं जहाँ अचानक उनका सामना कली पुरूष (कलयुग) से होता है, जो राजा परीक्षित को कलयुग के गुण बताकर उनसे अपने रहने के लिए स्थान मांगता है। राजा परीक्षित ने उसे पांच स्थान में ही रहने की इजाजत दे दी। जहाँ शराब का सेवन हो, जहां जुआ खेला जाता हो, परस्त्री/परपुरुष गमन , क्लेश-लड़ाई झगड़ा तथा अवैध रूप से अर्जित धन । इतनी इजाजत मिलते ही कलयुग, राजा परीक्षित के मुकुट पर विराजित हो जाता है। क्योंकि राजा परीक्षित उस समय जरासंध का मुकुट धारण किये हुए थे । जब भीम ने जरासंध का वध किया तो नियमानुसार उसका मुकुट उसके पुत्र को मिलना चहिये था परंतु भीम द्वारा मुकुट उसके पुत्र को न देकर अपने राजकोष में रखा जो अवैध धन हुआ । राजा परीक्षित उस समय वही मुकूट धारण किये हुए थे जिस कारण कलयुग, राजा परीक्षित के मुकुट पर बैठ गया। उसके बाद राजा परीक्षित शिकार की तलाश में वन में आगे बढ़े। प्यास से व्याकुल राजा को एक कुटिया दिखाई दी। राजा ने वहां पहुंच कर देखा कि वहां शमीक ऋषि ध्यान में लीन होकर बैठा है राजा ने उस ऋषि से पानी मांगा तो ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि ऋषि ध्यानस्थ थे। राजा ने कलयुग से दुष्प्रेरित होकर इसको अपना अपमान समझा व आश्रम के समीप एक मरा हुआ सर्प पड़ा था जो राजा ने शमीक ऋषि के गले मे डाल दिया। आश्रम के पास खेल रहे बालको ने शमीक ऋषि के किशोर पुत्र श्रृंगी को जाकर सूचित किया । श्रृंगी को जब ज्ञात हुआ कि राजा परीक्षित ने उसके पिता का अपमान किया है तो उसने राजा को श्राप दिया कि जिसने मेरे पिता का अपमान किया है आज से सातवें दिन उसकी तक्षक सर्प के डसने से मृत्यु हो जाएगी। बाद में शमीक ऋषि को ज्ञात हुआ कि उसके पुत्र ने राजा को श्राप दिया तो उसे बहुत बुरा लगा कि राजा परीक्षित तो धर्मात्मा राजा है ये सब तो उसने कलयुग के दुष्प्रभाव में किया , राजा परीक्षित को सूचित करना चाहिए जब राजा हस्तिनापुर अपने महल में आकर जैसे ही मुकुट उतारा, कलयुग का दुष्प्रभाव दूर हुआ तब उनको आत्म गिलानी हुई कि मैंने ये क्या कर दिया जिन महात्मन के गले मे माला डाल कर सम्मान करना चाहिए था उनके गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया, धिक्कार है मुझे, मैने तो अपने पूर्वजों की कीर्ति को कलंकित कर दिया है, मैं यह कलंकित जीवन धारण नहीं कर सकता , मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आज से अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। आमरण अनशन व्रत स्वीकार करता हूं। परीक्षित ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को उत्तराधिकारी राजा घोषित कर दिया किन्तु अभी राजमहल में ही थे। द्वारपाल ने आकर सूचित किया कि एक ऋषि आपसे भेंट करना चाहते हैं द्वारपालों की सूचना पर राजा परीक्षित ने आकर देखा ये तो शमिक ऋषि है, परीक्षित ने ऋषि की चरण वन्दना की, उनके चरण पखारे, स्वागत किया, सत्कार किया किन्तु न तो क्षमा याचना करी और न ही इस बात के लिए प्रार्थना की कि आप मुझे कोई दण्ड मत देना अपितु बोले हे ऋषि मैं आपका अपराधी हुँ आप मुझे कठोर से कठोर दण्ड दीजिये ताकि मेरे इस पाप का निराकरण हो सके । ऋषि शमिक ने कहा राजन मैं आपको क्या कठोर दण्ड दूंगा आपके भाग्य ने आपको कठोर दण्ड दे दिया है मेरे पुत्र ने अज्ञानतावश क्रुद्ध होकर के आपको श्राप दिया है । आप सातवें दिन तक्षक नाग द्वारा डसे जाएंगे और आपका देहान्त हो जायेगा तब परीक्षीत ने चैन की साँस ली, हे कृष्ण आपकी बड़ी अहेतुकी कृपा है जो मुझे मेरे किये का दण्ड तत्काल ही दे दिया अब मैं इस राजपाट इस गृहस्थ आश्रम से मुक्त होकर के एकमात्र आपकी भक्ति करूँगा और संसार छोड़ने से पहले जैसा कि श्री उधव जी ने कहा था, श्री शुकदेव जी के मुखारविंद से श्रीमद्भागवत कथा सुनुगा। ये कहकर के चक्करवर्ती सम्राट परीक्षीत ने अपना राजसी वेश त्याग दिया और वानप्रस्थी वेश स्वीकार कर लिया, राजा से राजऋषि बन गये । सभी रिस्तेदारों व प्रजा जनो को अपने पीछे आने से मना किया, उन्हें रोक दिया और स्वयम् गंगा के किनारे-किनारे चल पड़े

श्री कृष्ण भगवान जब गोकुल से मथुरा जाने लगे तो अपनी प्रियतम श्री राधा रानी से उन्होंने क्या कहा और श्री राधा रानी ने भगवान श्री कृष्ण से कौन से दो वचन लिये

श्री कृष्ण भगवान जब गोकुल से मथुरा जाने लगे तब वह मथुरा जाने से पहले श्री राधा से मिलने के लिए उनके पास वन में गए जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ज्यादातर राधा रानी से मिलते थे तब श्री राधे रानी ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन प्रभु तो प्रभु है उन्होंने कर्म प्रधान का वर्णन करते हुए कहा कि अगर आज मै प्रेम विवश होकर वृंदावन में रुक गया तो जिन कार्यो को पूर्ण करने के लिए मैंने ये अवतार धारण किया है वो कार्य कैसे पूर्ण होंगे और राधे रानी को हर उस बात का उत्तर दिया जो प्रेम में विवश राधे रानी के मुख से निकल रही थी तब बातों बातों में राधे रानी ने कहा कि मैंने सुना है कि आप अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हो तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा – बिल्कुल करता हु । फिर राधा ने कहा कि मैंने यह भी सुना है कि आप अपने भक्तों की हर इच्छा को भी पूर्ण करते हो तो प्रभु ने कहा -: हां बिल्कुल करता हूँ । तब श्री राधा ने कहा कि मै भी आपकी भक़्त हूँ और आपसे अत्यंत प्रेम करती हूँ क्या मथुरा जाने से पहले मेरी भी इच्छा पूर्ण करोगे । प्रभु ने कहा हां बिल्कुल करूँगा । तो राधा ने कहा पहले वचन दो की अवश्य पूर्ण करोगे । तब प्रभु ने मै आपको वचन देता हूँ जो मांगोगे वह अवश्य मिलेगा और कहा मांगो जो मांगना है तब राधा ने दो वचन मांगे एक तो यह कि मुझे इस मृत्युलोक छोड़ने से पहले आखरी बार आपकी चरण धुली प्राप्त हो और दूसरा कि आप वृंदावन छोड़कर नही जाओगे मेरे पास बैठकर यही मुरली बजाओगे तब प्रभु ने ध्यान मगन होते हुए कहा जैसी तुम्हारी आज्ञा – प्रभु ने वचन विवश होकर अपने भक़्त को दिए वचन का मान रखते हुए ही आज्ञा शब्द का इस्तेमाल किया ताकि राधा ही उन्हें मथुरा जाने की आज्ञा दे क्योकि राधा के मुख से प्रेम में विवश राधा का हृदय बोल रहा था तब श्री कृष्ण जी राधा की आज्ञा अनुसार वही पर बैठकर मुरली बजाने लगें जैसे ही भगवान श्री कृष्ण जी की मुरली के मधुर स्वर गूँजने लगें उसी समय सभी देवता शिव,ब्रह्मा इंद्र आदि सभी प्रकट हो गए और कहने लगे -: त्राहिमाम त्राहिमाम त्राहिमाम , माता हमारी रक्षा करो , माता हम सभी आपकी संतान है अगर आज आपने प्रभु श्री कृष्ण को प्रेम विवश यहाँ बिठा लिया तो कंस जैसी राक्षसी शक्तियां हमारा नाश कर देगी और संसार मे अधर्म बढ़ जाएगा तब सभी देवताओं का आग्रह स्वीकार कर जगतजननी श्री राधा रानी ने भगवान श्री कृष्ण को मथुरा जाने की आज्ञा दी।

श्री कृष्ण भगवान ने धर्म को बनाया सृष्टि का आधार

भक्तों जैसे किसी भी वस्तु साधन आदि के निर्माण या उसको चलाने के लिए उसका एक आधार बनाया जाता है वैसे ही भगवान श्री कृष्ण ने इस सृष्टि को सही व समानान्तर रूप से चलाने के लिए इसका एक भाग धर्म बनाया है धर्म ही इस सृष्टि का आधार है ओर उसी तरह इस सृष्टि को चलाने के लिए भी भगवान श्री कृष्ण ने माया को भी बनाया है माया भी इस सृष्टि का एक भाग है भगवान श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई इस माया का आभास हम कर सकते है लेकिन यह माया हमे तब समझ मे आती है जब समय व्यतीत हो जाता है कोई भी कार्य भगवान द्वारा बनाए गए समय या विधि अनुसार होता है भक्तों विधि का विधान समय के अनुसार पहले ही निश्चित होता है वह किसी मनुष्य या प्राणी के बदलने से नही बदलता और यही समय विधि के अनुसार निरन्तर चलता रहता है जिससे पुराने यगों का अंत और नए युगों का निर्माण होता रहता है इसी तरह प्रत्येक युग मे भगवान का अवतार भी विधि के अनुसार अवश्य होता है यह अवतार भगवान तब धारण करते है जब उस युग मे मनुष्य विज्ञान की चरम सीमा पर पहुँचकर खुद को भगवान से भी सर्वशक्तिमान समझने लग जाता है और उसके द्वारा किए गए कार्यो से धरती पर अधर्म ज्यादा बढ़ जाता है तब भगवान किसी न किसी रूप को धारण कर उन अधर्मियों का नाश कर धर्म की स्थापना करते है और वहीं से एक नए युग का भी प्रारंभ शुरू हो जाता है।

श्री कृष्ण भगवान ने ब्रह्मा का कैसे मान भंग किया और उनको उपदेश देकर क्षमा किया

द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ वन में गईया चरा रहे थे तो गईया चराते चराते हुए सभी बाल ग्वालों को भूख लगी तो सभी अपने परम सखा श्री कृष्ण कन्हइया को कहने लगे मित्र हमें भूख लगी है चलो भोजन करते है इसलिए सभी जो कुछ अपने अपने घर से लेकर आए थे और कन्हइया जो सभी के लिए अपने घर से माखन भोजन लेकर आए थे सभी एक मण्डली में इक्कठे होकर भोजन और माखन खाने लगे। कन्हइया सबसे पहले अपने बाल सखाओं के मुंह मे भोजन और माखन देते फिर उनके मुख से जो कुछ बचा हुआ कन्हइया के हाथ मे रह जाता उसे खुद खा लेते । यह सब होते हुए ब्रह्मलोक से ब्रह्मा जी भी देख रहे थे । ब्रह्मा जी को बहुत घृणा हुई कि यह कैसा परब्रह्म है जो इन छोटी जाति वालो की झूठन खाकर भी आन्नदित हो रहा है उन्होंने सोचा क्यों ना इस बात की परीक्षा ली जाए कि यह सत्य में परब्रह्म है या नही। ऐसा देख उन्होंने एक योजना बनाई पहले तो वहाँ से गउओं को गायब कर ब्रह्मलोक में ले गए.. और फिर जब कन्हइया उनकी खोज में निकले तो पीछे से ग्वाल बालको को भी गायब कर दिया । कन्हइया को गउओं न मिलने पर वापिस आए तो ग्वाल बालको को वहाँ न पाकर बड़े अचंभित हुए ।श्री कृष्ण ने जब ध्यानमग्न होकर देखा तो सभी ग्वाल और गउएँ ब्रह्मलोक में बैठे है । यह सब देख ब्रह्मा जी का मान भंग करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने आपको कई भागों में विभक्त कर के उन समस्त ग्वाल बालों और गाय बछड़ों का रूप स्वयं धर लिया। ब्रह्मा जी ने तो उन सभी ग्वाल बालको और गउओं को कुछी क्षणों में ब्रह्मलोक पहुचा दिया लेकिन जब सभी ग्वाल और गउएँ पृथ्वी पर लौटकर आए तो थ्यूरी ऑफ रेल्ट्विटी ऑफ टाइम के सिद्धांत के अनुसार इतने में पृथ्वी पर एक साल बीत चुका था यहाँ पृथ्वी पर किसी को भी यह मल्लूम नही हुआ कि यह सभी ग्वाल बाल गउएँ असली नही है परन्तु श्री कृष्ण उनका रूप धरे घूम रहे है जब कुछ ही क्षण बाद ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर देखा कि जिन ग्वाल बालको और गउओं को अभी अभी वह ब्रह्मलोक में छोड़कर आए है वह सब यहाँ श्री कृष्ण के साथ खेल खा रहे है । ब्रह्मा जी यह देख चकरा गए और मन ही मन प्रभु श्री कृष्ण के चरणों का ध्यान किया और कहा प्रभु मुझे सत्य के दर्शन कराओ , प्रभु मुझे सत्य के दर्शन कराओ… तो यह देख ब्रह्मा जी पर भगवान श्री कृष्ण को दया आ गयी और अपनी माया का पर्दा हटाकर ब्रह्मा जी को दिखा कि स्वयं श्री कृष्ण भगवान उन सभी का रूप धरे खेल खा रहे है यह सब देख ब्रह्मा जी को बड़ा पछतावा हुआ और वह त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए कन्हइया के चरणों मे गिर कर क्षमा मांगने लगे । तब श्री कृष्ण कन्हइया ने ब्रह्मा जी को क्षमा करते हुए यह स्मरण कराया कि हे ब्रह्मा देव समस्त प्राणियों के रचनाकार होते हुए भी आपके अंदर से यह उच्च नीच का भेद भाव क्यो नही मिटा आप केवल शरीरों की रचना करते है जब उनमें मेरा ज्योति रूपी तेज आत्मा प्रतिबिंबित हो जाती है तभी उनको जीवन प्राप्त होता है। इसलिए हे ब्रह्मदेव आप अपना कार्य धर्म अर्थात बिना किसी ऊंच नीच,बिना किसी जाति पाति का भेदभाव रखकर सत्यपूर्ण रूप से किजिए।